नेपाल--! जब माओवादियों ने मंच पर २७ लाशें बिछा दीं---!


नेपाली मिट्टी और संस्कृति 

जब हम नेपाल के बारे मी विचार करते है तो हमें हजारो वर्ष पीछे की अवस्था-परिस्थितियों का अध्ययन मनन करना आवस्यक हो जाता है। आज के पाच हजार वर्ष पहले जब 'नेपाल' देश के नाते किसी अस्तित्व में नही आया था। भौगोलिक क्षितिज पर नेपाल एक देश के कारण उसका प्रादुर्भाव नहीं था। उस समय यह सारा का सारा भू-भाग वन प्रदेश था वर्तमान जनजातीय (पहले क्षत्रिय रहे होगे) का शासन था। यानी कबीलाई शासन, उस समय काठमांडू का अथवा नेपाल का कोई अस्तित्व नहीं था क्योकि 'काठमांडू वैली' जल युक्त थी, एक झील का स्वरुप लिए हुए थी, कहते हैं कि महाभारत युद्ध के पहले धर्म की स्थापना हेतु भगवान श्री कृष्ण ने सम्पूर्ण भारत वर्ष का भ्रमण किया था और महाभारत युद्ध होने के पहले ही युद्ध जीत लिया था उसी क्रम में भगवान श्री कृष्ण इस झील में पधारे उन्हें आभाष हुआ कि यहाँ कोई देवता का वास है, उन्होंने उसी समय धाटी यानी झील से पानी निकालने का निर्णय किया और भगवान बलराम जी ने अपने हल द्वारा उसे काटा वह नदी का स्वरूप हो कर नीचे की ओर आयी आज उसे 'बागमती' नदी के नाम से जानते हैं, जब पानी निकल गया तो वहां शिवलिंग दिखाई दिया और भगवान श्री कृष्ण ने उसकी प्राण प्रतिष्ठा की, एक और कथा है कि भगवान शिव वहां हिरण के रूप में आये, ये पशुपतिनाथ शिवलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक नहीं आधा है, कैसी भगवान की महिमा है जब वनबास के समय पांडव देवभूमि में भ्रमण कर रहे थे उस समय "श्री केदारनाथ" में जब वे सब लोग गए तो देखा भगवान शंकर जाने के लिए तैयार हैं तो भीमसेन ने उन्हें पकड़ लिया कहते हैं कि मुख का भाग पशुपतिनाथ और पीछे का भाग केदारनाथ हो गया, इसलिए जब तक पशुपतिनाथ का दर्शन नहीं होता तब तक द्वादश ज्योतिर्लिंग पूरा नहीं होता। इसी प्रकार 'काली गंडक' नदी जिसमे भगवान "सालिकराम" पाए जाते हैं जिन्हें हिंदू समाज भगवान विष्णु के रूप में पूजा करता है यह नदी तिब्बत सीमा पर स्थित दामोदर कुंड से निकलती है, वहीँ पर मुक्तिनाथ भगवान का मंदिर है जिसकी विशेषता है कि यहां पर हरी और हर यानी 'शिव और विष्णु' एक विग्रह में उपस्थित है, ऐसा मंदिर भारतवर्ष में तीन स्थानों पर है एक मुक्तिनाथ, दूसरा हरिहरनाथ सोनपुर बिहार और तीसरा अयीयप्पा मंदिर केरल, इनकी विशेषता यह है कि तीनों एक सिध में स्थित हैं।

एक राष्ट्र और दो राज्य 

जब हम भारत और नेपाल के बारे में विचार करते हैं तो ध्यान में आता है कि ईश्वर ने हमे एक बनाया है इतना ही नहीं तो ध्यान में आता है कि नेपाल को भारत की गोंद में बैठाया गया है दोनों देशों में केवल रोटी बेटी का संबध ही नहीं है बल्कि बिना पशुपतिनाथ का दर्शन किये द्वादश ज्योतिर्लिंग पूरा नहीं होता बिना मुक्तिनाथ दर्शन किये चारों धाम पूरा नहीं होता, दक्षिण भारत के हजारों तीर्थ यात्री प्रतिवर्ष दर्शन के लिए आते हैं तमिलनाडु सरकार इन तीर्थ यात्रियों को अनुदान राशि भी देती है, वास्तविकता यह है कि भारतवर्ष अरब देश से ब्रम्हदेश उत्तर में तिब्बत से दक्षिण इंडोनेशिया तक फैला हुआ भूभाग था, राष्ट्र एक था राज्य अन्नेक थे उस समय चक्रवर्ती सम्राट की व्यवस्था थी, उस समय नेपाल भी इस भूभाग का हिस्सा था आज भी यदि हम विचार करते है तो ध्यान में अत है कि राष्ट्र तो एक ही है स्टेट यानी राज्य दो हैं (भारत और नेपाल)!  

