वैदिक वांगमय मे केवल तैतीस देवताओं का वर्णन (याज्ञबल्क्य-गार्गी संवाद) जो तैतीस करोड़ बता दिए गए!!

भारतीय वांग्मय में नारी-!


भारतीय समाज मे हमेसा से महिलाओं का सम्मान रहा है वे शास्त्रार्थ करती थीं, वे वेद मंत्रों के दर्शन भी करतीं थीं, वे युद्ध मे सेनापति भी थी और राज्य संचालन का कार्य भी करती थीं जिन मातृ शक्तियों का वेदों मे नाम है उनमे से एक गार्गी भी हैं --!  

विदेह नरेश जनक की धर्मसभा मे 

कई विद्वान शास्त्रार्थ में ऋषि याज्ञवल्क्य से पराजित हो चुके थे कि वह (गार्गी) बोली 'हे याज्ञबल्क्य, जैसे काशी-नरेश या विदेह-नरेश, वीर पुरुष धनुष पर दो बांण चढ़ाकर हाथ मे दोनों बाणों को तानता हुआ सामने आवे उसी प्रकार मै भी दो प्रश्न लेकर तेरे सामने आई हूँ, याज्ञबल्क्य ने उत्तर दिया ''हे गार्गी ! तू पूछ '' !
वह बोली, 'हे याज्ञबल्क्य, जो कुछ आकाश के ऊपर है और पृथ्बी के नीचे है या आकाश और पृथ्बी के बीच मे है जो भूत है, बर्तमान है और भविष्य है, वह सब किसमे ओत-प्रोत है ?
 याज्ञबल्क्य ने उत्तर दिया, हे गार्गी ! जो कुछ आकाश लोक से ऊपर है, जो कुछ पृथ्बी के नीचे है या जो कुछ आकाश और पृथ्बी के बीच मे है, जो कुछ भूत, बर्तमान, या भविष्य है वह सब आकाश मे ओत-प्रोत है, वह ब्रम्हा है जो सभी जगह है पशु-पक्षी मे, 'अहं ब्रंहास्मी' हम और तुम है, उसी की बनाई सब रचनाए हैं वाणी भी, वायु भी, प्राण भी चराचर जगत भी सब ब्रम्हा ही है वह न तो नर है न ही मादा है, वह अजर-अमर है।  
जब गार्गी ने बहुत सारे संवाद किए पर--! यज्ञबल्क्य को परास्त न कर सकी यज्ञबल्क्य ने सभी का समुचित उत्तर दिया तब गार्गी ने कहा की हे विद्वान ब्रह्मणों अब इनसे कोई प्रश्न न करो इन्हे कोई भी पराजित नहीं कर सकता।

