सावन शुक्ला सप्तमी तुलसी धर्यो शरीर
तुलसीदास जी का जन्म स्थान ''चित्रकूट'' के पास 'यमुना नदी' के किनारे कुछ लोग 'सोरो शुकर' क्षेत्र कासगंज और कुछ लोग बाँदा जिले के ''राजापुर'' गाव को मानते है ( उत्तरप्रदेश) इनका जन्म आत्माराम शुक्ल के यहाँ सम्बत १५११ श्रावन शुक्लपक्ष 'सप्तमी' के दिन यानी 13 अगस्त 1532ईसवी को राजापुर बांदा में हुआ। जिस प्रकार बच्चे पैदा होते ही रोते हैं तुलसीदास जी रोए नहीं मां घबड़ गई, कहते हैं कि इनके दांत भी निकले थे इस कारण इनका लालन पालन एक इनके घर में काम करने वाली ने किया, बचपन का नाम रामबोला था। बाद में इनका नाम इनके गुरु जी ने तुलसीदास रखा और इसके बाद गोस्वामी तुलसीदास के नाम से प्रसिद्द हुए, इनका विवाह पास के ही गाव की एक सुन्दर कन्या ''रत्नावली'' के साथ हुआ, अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे बिना उसके इनका रहना संभव नहीं हो पाता था। एक दिन पत्नी मायके चली गई उसका घर यमुना जी के पार था, तुलसीदास रात को पत्नी से मिलने चल दिए लेकिन नदी कैसे पार करते देखा कि एक लास टिकठी से बंधी बह रही थी ये उसी के सहारे नदी पार कर लेते हैं। उस गांव में पहुंच कर घर में कैसे जाना? पीछे से घर में पहुंच गए जागते ही पत्नी को लगा कि कैसे घर में आ गए बिना किसी सूचना के उसने कहा कि जितना प्रेम आप मुझसे करते हैं यदि भगवान राम से करते तो मोक्ष हो जाता! ओह तुलसीदास जी की आंख खुल गई और तुरंत वे वापस घर की ओर चल दिए। उन्हे पत्नी की बात लग गई और वे सन्यास के लिए काशी की ओर प्रस्थान कर गए ''काशी'' जाकर 'वेद, वेदांग' का अध्ययन किया ।
त्राहि - त्राहि करता हिन्दू समाज
यह ''भारतमाता'' रत्न गर्भा है समय- समय पर ऐसे सपूतो को जन्म देती है कि वे अपनी भारत माता अपने धर्म को बचाते ही नहीं सम्पूर्ण राक्षसी ताकतों को चुनौती भी देते है, उन्ही में से एक तुलसीदास जी भी थे जब सारा भारत त्राहि-त्राहि कर रहा था 'जजिया कर' लगाये जा रहे थे। 'दीने -ईलाही' के नाम पर हिन्दुओ को मुसलमान, बिधर्मी बनाने की मुहीम मुग़ल सत्ता चला रही थी, ''अकबर'' जिसे विदेशियो, बामपंथियो और सेकुलरो ने महान कहा ! वह 'मीना बाज़ार' लगवा कर हिन्दुओ की बहन - बेटियों को अपने हरम में लाने का प्रयास करता था, क्या वह किसी मुग़ल लड़की की शादी किसी राजपूत के साथ करता था ? आखिर वह क्यों महान था ? राजपूत - राजकुमारों को जब वह कोड़ो से मारता था तो ''जोधा बायीं'' को अन्दर ही अन्दर बड़ा कष्ट होता था, अकबर कहता कि 'जोधा' देखो अब तुम्हारा हिन्दुओ राजाओ से कोई सम्बन्ध नहीं क्यों कि अब तुम ''बाबर'' की खान-दान की हो गयी हो तुम्हारा पिछला कुछ भी सम्बन्ध नहीं। मेवाड़ में निहत्थे किसानों को तलवार से मौत के घाट उतार दिया इतिहासकार कहते हैं कि चौतीस हज़र निहत्थे किसानों की हत्या किया। भारत में किसी भी युद्ध में गैर सैनिकों पर हमला नही किया जाता था, और न ही गांवों को निशाना बनाया जाता था लेकिन ये तो लुटेरे, आतंकी थे इन्हे मर्यादा से कोई मतलब नहीं था। ये सब धर्मांध थे। हम सभी जानते है की 'जोधा' ने जिसको जन्म दिया उसने ''गुरु अर्जुनदेव'' को तप्त तवे पर बलिदान किया था हजारो मंदिरों को ढहाया ।राणाप्रताप को लक्षित कर मानस