मेरे जीवन को रोमांचित करने वाला क्षण

श्रीगुरु जन्म शतांदी शताब्दी के समापन २००६-७ का समय नेपाल  में मै संघ का प्रचारक था पुरे भारत में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में श्री गुरूजी जन्म शताब्दी समारोह मनाया जा रहा था नेपाल उससे कैसे अछूता रह सकता था नेपाल हिन्दू राष्ट्र है इसी सिद्धांत को लेकर हिन्दू स्वयंसेवक संघ  नेपाल में हिन्दू समाज और हिन्दू राष्ट्र के लिए काम करता है, नेपाल में भी श्रीगुरुजी जन्म शताब्दी समारोह समिति बनायीं गयी, उस समय माओवादी आतंक अपने चरमोत्कर्ष पर था देश के अंदर या तो माओवादी प्रवास करते थे नहीं तो संघ के कार्यकर्ता कहीं-कहीं दोनों में भेट भी होती, देश का कोई भी संस्थान नहीं था जिससे वे लेबी न लेते रहे हों लेकिन संघ संस्थान उससे बचे रहे कारन जो भी रहा हो श्री गुरुजी जन्म शताब्दी मे नेपाल का वातावरण हिन्दुत्व मय बनाने हेतु हिन्दू स्वयंसेवक संघ ने देश भर मे हिन्दू सम्मेलन, गोष्ठियों का बड़ी संख्या मे आयोजन का आवाहन किया संघ कार्य बृद्धि की योजनाएँ बनी हमे ध्यान है उस समय 104 हिन्दू सम्मेलन पूरे देश मे किए गए माओवादियों के गढ़ों मे भी कार्यकर्ताओं ने हुंकार भरी हिन्दू राष्ट्र का वातावरण खड़ा होने लगा लेकिन कुछ लोगो को लगा की यह तो नेपाल की देश भक्ति का जागरण हो रहा है न की राज़ा की भक्ति अब दरबारियों का भी बिरोध स्वर- माओवादियों के स्वर बन बोलना शुरू किए।

जब समाज भयभीत हुआ 

नेपाल के दुर्गम सुगम सभी जिलों में उत्साह और उमंग भब्यता के साथ श्री गुरुजी की जन्मशताब्दी समारोह सफलतापूर्वक मनाने के बाद 23 मार्च 2007 को काठमाण्डू का प्रसिद्ध मैदान "गुरुजी जन्म शताब्दी" के समापन का समय आ गया । नेपाल देश के बड़े आध्यात्मिक "संत आत्मानन्द सरस्वती" गलेस्वर आश्रम ''देव घाट'' उस समय दलितों के अध्यक्ष सभी कार्यक्रम मे आने वाले थे मुख्य अतिथि के रूप मे भारत से तत्कालीन सरकार्यवाह मा॰ श्री मोहनराव भागवत उपस्थित थे मा इंद्रेशकुमार सहित अन्य कई अधिकारी भी उपस्थित थे, कार्यक्रम का समय आया सभी कार्यकर्ताओं को मंच इत्यादि की ब्यवस्था देखने जाना था की सूचना आई की नेपाल के तराई मे संघर्ष हुआ है जिसमे बड़ी संख्या मे माओवादी मारे गए हैं दूसरी तरफ जिन्हे आमंत्रित किया गया था जो अध्यक्षता के लिए बताया गया था सभी घबड़ा गए हैं, माओवादियों ने धम्की दी है की यदि 'स्वामी आत्मानन्द सरस्वती' कार्यक्रम मे जाएगे तो उनका आश्रम ढहा दिया जाएगा, भय का माहौल बन गया जिस मैदान मे हिन्दू सम्मेलन होने वाला था! तभी एक घटना "गौर" (रौतहट) में घटी वहां की स्थानीय जनता जो माओवादियों के कुकर्मों से त्रस्त थी प्रतिक्रमण में बड़ी संख्या में माओवादियों की हत्या कर दी, संघ व हिंदुवादियों के विरोध हेतु "टुरिखेल" मैदान के उसी मंच पर माओवादियों ने 27 मारे गए माओवादियों की लासे रख कर हजारों लोगो की उपस्थिती मे भाषण देना शुरू किया। आरोप लगाया कि इनकी हत्या अतिवादी हिंदुओं ने कि है संघ के खिलाफ माहौल बनाने का प्रयास करने मे लग गए। समाचार आया कि ''आत्मानंद सरस्वती'' डर गए हैं और जो भी स्थानीय दलित नेता सभी नहीं आएगे, देश भर मे यह माहौल बनने लगा कि 'हिन्दू सम्मेलन' स्थगित हो जाय, 'वि.हि.म.सं.' यह नहीं चाहता था कि कोई हिन्दू सम्मेलन किसी मैदान मे हो क्योंकि अभी तक कोई भी हिन्दू सम्मेलन काठमांडू के किसी मैदान मे नहीं हुआ था।

