हमारे "प्राचीन भारत" के विश्वविद्यालय------!

मुस्लिम आक्रमणकारियों के कुकर्म--!

प्राचीन भारत में 13 "विश्वविद्यालय" थे जहां सारे विश्व से हज़ारों विद्यार्थी पढ़ने के लिए आते थे, 'इस्लामिक आक्रमण' के पश्चात सब कुछ नष्ट होने लगा चाहे तुर्क हों या मुगल आक्रमणकारी सभी की सोच संकुचित थी उन्हें लगता था कि जब "अल्लाह" की दी हुई "कुरान" है, तो किसी और पुस्तक की आवश्यकता नहीं है जब "इस्लामिक मदरसा" है तो किसी और "शिक्षण संस्थान" की क्या आवश्यकता ? इन लुटेरों को जब तक हिन्दू इन्हें समझ पाता तब तक इन लुटेरों ने कुछ जला दिया, वहुत सारे हिन्दू मंदिरों को तोड़ा और लूटपाट की, हिन्दू समाज तो स्थान -स्थान पर लड़ रहा था लेकिन "बौद्ध भिक्षु" 'अहिंसा परमो धर्म:' की रट लगाने के कारण लाखों बौद्धों को मौत के घाट उतार दिया और बौद्ध मंदिरों को ध्वस्त कर दिया।

केवल ध्वस्तीकरण का काम किया--!


वैदिक काल से ही भारत में शिक्षा को बहुत महत्व दिया गया है, इसलिए उस काल से ही गुरुकुल और आश्रमों के रूप में शिक्षा केंद्र खोले जाने लगे थे, वैदिक काल के बाद जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता गया भारत की शिक्षा पद्धति भी और ज्यादा पल्लवित होती गई, गुरुकुल और आश्रमों से शुरू हुआ शिक्षा का सफर उन्नति करते हुए विश्वविद्यालयों में तब्दील होता गया, पूरे भारत वर्ष में प्राचीन काल में 13 बड़े विश्वविद्यालयों या शिक्षण केंद्रों की स्थापना हुई, आठवी शताब्दी से 12 वी शताब्दी के बीच भारत पूरे विश्व में शिक्षा का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध केंद्र था, गणित, ज्योतिष, भूगोल, चिकित्सा विज्ञान के साथ ही अन्य विषयों की शिक्षा देने में भारतीय विश्वविद्यालयों का कोई सानी नहीं था, हालांकि आज कल अधिकतर लोग सिर्फ दो ही प्राचीन विश्वविद्यालयों के बारे में जानते हैं पहला "नालंदा और दूसरी तक्षशिला", ये दोनों ही विश्वविद्यालय बहुत प्रसिद्ध थे, इसलिए आज भी सामान्यत: लोग इन्हीं के बारे में जानते हैं, लेकिन इनके अलावा भी ग्यारह ऐसे विश्वविद्यालय थे जो उस समय शिक्षा के मंदिर थे, प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक "श्री धर्मपाल" ने अपनी पुस्तक (धर्मपाल समग्र) में इसका बृहद वर्णन किया है कि 1851 में भारत की साक्षरता कहीं 95% कहीं 90% थी इससे हम समझ सकते हैं कि भारत में शिक्षा का स्तर क्या रहा होगा इसकी हम कल्पना कर सकते हैं! 

 प्राचीन विश्वविद्यालयों और उनसे जुड़ी कुछ खास बातों को..


1. नालंदा विश्वविद्यालय 

यह प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण और विख्यात केन्द्र था, यह विश्वविद्यालय वर्तमान बिहार प्रदेश के पटना शहर से 88.5 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व और राजगीर से 11.5 किलोमीटर में स्थित था, यह पहले "वैदिक विश्वविद्यालय" था, बौद्धों ने उसे बौद्ध विश्वविद्यालय बना दिया, इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज करा देते हैं, यदि यह 'वैदिक गुरुकुल विश्वविद्यालय' रहा होता तो मेरा दावा है कि मुस्लिम आक्रमणकारियों को मुहकी खानी पड़ती और मंदिर व विश्वविद्यालय नष्ट होने से वच जाता।

विदेशी पर्यटकों की दृष्टि में--!

