गद्दी समाज ने संघर्ष किया संस्कृति से समझौता नहीं किया-!

श्रेष्ठ कुल के वंशज--!

आज हम देखते हैं कि गद्दी समाज देश के विभिन्न प्रान्तों में पाया जाता है और अपनी संस्कृति को बचाने का हर सम्भव प्रयास करते रहते हैं, भारत वर्ष में बहुत यशस्वी राजवंश यादवों के रहे हैं इस वंश के बारे में कहा जाता कि यह यदु के वंशज हैं इसलिए इन्हें अपने पिता महाराजा ययाति के श्राप के कारण राजा वननेसे वंचित रहना पड़ा, इसके बावजूद भगवान कृष्ण व बलराम को कौन नहीं जानता इन्होंने राज्य नहीं स्वीकार नहीं किया लेकिन पूरे आर्यावर्त के सर्वमान्य नेता थे बहुत सारे राज्यों को समाप्त किया तो बहुतों को राजा बनाने का श्रेय भी प्राप्त किया, भगवान बलराम के ही वंश के गद्दी हुए जो "यादव समाज" की आठवीं "कुरी" मानी जाती है जम्बू कश्मीर में "गद्दी लोग" अपने को राजपूतों से जोड़ते हैं।

समय के साथ पलायन-!

प्रभाष क्षेत्र में जब यादवों का पतन हुआ उसी समय इस वंश के लोग विभिन्न क्षेत्रों में गए उसमे कुछ पददलित भी हुए कुछ लोग भेड़ बकरियों को पालन करना ब्यवसाय बना लिया जिसे आज गड़ेरिया कहते हैं, इस प्रकार अहीरों के कई प्रकार के कुल वंश आज पाए जाते हैं 1.यदुवंशी 2.सोराठिया 3.धनगर 4.पंचोली 5.मछौवा 6.चारवार 7. भूरतिया 8. गद्दी इस प्रकार बिभिन्न कुलों में वट गए जहाँ सभी यादव अपने को भगवान श्रीकृष्ण का वंशज मानते हैं वहीं गद्दी भगवान बलराम जी के वंशज हैं काल परिस्थितियों के कारण बिखर गए लेकिन अपनी संस्कृति को बचाने हेतु हिमालय की बिभिन्न स्थानों पर सुरक्षित बस गए, कहते हैं कि मुगलों आक्रमण से अपने पवित्र हिन्दू धर्म को बचाने के लिए इन्होंने हिमाचल, उत्तराखंड, नेपाल इत्यादि हिमालयी क्षेत्रों में गए।

और संस्कृति हेतु संघर्ष--!

गद्दी समाज ने स्थान स्थान पर इस्लामिक आक्रमण कारियों से संघर्ष किया जिसमें दो स्थानों का वर्णन मिलता है, जब औरंगजेब ने अपने सेनापति राजा रामसिंह को आसाम पर आक्रमण के लिए भेजा था उसी समय उसे गुरु तेगबहादुरजी को लेकर बड़ा ही संसय था कि कहीं राजा रामसिंह धोखा न देदे, ध्यान में रहे कि रामसिंह के मन में संभाजी राजे के लिए हिंदुत्व का जो भाव था कभी कभी प्रकट हो जाता था, इस कारण उसने एक अलग से इस्लामी सेना भी भेजा उस समय "गद्दी" बड़ा ही लड़ाकू समाज था "गोपालन" मुख्य काम था गाय को लेकर लडाई हुई इस प्रकार प्रयागराज में जैसे संघर्ष हुआ उसी प्रकार बिहार के पश्चिमी चंपारण के "गंडकी नदी" के किनारे रहने वाले "गद्दी समाज" से भी संघर्ष हुआ उसी समय कुछ लोगों को "धर्मान्तरित" किया लेकिन किसी ने कोई "कलमा" नहीं पढ़ा कोई किसी का नाम नहीं बदला आज भी कहीं मस्जिद नहीं पाई जाती इन लोगों ने अपनी सभ्यता बरकरार रखा, पंजाब में ये लोग अपने को कौशल गोत्र का मानते हैं ऋषि वशिष्ठ के सबसे छोटे पुत्र हिरण्यभा ऋषि के पुत्र थे इस गौत्र के कुल देवता वीरा तथा कुल देवी शिवाय माता हैं इस प्रकार पूरे देश में गद्दी समाज अपनी धर्म सुरक्षा के लिए नदियों का मार्ग चुना और मुगलों के बलात धर्मान्तरण से बचने के लिए जहाँ हिमाचल का रास्ता चुना वहीं पूर्व की ओर बढ़ने के लिए नदियों का चुनाव किया और पूर्व की दिशा में बढ़ते गए, जगह जगह इस्लामिक आतंकियो से संघर्ष भी किया बलात धर्मान्तरण हुआ लेकिन इन्होंने आपनी संस्कृति सभ्यता नहीं छोड़ा आज भी इस समाज में  रामदेव गद्दी, लालचंद गद्दी, महंथ गद्दी जैसे नाम पाए जाते हैं आज भी यह जाति शाकाहारी भोजन करते हैं तथा उनके ब्यवसाय गो पालन तथा दूध बेचना ही है, अपने धर्म संस्कृति को सुरक्षित रख कर आज भी वे अपने को यादव समाज के निकट पाते हैं आज भी वे इस प्रतीक्षा में है कि कब यादव समाज यानी श्रीकृष्ण के वंशज गद्दी समाज यानी बलराम जी के वंशजों को अपनाएंगे।

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