अजात शत्रु थे मा मुकुन्द राव

प्रथम भेट 

 मा मुकुन्द राव संघ के प्रचारक थे वैसे तो बैठकों मे तो कई बार उनसे भेट होती रहती थी एक बार गांधी नगर मे प्रांत प्रचारक बैठक (सन 2000 सायद) थी मुझे भी शायद मुंबई जाना था वे और मै एक ही कोच मे थे मेरे साथ दो कार्यकर्ता और थे मैंने उनसे पूछा की भोजन करेगे उन्होने सहज ही स्वीकार का लिया उस दिन पहली बार उनसे ब्यक्तिगत बात हुई उन्होने नेपाल के बारे मे कुछ पूछ- ताछ की उनका सहज और सरल ब्यक्तित्व था । 

और मेरी योजना धर्मजागरण में 

 यह कौन जनता था की उन्ही से मेरा पाला पड़ने वाला है कई बार बैठकों मे ''धर्म जागरण'' का विषय वे रखते थे उस विषय का पालन हम अपने प्रांत मे करते भी थे मेरी नेपाल से वापसी हुई मा भैया जी ने मुझसे बार्ता की कि आपको अब नेपाल से वापस आना है मैंने बेहिचक स्वीकार कर लिया वापस आने लगा तो पुनः बुलाया अरे पूछा भी नहीं कि क्या काम मिलेगा फिर उन्होने बताया कि संभव है कि धर्म जागरण का काम मिले--! चुनाव वर्ष था 1999 मार्च मा भैया जी सरकार्यवाह चुने गए जब घोषणा हुई तो मेरी भी घोषणा हुई मै ''मा मुकुन्द राव'' से मिलने गया वे बड़े सहज थे तपस्या उनके चेहरे पर झलकती थी और उन्होने मुझे सूरत की प्रांत प्रमुख बैठक मे बुलाया और मै उनके सानीध्य मे काम करने लगा, वे अच्छा भाषण नहीं करते थे उनकी तपस्या बोलती थी सहज ही वे सबसे काम ले लेते थे अपने कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाने व काम लेने की अद्भुत क्षमता थी उनमे वे जो कहते उसे कोई इंकार नहीं कर पाता था, सभी को लगता था की हमे ही सर्बाधिक मानते हैं, ऐसा उनका ब्यक्तित्व था ।

धर्म जागरण कि रचना 

उनका जन्म महाराष्ट्र 27 मई 1940 मे हुआ उनकी सारी शिक्षा दीक्षा मुंबई मे हुई संयोग से वही से प्रचारक निकले नगर प्रचारक, महानगर प्रचारक, प्रांत प्रचारक और क्षेत्र प्रचारक फिर 'अखिल भारतीय धर्म जागरण प्रमुख' के नाते मुंबई ही उनका केंद्र रहा, वे अत्यंत सहज और सरल प्रकृति के थे  कोई भी कार्यकर्ता अपने मन की बात उनसे कर सकता था कार्यकर्ताओं को पूरी छूट देते थे उनके अथक परिश्रम का ही परिणाम है कि देश भर मे धर्म जागरण के बड़ी संख्या मे कार्यकर्ता खड़े हुए उन्होने प्रत्येक विषय के चिंतन हेतु टोली बनाया और चिंतन के पश्चात धर्म जागरण के पांचों आयाम (परियोजना, प्रशासन, संस्कृति, विधि और निधि) खड़े किया सभी विषयों की अलग-अलग बैठके कर विषय की स्पष्टता की।