सातवीं शताब्दी में भारत भ्रमण के लिए आए चीनी यात्री "ह्वेनसांग और इत्सिंग" के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में जानकारी मिलती है, यहां 10,000 छात्रों को पढ़ाने के लिए 2,000 शिक्षक थे। इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय "गुप्त शासक कुमारगुप्त" प्रथम 450-470 को प्राप्त है, गुप्तवंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में अपना योगदान जारी रखा,  इसे महान "सम्राट हर्षवद्र्धन और पाल" शासकों का भी संरक्षण मिला, भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी यहां शिक्षा ग्रहण करने आते थे।
विश्वविद्यालय की नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक अंतरर्राष्ट्रीय ख्याति रही थी, सुनियोजित ढंग से और विस्तृत क्षेत्र में बना हुआ यह विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना था, इसका पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था, जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी और उनके सामने अनेक भव्य स्तूप और मंदिर थे, मंदिरों में बुद्ध भगवान की सुन्दर मूर्तियां स्थापित थीं, केन्द्रीय विद्यालय में सात बड़े कक्ष थे और इसके अलावा तीन सौ अन्य कमरे थे।

विश्वविद्यालय में मठ भी---

इनमें व्याख्यान हुआ करते थे, अभी तक खुदाई में तेरह मठ मिले हैं वैसे इससे भी अधिक मठों के होने ही संभावना है, मठ एक से अधिक मंजिल के होते थे कमरे में सोने के लिए पत्थर की चौकी होती थी दीपक, पुस्तक आदि रखने के लिए खास जगह बनी हुई है, हर मठ के आंगन में एक कुआं बना था आठ विशाल भवन, दस मंदिर, अनेक प्रार्थना कक्ष और अध्ययन कक्ष के अलावा इस परिसर में सुंदर बगीचे व झीलें भी थी, नालंदा में सैकड़ों विद्यार्थियों और आचार्यों के अध्ययन के लिए, "नौ तल" का एक विराट पुस्तकालय था। जिसमें लाखों पुस्तकें थी।

2-तक्षशिला विश्विद्यालय--!

 विश्वविद्यालय की स्थापना लगभग 2700 साल पहले की गई थी, इस विश्विद्यालय में लगभग 10500 विद्यार्थी पढ़ाई करते थे इनमें से कई विद्यार्थी अलग-अलग देशों से ताल्लुुक रखते थे, वहां का अनुशासन बहुत कठोर था राजाओं के लड़के भी यदि कोई गलती करते तो पीटे जा सकते थे, तक्षशिला राजनीति और शस्त्रविद्या की शिक्षा का विश्वस्तरीय केंद्र थी, वहां के एक शस्त्रविद्यालय में विभिन्न राज्यों के 103 राजकुमार पढ़ते थे।
आयुर्वेद और विधिशास्त्र के इसमे विशेष विद्यालय थे कोसलराज प्रसेनजित, मल्ल सरदार बंधुल, लिच्छवि महालि, शल्यक जीवक और लुटेरे अंगुलिमाल के अलावा चाणक्य और पाणिनि जैसे लोग इसी विश्वविद्यालय के विद्यार्थी थे, कुछ इतिहासकारों ने बताया है कि तक्षशिला विश्विद्यालय नालंदा विश्वविद्यालय की तरह भव्य नहीं था, इसमें अलग-अलग छोटे-छोटे गुरुकुल होते थे, इन गुरुकुलों में व्यक्तिगत रूप से विभिन्न विषयों के आचार्य विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करते थे।

3. विक्रमशिला विश्वविद्यालय 

विक्रमशीला विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के राजा धर्म पाल ने की थी आठवीं शताब्दी से 12 वी शताब्दी के अंंत तक यह विश्वविद्यालय भारत के प्रमुख शिक्षा केंद्रों में से एक था, भारत के वर्तमान नक्शे के अनुसार यह विश्वविद्यालय बिहार के भागलपुर शहर से 40 किमी पूर्व दिशा में स्थित है। कहा जाता है कि यह विश्वविद्यालय उस समय नालंदा विश्वविद्यालय का सबसे बड़ा प्रतिस्पर्धी था, यहां 1000 विद्यार्थीयों पर लगभग 100 शिक्षक थे, यह विश्वविद्यालय तंत्र शास्त्र की पढ़ाई के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता था, इस विषय का सबसे मशहूर विद्यार्थी अतीसा दीपनकरा था, जो की बाद में तिब्बत जाकर बौद्ध हो गया।

