जब-जब धर्म
"यदा-यदा ही धर्मस्य, तदातमानम सृजम्हम"----जब-जब धर्म की हानि होती है अधर्म [राष्ट्र विरोध] बढ़ता है मै [भगवान] पृथ्बी पर जन्म लेता हूँ, ऐसे स्वामी विबेकानंद के रूप में इश्वर ने अपना अंश नरेन्द्र के रूप में विश्वनाथदत्त जो पश्चिमी सभ्यता के प्रति आस्था रखने वाले थे, के यहाँ १२ जनवरी १८६३ को एक शिशु ने जन्म लिया, यह कौन जनता था की यही बालक पाश्चात्य जगत को हिन्दू [सनातन] धर्म के तत्वज्ञान का सन्देश सुनाने वाला, उतिष्ठित -जागृत का सन्देश देने वाला, गुलामी को झेलते हुए 'गर्व से कहो की हम हिन्दू है' का प्रेरक वाक्य द्वारा हिन्दू समाज को गौरव बोध कराने वाला, महान विश्व गुरु होगा, बचपन में पिता की मृत्यु के कारन दरिद्रता ने उनकी स्थित दयनीय बना दिया था, गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस के प्रथम मिलन ने ही उनका जीवन को ही बदल दिया और वे नरेन्द्र से विबेकानंद बन गए, वे रामकृष्ण परमहंस के स्वर्गवासी होने के बाद भारत भ्रमण के लिए निकल गए भारत माता की परिक्रमा करने के पश्चात् कन्याकुमारी में समुद्र के बीच एक शिला पर बैठकर तीन दिन तक साधना में लीन होकर माँ भारती के दर्शन किये।अतीत के प्रति गौरव--!
वे दरिद्रनारायाण में ही इश्वर के दर्शन करते थे महान देशभक्त थे कहते थे कि भारत मानवता का सन्देश देने वाला वेदों के अनुसार जीवन जीने वाला पेड़- पौधों, पशु-पक्षियों, में जीवन आत्मा का दर्शन कराने वाला नदियों और पहाड़ो में भगवान के दर्शन करने वाला भोला-भाला समाज अपने गौरव शाली अतीत को भूल गया है उसे अपने इतिहास जो वेदों, उपनिषदों ब्राहमण ग्रंथो और पुराणों में है उस पर गर्व करना होगा, स्वामी जी सन १८९३ में सिकागो विश्व धर्म -परिषद में भारत प्रतिनिधि के रूप में पहुचे परिषद् में प्रवेश मिलना ही कठिन हो गया, उनको समय न मिले इसका भरपूर प्रयास किया गया, भला पराधीन भारत क्या सन्देश देगा--? सारा यूरोप तो भारत के नाम से ही घृणा करता था--! एक अमेरिकन के उद्द्योग से किसी प्रकार समय मिला और ११ सितम्बर १८९३ के उस दिन उनके अलौकिक तत्वज्ञान ने पश्चात् जगत को चौका दिया वे १८९६ तक अमेरिका में रहे और वैदिक संस्कृति का प्रचार करते रहे।
भारतीय आध्यात्म समुद्र के सामान
स्वामी जी उस धर्मसभा में समापन के अवसर पर बोलते-बोलते अपना भाषण कहा समाप्त करे समझ नहीं पा रहे थे उन्होंने एक कथा सुनाई मै उस कथा का उल्लेख करना चाहता हू, उन्होंने बताया की मेरे बाबा कहानी सुनाया करते थे, एक समुद्र का मेढक समुद्र से बाहर निकल कर घुमने लगा घूमते- घूमते थक कर पुनः समुद्र में जाने लगा की वह एक कुए में गिर गया कुए में बहुत सारे मेढक रहते थे, उससे पूछने लगे की तुम्हारा नाम क्या है ? कहा से आये हो -? समुद्र मेढक ने कहा की ये मेरा नाम है मै समुद्र में रहता हू तब-तक एक मेढक ने पूछा की तुम्हारा समुद्र कितना बड़ा है-? समुद्री मेढक ने कहा की मेरा समुद्र तो बहुत बड़ा है, कुए के एक मेढक ने अपने स्थान से तिन फिट उछला -- क्या तुम्हारा समुद्र इतना बड़ा है-? समुद्री मेढक ने कहा की मेरा समुद्र तो बहुत बड़ा है तब- तक एक दूसरा मेढक अपने स्थान से पाच फिट उछल जाता है कहा कि क्या तुम्हारा समुद्र इतना बड़ा है ? समुद्री मेढक ने फिर बताया की मेरा समुद्र तो बहुत बड़ा है तब-तक तीसरा मेढक कुए के एक छोर से दूसरी छोर तक उछला क्या तुम्हारा समुद्र इस कुए के बराबर है ? इस मेढक ने कहा की कैसे मै समझाऊ कि मेरा समुद्र कितना बड़ा है-? स्वामी जी उस भाषण को करते हुए कहा कि जैसे समुद्र का मेढक कुए के मेढको को यह बता नहीं पा रहा था कि मेरा समुद्र कितना बड़ा है, मै जिस भारत माता और हिन्दू संस्कृति का वर्णन कर रहा हू जिस वैदिक संस्कृति का वर्णन कर रहा हू वह कितना महान है मै आपको बता नहीं पा रहा हूँ, स्वामी जी का भाषण आज भी उतना ही प्रशंगिक है।
4 टिप्पणियाँ
महान व्यक्तित्व थे स्वामी जी.
जवाब देंहटाएंwe din-dukhiyo me ,dalidranarayan me hi bhawan ke darshan karte the unhone bharat mata ko hi aradhya mana.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल यथार्थ
हटाएंआज भी कई लोग है जो हमारे धर्म की महानता को नही समझ पा रहे है।स्वामी जी सच्चे मार्गदर्शक हो सकते है उन सभी के लिए।
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