चित्तौड़ राजवंश के संस्थापक महान पराक्रमी "बाप्पा रावल"

 


सीमा रक्षक महाराजा दाहिर

घटना 712 ईसवी की है उस समय सिंध के शासक महाराज दाहिर सेन थे। राजा दाहिर बड़े प्रतापी राजा थे, राज्य धन धान्य से परिपूर्ण था उस समय तक भारतवर्ष के लोग अथवा हिंदू समाज को इस्लाम के बारे में जानकारी नहीं थी। वे यह समझते थे कि ये लोग भी हम लोगों जैसे ही मनुष्य हैं उन्हें क्या पता कि ये मनुष्य न होकर य मोमिन हैं जहां मानवता के लिए कोई स्थान नहीं है। अरबों की एक बड़ी ख्वाहिश थी गजवाये हिंद की उसी समय खलीफा ने एक सेनापति जिसका नाम था मुहम्मद बिन कासिम। उसने महाराजा दाहिर पर इ.स. 712 में हमला कर दिया वह कई बार पराजित होकर वापस लौट गया था। लेकिन उसने यह हरकत बार बार किया राजा दाहिर ने उसे बार बार छमा कर दिया प्रत्येक बार वह कुरान की कसम खाता था। एक बार वह पराजित होकर वापस अपने कैम्प में बैठा था तभी एक हरकारा मुहम्मद बिन कासिम से मिलने आया बताया कि उससे एक ब्राह्मण मिलना चाहता है उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि ब्राह्मण तो देशभक्त होता है लेकिन वह ब्राह्मण बहुत कम स्वर्ण मुद्राएं में बिक चुका था। (लेकिन वह ब्राह्मण के वेष में बौद्ध मतावलंबी था और बौद्ध मतावलंबी को देश से कोई मतलब नही!) कासिम ने पूछा मैं कैसे जीतूंगा उसने कहा कि जब राज्य ध्वज झुका दिखायी देगा तो सेना का मनोबल टूट जाएगा और आपकी विजय हो जायेगी। लेकिन यह कैसे होगा ? उसकी जिम्मेदारी मेरी हुई और ठीक युद्ध के समय ध्वज झुक गया सेना हतोत्साहित हो गई और अंत में धोखे से महाराजा दाहिर पराजित ही नहीं हुए बल्कि मारे गए।

दाहिर की बेटियां का प्रतिशोध 

सिंध के पतन के पश्चात राजपरिवार लगभग समाप्त हो गया, राजा दाहिर की दो पुत्रियां थीं सूर्या और प्रमिला वे बड़ी सुंदर और कुशल थीं। मुहम्मद बिन कासिम को लगा कि यदि हमने इन दोनोँ सुंदरियों का तोहफा "खलीफा" को दिया तो खलीफा बहुत प्रसंद होगा। लूट के माल सहित 34 हजार महिलाओं को अरब में बेचने के लिए ले गए ग़ुलाम बनाकर अलग से लेकिन इन राजकुमारियों को खलीफा के लिए भेजी गई तो वहाँ खलीफा के सामने वे जोर से रोने लगी कि हम दोनोँ आपके लायक नहीं हूँ ! क्योंकि कासिम ने मुझे अपवित्र कर दिया है। फिर क्या था खलीफा ने फरमान सुनाया की मुहम्मद बिन कासिम को एक जानवर के खोल में सिलकर मेरे पास लाया जाये। और सिंध से आते आते वह अरब नहीं पहुँच सका पहले ही मर चुका था! उन राजकुमारियों ने अपना बदला ले लिया और उंगली में पहनी हुई हीरे की अंगूठी चाट कर स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया।