अपनों का भी बिरोध 

एक तरफ माओवादी बिरोध कर ही रहे कारण यह था कि नेपाल के मैदान में या तो माओवादी थे अथवा हिन्दू स्वयंसेवक के कार्यकर्ता। स्थान स्थान पर वैचारिक बिरोध तो हो ही रहे थे लेकिन आमने सामने कि टकराहट से दोनों बच भी रहे थे, लेकिन ऐसा लगता था कि माओवादी और राजावादी एक स्वर में बोल रहे है कार्यक्रम न हो इसको लेकर दोनों हमारे संसाधनों का बिरोध इतना ही नहीं कार्यक्रम होने वाला है निकट है फिर भी। मै एक कार्यक्रम में लखनऊ गया था वहीँ समाचर मिला कि मारवाड़ी धर्मशाला, समिति ने देने से इंकार कर दिया गोशाला धर्मशाला भी कैंसिल कर दिया है। हमें तो कार्यक्रम करना ही था ध्यान में आया कि कुछ भारतीय राज़वादियो का भी विचार था कि हिन्दू सम्मलेन न हो। तभी हमारी अधिराज्य के प्रचार प्रमुख राकेश मिश्र से बात हुई उन्होंने पशुपति नाथ के आस-पास के सभी धर्मशाला व अन्य सभी स्थान बुक कर लिया। अब मारवाड़ी सेवा समिति को लगा कि ये संघ के लोग कार्यक्रम तो कर ही लेगे उन्हें यह भी ध्यान में आया कि माओवादी तो हमारे है ही नहीं अब संघ भी हम लोगो से दूर हो जायेगा इसलिए जब मै काठमांडू एयरपोर्ट पर उतरा तो मारवाड़ी सेवा समिति आने का सन्देश आया समिति ने स्थान दिया और हिन्दू सम्मलेन में पुरजोर सहयोग किया।   

देश भर मे हिन्दू सम्मेलन का माओवादी विरोध

संघ के कार्यकर्ता डटे रहे देश भर की नकारात्मक सूचनाओं के बावजूद देश भर से अच्छी सूचनाएँ भी थी "टूणी खेल" (काठमांडू) मंच बनाने जाना है लेकिन मंच पर माओवादियों का कब्जा है क्या करना ? सभी धैर्य---! उसी समय मंच पर लाशें रखी है उनके भाषण हो रहे हैं लेकिन वे भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को जानते थे क्रिया की प्रतिक्रिया हो सकती है देखते देखते मंच खली होने लगा दोपहर दो बजे मंच खाली हो गया, वे लासे उठाकर "आर्य घाट" ले गए हम सभी ने तय किया कि हम मंच बनाने सायं 5 बजे जाएगे, मंच बनना शुरू हो गया लेकिन माओवादियों का अनुसासन भी दिखा कि मैदान पूरा भगवामय था, फिर भी कोई छेड़- छाड़ नहीं कोई नुकसान नहीं! मैदान जैसे हमने छोड़ा था वैसे ही पाया, हम कार्यकर्ताओं के साथ टुड़िखेल मैदान पहुचे देखा कि मंच पानी से धुला हुआ था। यानी कार्यक्रम के पश्चात माओवादियों ने पानी का टैंकर बुला मंच को धुलाकर रक्त साफ किया। रात में हम सबने मिलकर मँच तैयार किया मंच की भव्यता देखती ही बनती थीं। लेकिन रात्रि में भी यह समाचार आने बन्द नहीं हुए अति वामपंथी हमारे कार्यकर्ताओं में दहसत फैलाने की पुरजोर कोशिश करते रहे। संघ के कार्यकर्ता मरने-मारने पर उतारू थे, मामला साफ था वामपंथी टकराने की हिम्मत नहीं कर पाए और धीरे-धीरे काठमांडू की तरफ हज़ारों स्वयंसेवक आने लगे एक ऐसा वातावरण दृश्य पहली बार काठमांडू उपस्थित हुआ जिसे काठमांडो ने कभी देखा भी नहीं था।

और हुआ हिन्दू सम्मलेन 

मंच तैयार करने के लिए कार्यकर्त्ता तुड़ीखेल मैदान में पहुचे मंच बनकर तैयार हो गया। अब दोपहर मैदान में कार्यक्रम जो स्थानीय साधू संत व जनजाति नेता अथवा प्रतिष्ठित नागरिक मओवादियो द्वारा भयभीत किये गए थे, फिर क्या था ? मंच पर साधू संत जनजाति नेताओ में प्रेम थुलुंग इत्यादि उपस्थित थे कोई देशभर से आये हजारो स्वयंसेवको सहित सात हजार लोगो ने हिन्दू सम्मलेन में भाग लिया, काठमांडू ही नहीं पुरे नेपाल देश में यह पहला हिन्दू सम्मलेन था जिसमे भारत से भी संघ के सरकार्यवाह मा मोहन भगवत, इन्द्रेश कुमार, अशोक वेरी और इतिहास संकलन योजना के बालमुकुन्द जी भी उपस्थित थे  ।   

   

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