हरिहरनाथ मुक्तिनाथ यात्रा 

 मेरी योजना 2009 मे बिहार मे हुई उस समय मडला कुम्भ की योजना चल रही थी और अपने कार्य योजना का अभ्यास वर्ग जो इंदौर मे था उस समय उनसे निकटता बढ़ी मैंने एक कार्य योजना उनके सामने रखी कि मै एक यात्रा हरिहरनाथ से मुक्तिनाथ (नेपाल) तक निकालना चाहता हूँ उन्होने तुरंत स्वीकार कर लिया वास्तव वे किसी भी प्रयोग को करने कि छूट देते थे 2011 मे प्रथम यात्रा शुरू हुई वे स्वयं सोनपुर आए बड़े नजदीक से उन्होने सब कुछ देखा वे अपनी पैनी दृष्टि भी रखते थे पर हस्तक्षेप नहीं करते कुछ गलती होती तो बाद मे बताते, यात्रा बड़ी लंबी 750 किमी की थी प्रत्येक वर्ष चलनी थी प्रथम बार की यात्रा मे मा मुकुन्द राव, मा स्वांत रंजन जी, महंत विश्वनाथ दस शास्त्री सहित बड़ी संख्या मे संत महंत थे उन्होने प्रत्येक कार्यक्रम मे भाग लिया गंगा आरती, रात्री के सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रातः 10 बजे की धर्म सभा, रथ की बिदाइ के लिए तत्कालीन पर्यटन मंत्री सुनील कुमार उपस्थित थे यात्रा चल दी उनको जाना था वे मेरे कमरे मे आए पूछा की कितना घाटा लगेगा मैंने उन्हे बताया की इतना रुपया आया है उन्होने कहा चिंता नहीं करना और मुंबई चले गए। उन्होने यात्रा के घाटे की  पूरी ब्यवस्था की इतना ही नहीं क्षेत्र मे पूर्ण कालिक कार्यकर्ता होने चाहिए उसके लिए प्रोत्साहित करना और सब प्रकार की ब्यवस्था करना चिंता करना उनके स्वभाव मे था, वे कठिन से कठिन कार्य को बड़ी सरलता से करा लेते यह उनका गुण था । 

अभिभावक की भूमिका 

 यात्रा मे तो वे प्रथम बार हरिहर नाथ मंदिर उदघाटन के सारे कार्यक्रम मे रहकर चले गए लेकिन जब अगले वर्ष की सूचना दी तो उन्होने कहा कि मै इस साल यात्रा मे आगे तक चालूगा और उन्होने 100 किमी प्रथम दिन की यात्रा पूरी की मुजफ्फरपुर जिले के पारु ब्लॉक फतेहवाब गंडक नदी के किनारे विशाल धर्म सभा मे उन्होने कहा " हज़ार वर्ष की पराधीनता विगत तेरह सौ वर्षों के आक्रमणीय भारत की संस्कृति, परंपरा, रीति-नीति, चिंतन, चरित्र, विचार और ब्यवहार सभी को प्रभावित किया है, भारत को अक्षुण बनाये रखने का कार्य इस प्रकार की यात्राओं के माध्यम से संतों ने किया है, इन यात्राओं से समाज मे ब्याप्त भेद-भाव कुरीति को समाप्त कर समरस भाव प्रकटाएगे, हमे अपनी संख्या बढ़ाना है, जहां -जहां हिन्दू कम हुआ वह भाग अपने पास नहीं रहा, हमे अपनी पाचन क्रिया बढानी होगी, विधर्मी हुए बंधुओं को स्वधर्म मे लाना होगा तभी हमारा लक्ष्य पूरा होगा ।

अपनी कठिनाई पर विजय 

 मुकुन्द राव का लगभग प्रत्येक प्रांत मे प्रति वर्ष दौरा होता था वे सीवान के प्रांत अभ्यास वर्ग मे आए संयोग से भारत के प्रथाम राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू का गाव था वे बहुत प्रसंद हुए तीन दिन का वर्ग था उन्होने दो ही कालांश लिया वे एक-एक कार्यकर्ता को प्रशिक्षित करते थे एक बार जिसका परिचय लेते उन्हे याद हो जाता नाम लेकर ही पुकारते कभी अलग से सुबिधा की चिंता नहीं करते, उन्होने कहा कि यदि यात्रा हमेसा निकलनी है तो इसका प्रशिक्षण वर्ग करना चाहिए, वर्ग प्रसिद्ध धार्मिक स्थान अरेराज मे तय हुआ, हरिहरनाथ यात्रा का अभ्यास वर्ग था वे चंपारण जिले के अरेराज आए हुए थे जिस कार्यकर्ता के यहाँ उन्हे ठहराया गया था मै भी उसी मे था पता चला उसमे कमोड नहीं है कार्यक्रम जब समाप्त हो गया हम लोग पटना वापस आए तब गोपाल नारायण सिंह ने हमे बताया की उस सौचालय मे कमोड नहीं था उन्हे कठिनाई हुई वे सामान्य सीट पर बैठ नहीं सकते थे लेकिन उन्होने कुछ नहीं बताया वास्तव मे बड़े ही कार्यकर्ताओं का ध्यान रखते बहुत कम मे काम चलते कठिनाई झेल जाते, पटना मे 2013 का संत सम्मेलन था कैसे होगा इसकी बड़ी चिंता थी देश के सभी संत चाहते थे की सम्मेलन पटना मे होना चाहिए, लेकिन कुछ कारण था कैसे हो पटना मे लेकिन मुकुन्द राव बिलकुल हमेसा खड़े रहते कितनी भी कठिनाई हो साहस बढाते, "राणीसती" मे कार्यक्रम तय था सभी के रहने की ब्यवस्था कई स्थानों पर थी अपने एक कार्यकर्ता जिसने कार्यक्रम का हाल बुक कराया था कहीं कोई गलती हो गई तीन दिन के स्थान पर दो दिन ही बूक हुआ जब मुकुन्द राव को पता चला ब्यवस्था हो रही थी वे कुछ नहीं बोले बड़े सहज तरीके से कार्यक्रम पूरा हो गया कुछ लोग तो समझ भी नहीं पाये की क्या हुआ ? बाद मे समीक्षा बैठक मे उन्होने पूछा की यह कैसे गलती हो गई जब मैंने कार्यकर्ता का नाम बताया तो उन्होने एक वाक्य मे सब समाप्त किया कहा की उस कार्यकर्ता को कुछ नहीं कहना ऐसे थे मुकुन्द राव ।