ब्रह्मणावाद की महारानी और हरित मुनि 

सिंध के पतन के पश्चात! सिंध चुप नहीं बैठा यह बात ठीक है कि बौद्धों ने देश के साथ गद्दारी की लेकिन हिंदू समाज बदला लेने को आतुर दिखा। गांव गांव में प्रतिदिन हिन्दुओं को जगाने की आवाज़ आती थी लोग डर जाया करते थे लेकिन कुछ दिनों में यह बात ध्यान में आ गई कि ये आवाज़ किसी और की नहीं बल्कि ये देवल की महारानी की है वह प्रतिदिन हिंदू समाज को जगाने का काम किया करती थी तभी उसे एक दिन हरित मुनि से भेंट हो गई अब वह अकेले नहीं थीं बल्कि दो हो गए और हिंदू समाज को संगठित करने के लिए प्रयत्नशील हो गई।

मिल गया हिंदू धर्म रक्षक

देवल और राजपुताना की सीमा पर जंगलों में ये हरित मुनि और देवल की रानी दोनों सेनापति खोज रहे थे, साधू बोला "राजरानी, तुम यहीं बैठो।" "आप किधर जा रहे हैं ?" "जिधर वह अदृश्य शक्ति ले, जो यहां तक ले आयी है वही मुझे ले जाएगी।" रानी ने पूछा-- वापस कब आओगे।" "जब भी आ सका उस साधू ने उत्तर दिया, जैसे उसकी इक्षाशक्ति पर किसी अदृश्य दैवी शक्ति का अधिकार हो गया हो। पुनः कहने लगा, आपके पास आज शायम तक का भोजन है।" देवी यह विषधर आपकी रक्षा करेगा!  तभी नीचे उतरने पर एक दृश्य दिखाई दिया लोमड़ी के चर्म से बने लगोंट और बाघों के खालों बने छातियों तक के जंगली वस्त्र पहने तरकस कंधों पर डाले और लंबे लंबे धनुष हाथों में लिये एक नवजवान कुछ भील नवजवानों को सैनिक अभ्यास करा रहा है। तभी हरित मुनी यह सब नजारा देख रहे थे। 

बप्पा से रावल 

ईडर में गुहिल राजवंश का शासन था, वहाँ का राजा नागदित्य था भीलों और गुहिलों में भयानक युद्ध हुआ। वास्तविकता यह थी कि वहाँ मूल शासक भील थे, भयानक युद्ध हो रहा था तभी एक सरदार ने जोर से आवाज की गुहिल राज़ नागदित्य मारे गए फिर क्या था! गुहिलों में भगदड़ मच गई। युद्ध इतने पर समाप्त नहीं हुआ भीलों ने राजमहल पर धावा बोला क्योंकि होने वाला राजकुमार तो राजमहल में है लेकिन किले के रक्षक दृढ़ इच्छाशक्ति वाले थे । उन्होंने भीलों को रोक लिया घंटों युद्ध हुआ किले का दरवाजा खुला लेकिन रानी ने तो जौहर किया, एक सेविका जिसका नाम "कमलावती तारा" था उसने तीन वर्षीय राजकुमार को अपने पीठ में बांधकर सैकड़ों मील "ईडर राज्य" के सीमा पार पहुँच! जंगल में एक गाँव दिखा जो भीलों का था तारा को थकान और बच्चे को भूख लगी थी तारा ने भील सरदार से कहा कि भील वचन के पक्के होते हैं इस वच्चे की सुरक्षा का वचन दो! यह सुनकर भील सरदार ने बचन देकर एक सुरक्षा हेतु अपने विस्वसनीय भीलों को साथ कर दिया वह बालक और कोई नहीं वह मेवाड़ का राजकुमार कालभोज (बप्पा) था। धीरे धीरे बप्पा बड़ा हो गया अपने भील मित्रों के साथ घुड़सवारी, सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त किया करता था और तारा उसे बार बार समझती की "तू राजा का पुत्र है, तुम राजा हो तुम्हे चित्तौड़ की गद्दी पर बैठना है" उसकी तैयारी रातों दिन करता रहता था। अब बप्पा 18 वर्ष का हो गया भीलों ने उसे रावल की उपाधि दी, सारे भील उससे इतना प्रेम करते थे कि उसका नाम "कालभोज" न लेकर उसे प्रेम से "बाप्पा" कहने लगे अब वह केवल बप्पा ही नहीं तो अब वह "बप्पा रावल" हो गया है। उस समय चित्तौड़ का शासक "मान मौर्य" था, बप्पा ने हज़ारों की भील सेना तैयार कर "मान मौर्य" को पराजित कर बिना किसी खून खराबे के चित्तौड़ का शासक बन गया।