संत तुलसीदास उस समय उत्तर प्रदेश बांदा जिले के राजापुर गाव एक ब्राहमण परिवार में पैदा हुए वे महान क्रन्तिकारी थे अकबर सभी हिन्दू राजाओ को समाप्त कर एक क्षत्र इस्लाम की सत्ता चाहता था। लेकिन राजस्थान राजपुताना ने राणाप्रताप के रूप में अकबर की एक न चलने दी महाराणा प्रताप हिन्दुओ के श्रद्धा के रूप उभरे वे सारे भारतीयों के ह्रदय पर राज करते थे। महाराणा उस समय देश में भ्रमण के दौरान चित्रकूट तुलसी दास जी से मिलने पहुंचे कहते हैं कि राणा प्रताप ने तुलसी दास जी से कहा कि लिखने से क्या होने वाला है ? तुलसी दास ने बिना देखे उत्तर दिया कि ज्यादा जोश है तो जाओ महाराणा प्रताप की सेना में भर्ती हो जाओ, तभी राणा प्रताप ने उत्तर दिया कि मैं महाराणा प्रताप ही हूं तुलसी दास ने उन्हें देखते ही पैर पर गिरने लगे तभी दोनो एक दूसरे के गले में समा गए। उस कठिन काल में गोस्वामी तुलसीदास जी ने ''रामचरित्र'' लिखकर 'राणाप्रताप' को प्रोत्साहित ही नहीं किया बल्कि उन्होंने महाराणा प्रताप को राम के स्वरुप में खड़ा कर दिया उत्तर प्रदेश में राम लीला शुरू कर जहा हिन्दू समाज में जागृत पैदा किया वही जगह संतो की टोली खड़ी होनी शुरू हो गयी ।
जब अकबर को जबाब दिया
तुलसीदास के कृत्यों से अकबर असहज होकर उनको सन्देश भेजा और कहा मै तुमको मनसबदारी दूंगा लेकिन यह सब बंद कर दो, तुलसीदास ने एक चौपाई लिखकर अकबर को जबाब दिया।
हम चाकर रघुबीर के, पट्टो लिखो दरबार,
अब तुलसी का होइ है, नर के मंसबदार।
इस प्रकार तुलसीदास जी ने अकबर को जबाब भेजा और उस समय जिन हिन्दुओ को मुसलमान बनाया गया था उनको पुनः धर्म में लाने का प्रयास किया सारे हिन्दू समाज में नयी चेतना व स्वाभिमान भर दिया मुसलमानों के लिए उन्होंने "मलेक्ष" शब्द प्रयोग किया।
और सभी मुसलमान हुए
ज्ञातब्य हो कि अकबर के जितने दरबारी थे चाहे बीरबल हो या राजा टोडरमल सभी मुसलमान हो गए थे केवल "मानसिंह" को छोड़कर, उन्होंने भगवान "श्री राम जी" का चरित्र लोक भाषा "अवधी" में लिखकर सम्पूर्ण हिन्दू समाज पर महान उपकार किया देश -धर्म को बचाने का एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। जिसे भारतीय समाज कभी भी भुला नहीं सकता, आज प्रत्येक हिन्दू के घर में "रामचरित मानस" नाम का ग्रन्थ अवस्य पाया जाता है जिसने हिन्दू धर्म को सुरक्षित रखा।मानस
''संत तुलसीदास जी'' ने ''रामचरित मानस'' 'सरयू नदी' के किनारे लिखा बहुत संमय तक सरयू जी की गोद में ज्ञान प्राप्त किये, वहीं एक मंदिर पर रहे और उन्हें 'रामचरित मानस' लिखने कि प्रेरणा प्राप्त हुई, इसका नाम मानस क्यों ? वास्तव में 'सरयू जी' का एक नाम ''मानसी'' भी है नेपाल के उपरी भाग में इसे मानसी कहा जाता है क्योकि यह नदी ''मानसरोवर'' से निकलती हैं, इसी कारण 'गोस्वामी तुलसी दास जी' ने इस ग्रन्थ का नाम 'रामचरित मानस' रखा ।
और इहलोक छोड़कर चले गए।
संवत सोलह सौ अस्सी, असी गंग के तीर। श्रवण शुक्ला तीज सम तुलसी तजयो शरीर।
4 टिप्पणियाँ
bade hi mahaan the tulsidaas baba...
जवाब देंहटाएंHave you read "Manas Ke Hans" by Shri Amrit Lal Nagar. It is a must read to Know Goswami Tulasi Das. You read Ram Charit Manas written by Tulasi Das Ji, we will see the magic in your life. It is not a story book. It provides great motivation for becoming good human being. It is not preaching, it just effects you like a magic.
जवाब देंहटाएंaap ko sukhaw ke liye bahut-bahut dhanyabad tulasidas to bharat ke nawjagran ke agradut the.
जवाब देंहटाएंतुलसीदास जी का योगदान अतुल्य है।
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