4. वल्लभी विश्वविद्यालय 

वल्लभी विश्वविद्यालय सौराष्ट्र (गुजरात) में स्थित था। छटी शताब्दी से लेकर 12 वी शताब्दी तक लगभग 600 साल इसकी प्रसिद्धि चरम पर थी। चायनीज यात्री ईत- सिंग ने लिखा है कि यह विश्वविद्यालय 7 वी शताब्दी में गुनामति और स्थिरमति नाम की विद्याओं का सबसे मुख्य केंद्र था, यह विश्वविद्यालय धर्म निरपेक्ष विषयों की शिक्षा के लिए भी जाना जाता था यही कारण था कि इस शिक्षा केंद्र पर पढ़ने के लिए पूरी दुनिया से विद्यार्थी आते थे।

5. उदांत पुरी विश्वविद्यालय 

'उदंतपुरी' विश्वविद्यालय मगध यानी वर्तमान बिहार में स्थापित किया गया था, इसकी स्थापना 'पाल वंश' के राजाओं ने की थी, आठवी शताब्दी के अंत से 12 वी शताब्दी तक लगभग 400 सालों तक इसका विकास चरम पर था इस विश्वविद्यालय में लगभग 12000 विद्यार्थी थे।

6. सोमपुरा विश्वविद्यालय 

'सोमपुरा विश्वविद्यालय' की स्थापना भी पाल वंश के राजाओं ने की थी, इसे सोमपुरा महाविहार के नाम से पुकारा जाता था आठवीं शताब्दी से 12 वी शताब्दी के बीच 400 साल तक यह विश्वविद्यालय बहुत प्रसिद्ध था यह भव्य विश्वविद्यालय लगभग 27 एकड़ में फैला था उस समय पूरे विश्व में बौद्ध धर्म की शिक्षा देने वाला यह सबसे अच्छा शिक्षा केंद्र था।

7. पुष्पगिरी विश्वविद्यालय 

'पुष्पगिरी विश्वविद्यालय' वर्तमान भारत के उड़ीसा में स्थित था इसकी स्थापना तीसरी शताब्दी में कलिंग राजाओं ने की थी, अगले 800 साल तक यानी 11 वी शताब्दी तक इस विश्वविद्यालय का विकास अपने चरम पर था, इस विश्वविद्यालय का परिसर तीन पहाड़ों ललित गिरी, रत्न गिरी और उदयगिरी पर फैला हुआ था, नालंदा, तशक्षिला और विक्रमशीला के बाद ये विश्वविद्यालय शिक्षा का सबसे प्रमुख केंद्र था, चायनीज यात्री 'एक्ज्युन जेंग' ने इसे 'बौद्ध शिक्षा' का सबसे प्राचीन केंद्र माना, कुछ इतिहासकार मानते हैं कि इस विश्ववविद्यालय की स्थापना राजा अशोक ने करवाई थी।

अन्य विश्वविद्यालय 

प्राचीन भारत में इन विश्वविद्यालयों के अलावा जितने भी अन्य विश्वविद्यालय थे, उनकी शिक्षा प्रणाली भी इन्हीं विश्वविद्यालयों से प्रभावित थी इतिहास में मिले वर्णन के अनुसार शिक्षा और शिक्षा केंद्रों की स्थापना को सबसे ज्यादा बढ़ावा पाल वंश के शासको ने दिया।

8. जगददला, पश्चिम बंगाल में (पाल राजाओं के समय से भारत में अरबों के आने तक
9. नागार्जुनकोंडा, आंध्र प्रदेश में।
10. वाराणसी उत्तर प्रदेश में (आठवीं सदी से आधुनिक काल तक)
11. कांचीपुरम, तमिलनाडु में
12. मणिखेत, कर्नाटक
13. शारदा पीठ, कश्मीर मे।

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