विदग्ध-याज्ञवल्क्य संवाद

अब विदग्ध शाकल्य ने उनसे पूछा, हे याज्ञवल्क्य, देव कितने हैं-? उसने उत्तर दिया, 'निवित' से पता चलेगा जीतने वैश्वदेव निवित ('निविन्नाम देवतासंख्या -वाचकानी मंत्रपदानी कानिचिद वैश्वदेवे शस्त्र शस्यन्ते तानि निवित्संज्ञकानि-) मे देव बताए गए हैं उतने ही हैं, तीन और तीन सौ, तीन और तीन हज़ार,यानी तैतीस सौ, उसने कहा अच्छा। ''1''
 फिर उसने पूछा हे याज्ञवल्क्य, देव कितने हैं ? तैतीस, अच्छा , हे याज्ञवल्क्य देव कितने हैं ? दो, अच्छा, हे याज्ञवल्क्य कितने देव हैं ? डेढ़, अच्छा । हे याज्ञवल्क्य देव कितने हैं? एक, अच्छा। तीन और तीन सौ, तीन और तीन हज़ार कौन से देव हैं ?''2''
याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया, इतनी तो इनकी महिमा (बिभूतियाँ) हैं, देव तो तैतीस ही हैं, आठ वसु, ग्यारह रुद्र, बारह अदित्या, ये हुए इकतीस, इन्द्र और प्रजापति, ये हुए तैतीस ''3''
'वसु कौन-कौन हैं' ? 'अग्नि, पृथबी, वायु, अन्तरिक्ष, आदित्य, धौ, चंद्रमा, नक्षत्र, ये वसु हैं।
इन्हीं मे सब जगत वसा हुआ है, यही सब जगत को बसाते हैं, इस सब जगत को बसाते हैं इसलिए इसका नाम वसु है। ''4''
'रुद्र कौन-कौन है' ? पुरुष के शरीर मे दस प्राण है और ग्यारहवाँ आत्मा, जब ये मर्त्य शरीर से निकलते हैं तो इनको रुलाते हैं, रुलाते हैं इसलिए इंका नाम रुद्र है। ''5''
'आदित्य कौन-कौन है' ? वर्ष के बारह मास, यह इस जगत को ग्रहण करते हैं इसलिए इनको आदित्य कहते हैं। ''6''
'इन्द्र कौन है-? और प्रजापति कौन है' ? स्तनयीत्नु इन्द्र हैं और यज्ञ प्रजापति हैं, 'स्तनयीत्नु क्या है' ? 'अशनि या बिजली', यज्ञ क्या है ? ''पशु''। ''7''
 'छः देव कौन' ? 'अग्नि,पृथबी, वायु, अन्तरिक्ष, धौ, ये छः देव हैं' यह सब छः देव हुए। ''8''
 'तीन देव कौन-कौन है' ? यही तीन लोक है इनहि मे से तो ये सब देव हैं, 'दो देव कौन हैं, ? ''अन्न और प्राण'', डेढ़ कौन हैं ? 'यह वायु जो बहता है'। ''9''
 तब कहा, यह तो एक ही है जो बहता है फिर यह डेढ़ कैसे हुआ ? इसी से तो सबकी समृद्धि होती है इसलिए डेढ़ हुआ, एक देव कौन हुआ ? वह ब्रम्हा हैं जिसको 'त्यद' कहते हैं। ''10''

फिर विदेह राज- याज्ञबल्क्य संवाद 

राजा जनक ने जब याज्ञबल्क्य से पूछा जो मै स्वप्न मे देखता हूँ वह भी सत्य दिखाई देता हैं जब जागता हूँ तो वह नहीं, शरीर व आत्मा वही है तो क्या सत्य है-? याज्ञबल्क्य ने कहा न ये सत्य है न वो सत्य है केवल ब्रम्हा सत्य है। ब्रम्हा यानी अहम ब्रंहास्मी, एकेश्वरवाद जहां ब्रम्हा यानी वेदज्ञ जिसे आदि शंकर ने ''ब्रम्हा सत्य जगत मिथ्या'' बताया और तुलसीदास ने कहा ''बिनु पग चलय सुनय बिन काना, बिन कर कर्म करय बिधि नाना'' जिसकी ब्याख्या याज्ञबल्क्य ने विदेहराज से किया ।
 विदेह ने पूछा कि गुरु कौन है ? याज्ञबल्क्य ने बताया माता, पिता प्रथम गुरु है, फिर जनक ने पूछा कि गुरु कौन है ? याज्ञबल्क्य ने उत्तर दिया जो शिक्षा देता है वह गुरु है, फिर विदेह ने पूछ की गुरु कौन है याज्ञबल्क्य ने बताया जो हमारे सनातन धर्म, अध्यात्म तथा आत्मा को परमात्मा के मिलन का रास्ता दिखाने की दीक्षा दे वही गुरु है। 
(शतपथ ब्राह्मण से --------!)                                        

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1 टिप्पणियाँ

  1. यह महान ज्ञान सर्व समाज के पास नहीं है हमारे पाठ्यक्रम मे सामील कर अपने महानतम इतिहास को बताना होगा नहीं तो हिन्दू समाज कुछ नहीं समझ पाएगा।

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