इस्लाम को समझना है तो उनके अंदर की सच्चाई समझनी होगी ---!

इस्लाम जो हमेसा समानता की बात करता है

झूठ की खेती

मुसलमान यह कहते नहीं अघाते कि इस्लाम प्रेम मुहब्बत का धर्म है। इस्लाम में सबके लिए समान अधिकार है। समरसता और समता है लेकिन यह सब झूठ ही नहीं सत्य पर केवल पर्दा डालने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। इस्लाम उसी प्रकार है जैसे "सत्यार्थ प्रकाश" में 'ऋषि दयानंद सरस्वती' ने एक कथा के माध्यम से इस्लाम को समझाया है जिसे 'नक-कटा सम्प्रदाय' बताया है जिसकी जिसकी नाक कटी वह दूसरे की नाक कटाने के लिये उसकी महिमा मंडन करता। उसी प्रकार इस्लाम है वास्तव में इस्लाम का पहला शिकार मुसलमान हुआ, अधिकांश मुसलमानों को कुरान और हदीस की जानकारी नहीं है। उन्हे जो उनके मौलाना बताते हैं वे उसी को मानलेते है की यही सब कुरान मे लिखा है। यही कारण है जो - जो मुसलमान कुरान हदीस पढता है वह या तो इस्लाम छोड़ देता है अथवा भी आतंकवादी वन जाता है।
 कुरान की जिस सूरा में चार पत्नियां रखने की अनुमति है, ये शब्द भी है:-- 'जिन दासियों को तुमने प्राप्त किया है।' फिर 70वी 'सूरा' में यह बताया गया है कि दासियों के साथ रहना कोई पाप नहीं है।' यह तरीका रखैलों के साथ रहने का है जिसका कुरान ने खुलकर इजाजत दी है।
"इस तरह गुलामी के मामले में कुरान मानवता का शत्रु है और महिलाएं सर्बधिक उत्पीड़ित हैं।"  

अब जाति प्रथा को ही लीजिए 

"-- गुलाम या दासप्रथा समाप्त हो जाने में मुसलमानों का न कोई योगदान है न ही प्रयास ! किसी मुसलमान पर यह दायित्व नहीं है कि वह अपने गुलामों को मुक्त कर दे।" गुलामी भले ही विदा हो गई लेकिन जाति प्रथा कायम है, 1901में बंगाल प्रान्त के जनगणना अधीक्षक ने बंगाल के मुसलमानों के बारे में रोचक जानकारी दी है-!
"मुसलमानों का चार वर्गों शेख, सैयद, मुगल और पठान में परंपरागत विभाजन इस प्रान्त में प्रायः लागू नहीं है, मुसलमानों में दो मुख्य सामाजिक विभक्त मानते हैं :---
 1- अशरफ अथवा शरफ़
2- अज़लफ।
अशरफ से तात्पर्य है कुलीन और इसमें विदेशियों के वंशज तथा ऊँची जाति के धर्मान्तरित हिंदू सामिल हैं। व्यावसायिक वर्ग और निचले वर्ग के धर्मान्तरित हिंदू शेष अन्य मुसलमान अज़लफ अर्थात नीच अथवा निकृष्ट ब्यक्ति माने जाते हैं, क़ुछ स्थानों पर एक तीसरा वर्ग 'अरजल' भी है शामिल है जो सबसे नीच समझे जाते हैं उनके साथ कोई अन्य मुसलमान मिलता जुलता नहीं और न ही उन्हें मस्जिद, कबरिस्तान में सार्वजनिक प्रबेश है।

वे इस प्रकार है


1- 'अशरफ' अथवा उच्च जाति के मुसलमान
अ- सैयद, ब- शेख, स- मुगल, द- पठान, प- मिर्जा, फ- मलिक

2- अफजल अथवा निम्न वर्ग के मुसलमान
ये मुलतः धर्मान्तरित हिंदू -- अ- दर्जी, जुलाहा, फकीर, नट और रंगरेज़। ब- चिक, कसाई, कुला, कुजरा, मल्लाह, नालिया, निकारी, गद्दी, नाइ, धोबी, धुनिया, भटियारा बढ़ी इत्यादि। स- बाको, बेड़िया, भाट, चम्बा, डफाली, मदारी, तुंतिया।

3- अरजल अथवा निकृष्ट वर्ग
भानार, हलालखोर, हिजड़ा, लालबोगी, मेहतर और कसबी।
एक जाति का किसी दूसरी जाति में प्रवेश नहीं हो सकता, उसे अपने उसी जाती में कायम रहना पड़ता है जिसमे उसने जन्म लिया था।

( डॉ आंबेडकर -पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन, सत्यार्थप्रकाश-ऋषि दयानंद सरस्वती, हदीस )

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