कार्यकर्ताओ के लिए अद्भुत चिंता 

एक बार क्षेत्र प्रमुखों की बैठक जलगांव के पास एक गाँव मे थी अच्छी ब्यवस्था थी मै जलगांव स्टेशन पहुंचा था की मेरे पैर मे बहुत दर्द शुरू हो गया मेरा पुराना रोग यूरी केसिड बढ़ गया था बहुत तेज दर्द था मा मुकुन्द राव को पता चला वे मेरे कमरे मे आए डाक्टर तो आया ही वे अभिभावक की भाति खड़े रहे फिर उन्होने अपने झोले से धनिया निकला मुझे दिया अपने बोतल मे डाल लो इसका पानी बात रोग मे फायदा करता है मैंने डाक्टर की दवा तो ली ही, उसी के पश्चात मै अपने पास झोले मे हमेसा धनिया रखता हूँ मुकुन्द राव अपने पास हमेसा धनिया रखते थे, नागपुर मे बैठक थी मेरी गाड़ी प्रातः 3.30 बजे थी वे 2.30 बजे ही मेरे कमरे के सामने आए सूबेदार जी चाय तैयार है आपकी गाड़ी है न, मै नीचे उतारा चाय पी मुझे छोड़ने के लिए कार खड़ी थी वे कितनी चिंता करते थे कल्पना नहीं कर सकते एक-एक बिन्दु की चिंता करना उनका स्वभाव था उनके कारण किसी को कष्ट नहीं हो यह चिंता लेकिन दूसरे को कोई कष्ट न हो इसकी स्वयं चिंता करना अद्भुत जीवन था छण-छण संघ के लिए जिये ऐसे थे मुकुन्द राव ।     

पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते-!    

वे बैठकों मे कहते थे की धर्म रक्षा समितियों के माध्यम से कार्यकर्ता खड़ा कर अनेक क्षेत्रों मे देना है वे स्वामी श्रद्धानंद तथा स्वामी लक्षमना नन्द के प्रति अगाध श्रद्धा रखते थे उनके अधूरे कार्य ( घर वापसी) को पूरा करने उसे अपना ही कार्य मानते थे। बार-बार संकल्प दुहराने और इन्हीं आधार पर धर्म जागरण का कार्य की आधार शीला रखी देश के प्रत्येक प्रांत मे कार्य खड़ा हो गया घर वापसी शुरू हो गयी, सभी प्रान्तों ने 2021 मे हम संकल्पित परिवर्तन लाएगे ऐसा मुंबई बैठक ppt द्वारा बृत प्रस्तुत किया गया, नागपुर का अभ्यास वर्ग उन्होने बड़ी योजना से किया और देश का खाका प्रस्तुत कर कार्यकर्ताओं मे विस्वास पैदा किया जो मिल का पत्थर साबित हुआ।  
 हिन्दू जगाओ, हिन्दू बचाओ, 
 हिन्दू बढ़ाओ, हिन्दू सम्हालो।
वे 7 नवंबर 2015 प्रातः काल कार्य करते-करते चले गए वे कार्यक्रम से लौट रहे थे ट्रेन मे ही उन्होने इहलोक की यात्रा पूरी की, उन्होने अपने वचन को निभाया "पततवेष कायो" एक भी छण विश्राम नहीं लिया वे हमेसा याद आएगे और जब-तक यह कार्य चलेगा वे हमारे प्रेरणा के श्रोत बने रहेगे ।                
सूबेदार 
मुजफ्फरपुर 

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