राष्ट्रीयता का प्रवाह कभी रुकने नही देगे.

           हमें अपने राष्ट्र व राष्ट्रीयता के बारे में सोचने समझने की आवश्यकता है. आखिर राष्ट्र है क्या ? भारत की आत्मा यानी राष्ट्र का अर्थ क्या ? हमारे राष्ट्र की आत्मा- चिति हमारा धर्मं है । धर्म का अर्थ भारतीय धर्म न की परकीय धर्म, हमारे राष्ट्रीयता का रास्ता मठ, मन्दिर, गुरुद्वारा से होकर जाता है न की मस्जिद व चर्च के रास्ते। मस्जिद के द्वारा अरबियन राष्ट्रबाद तथा चर्च के द्वारा यूरोपीय राष्ट्रबाद का पाठ पढाया जाता है. भारत और भारतीय राष्ट्र को सुरक्षित रखने के लिए हमें अपनी संस्कृति को सुरक्षित रखना पड़ेगा, जिस संस्कृति व परम्परा का निर्माण भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण ने प्रारम्भ किया जिसे चाणक्य, शंकराचार्य, दयानंद, बिवेकानंद ने उसे राजनैतिक स्वरुप दिया और बर्तमान समय में आर्यसमाज, गायत्री परिवार, श्री श्रीरबिशंकर रा. स्व.संघ व बर्तमान समय के पूज्य संत, हमारे पूज्य कथा बाचक उसी परम्परा को पुष्ट करने का प्रयत्न कर रहे है, वही भारतीय राष्ट्रीयता का बिकास क्रम है। यही परम्परा रहेगी तो भारत रहेगा। नही तो भारत की उदारता समाप्त होने पर भारत समाप्त हो जाएगा--- तो देश के बिकाश का कोई अर्थ नही रह जाएगा, मुसलमान और बामपंथी एक ही गोत्र के है यह हमें समझने की आवश्यकता है, तीनो में आगे बढ़ने की होड़, आज विश्व आतंकबाद के ढेर पर खड़ा है। प्रातः जब हम सो कर उठते ही पृथ्बी पर पैर रखते समय धरती माता को प्रणाम करते है कि हे माता हम तुम्हारे ऊपर पैर रखने जा रहे है। यह भाव कैसा है- क्यो है ? क्यो की अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, अवंतिका तथा गंगा, सिन्धु, काबेरी, यमुना, सरस्वती, रेवा, महानदी, गोदावरी, ब्रम्हपुत्र, यही हमारे राष्ट्र व राष्ट्रीयता के आधार है, इसमें आस्था बिस्वास कौन करेगा .इसकी सुरक्षा कैसे होगी ? जिसे हमारे पुरखो ने संजोया और एक राष्ट्र का स्वरुप दिया, आज इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है।

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