1857 स्वतंत्रता संग्राम के योजक


राज्य अनेक राष्ट्र एक

भारत के राजा-महाराजा व विभिन्न राज्यों के अलग अलग होने के बावजूद भारत एक राष्ट्र के रूप में हमेशा रहा, पहले भारत में अश्वमेध यज्ञ होता था, चक्रवर्ती सम्राट की ब्यवस्था थी, हमारे रजवाड़ों में विबाद भी होता था आपस में लड़ते भी थे लेकिन जब कोई परकीय हमला होता तो पूरा देश एक साथ खड़ा हो जाता था। राज्य और राजा अलग अलग होने के बावजूद राष्ट्र एक हुआ करता था।
कभी यवनों के आक्रमणों के मुकाबले के लिए सारा देश एक साथ लड़ा और विजयी हुआ परकीय टिक नहीं पाये, उस समय भी कोई आचार्य चाणक्य योजनाकार रहे होंगे, पश्चिम से आतंकी इस्लामिक हमलों का लंबा संघर्ष का इतिहास रहा है मुकाबलों के लिए कोई हरित मुनि, स्वामी रामानंद, संत रविदास, संत कबीरदास, स्वामी समर्थ रामदास जैसे योजनाकारों ने इन आततायियों को समेट कर रख दिया, इसी प्रकार ब्रिटिश साम्राज्य की ईंट से ईंट बजाने उनकी चूले हिलाने वालों में ऋषि दयानंद सरस्वती जी का नाम अग्रगणी है।

सन्तों राजाओं में आक्रोश

यह बात सत्य नहीं है कि पूरे देश में अंग्रेजों का शासन था वास्तविकता यह है कि हमारे राजाओं से समझौता किया और उन्हें धोखा दिया इसलिए यह कहना कि भारत ब्रिटिश साम्राज्य का गुलाम था यह सत्य नहीं है। देश में अंग्रेजों का तथाकथित शासन था भारतीय राजाओं को आपस में लड़ाने का काम पहले ब्यापार करना फिर भारतीय राजाओं से अनुमति लेकर सुरक्षा कर्मी भर्ती के नाम पर सेना की भर्ती कराना धोखे पर धोखाधड़ी करने से सारे राजे रजवाड़ों में भयंकर आक्रोश व्याप्त हो गया था। तब तक बहुत देर हो चुकी थी, देश के साधू संत भी आक्रोशित हो गए थे, उधर अंग्रेज भी अपनी शक्ति बढ़ाते जा रहे थे, अब भारतीयों के सिर में पानी ऊपर हो गया था।

1857 स्वतंत्रता संग्राम का ताना बाना

1857 के सशस्त्र संघर्ष व क्रान्ति का ताना बाना 1855 में ही तैयार हो चुका था जिसके नेतृत्व कर्ता स्वामी दयानंद सरस्वती ही थे, जिसमें नानासाहेब पेशवा, तात्या टोपे, बाबू वीर कुंवर सिंह, बालासाहेब और अजीमुल्ला खां सहित देश के तमाम राजा महाराजा उपस्थित थे, इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए स्वामी जी आबू पर्वत से पैदल चलकर हरिद्वार कुम्भ में पहुंचे थे। रास्ते में स्थान स्थान पर प्रवचन करते देश वासियों की नब्ज टटोलने का काम किया, उन्होंने अनुभव किया कि लोग अब अंग्रेजों से तंग आ चुके हैं, स्वामी जी हरिद्वार पहुंच अलग स्थान पर डेरा जमाकर प्रथम विमर्श में पांच लोगों को शामिल किया इसमे नानासाहेब, बालासाहेब, तात्या टोपे, बाबू वीर कुंवर सिंह और अजीमुल्ला खा थे बात चीत बहुत लंबी चली, तय किया गया कि फिरंगी सरकार के विरुद्ध सम्पूर्ण देश में सशस्त्र क्रान्ति के लिए आधार भूमि तैयार किया जाएगा। उसके बाद एक निश्चित समय पूरे देश में एक साथ क्रान्ति का बिगुल बजा दिया जाय, उसी बैठक में क्रांति की आवाज पहुचाने के लिए "रोटी और कमल" की योजना यहीं तैयार की गई। इस संपूर्ण विचार विमर्श में स्वामी दयानंद सरस्वती की महत्वपूर्ण भूमिका रही, इस बैठक में बाबू कुँवर सिंह ने जब अपने संघर्ष की सफलता के लिए स्वामी जी से पूछा तो उनका उत्तर बेबाक था "स्वतंत्रता संघर्ष कभी असफल नहीं होता, भारत धीरे धीरे एक सौ वर्ष में गुलाम बना है इसको स्वतंत्र होने में एक सौ वर्ष लग जायेंगे इस स्वतंत्रता प्राप्त करने में बहुत से अनमोल प्राणों की आहुति डाली जाएगी।" स्वामी जी की भविष्यवाणी कितनी सही निकली इसे घटनाओं ने प्रमाणित कर दिया। स्वतंत्रता संग्राम असफल होने के बाद जब तात्या टोपे, नानासाहेब पेशवा व अन्य राष्ट्रीय नेता स्वामी जी से मिले तो उन्हें निराश न होने की तथा उचित समय की प्रतीक्षा करने की सलाह दी।

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