भीलों का राजा बाप्पा (कालभोज)

थोड़ी देर में उन्होंने देखा कि एक गाय जंगल में भीतर चली जा रही है और एक नवजवान उसके पीछे पीछे चला जा रहा है देखा कि अंधेरा होने वाला है तभी वह गाय एक जगह खड़ी हो गई और उसके स्तन (थन) से अपने आप दूध गिर रहा है आश्चर्य वह पत्थर नहीं वह तो शिवलिंग था साक्षात शंकर! खंडहर ! हरित मुनि की दृष्टि गई खुशी का ठिकाना नहीं रहा फिर क्या देखा कि वह नवजवान उस गाय का दूध पी रहा है। मन ही मन वे बहुत प्रसन्न हुए उन्हें लगा कि मैं जिसे खोज रहा था मिल गया, वह नवजवान कोई और नहीं बल्कि बप्पारावल था। "बाप्पा का चरित्र और आचरण दोनोँ प्रशंसनीय है कुछ लोग शायद यह कहें कि इसके माता पिता का कोई पता नहीं है। यह ठीक है कि बाप्पा हमे जंगल में मिला था हमने ही इसे पाला पोसा है इसलिए यह भील पुत्र है। आज से हम इस वीर, मेधावी, सद्चरित्र, सौभाग्यशाली युवक को अपना राजा चुनते हैं।" एक भील ने तलवार बाप्पा के कमर में बांध दिया, शरीर से पुरानी खाल उतार कर नयी खाल उढा दी, मस्तक पर मुकुट पहना दिया! तदनुसार कुछ कदम पीछे हटा घुटने टेक कर बप्पा को प्रणाम किया---! "भील राजा बप्पा रावल की जय!" सैकड़ों आवाजे एक साथ वायुमंडल में गूँज उठी।

जिन खोजा तिन पाइयां 

साधू की आखों में चुम्बकीय आकर्षक था वह सीधा उसी स्थान पर जा खड़ा हुआ, जहाँ बप्पा और भील मुखिया खड़ा था, हरित मुनि ने सब कुछ देख लिया था, साधू से मुखिया ने आशीर्वाद देने का आग्रह किया कि आप इस अवसर पर हमारे महाराज को आशीर्वाद देने आए हैं। हरित मुनि ने बप्पा से पूछा कुछ कर पाओगे! "आपके आशीर्वाद से अपना कर्तब्य पूरा करूँगा।" बप्पा ने विनम्र पुर्बक उत्तर दिया। फिर उसने बप्पा के सिर पर तीन बार दुर्बा घास से जल छिड़का और कहा "बप्पा तू रावल से राणा, राणा से महाराणा और साम्राट, चक्रवर्ती सम्राट बनेगा। हर प्रातः तेरे लिए विजय और संध्या तेरे लिए आह्लाद की शुभ सूचना लाएगी।" परिस्थितियों का वर्णन करते हुए ऋषि बोले "इन परिस्थितियों में आज नहीं तो कल नहीं तो परसों देश की स्वतंत्रता अवश्य समाप्त हो जाएगी और हमारा धर्म लुप्त हो जायेगा। और हरित मुनि ने बप्पा को वहाँ का हिंदू सेना का सेनापति घोषित कर दिया, और एक लाख भीलों की सेना तैयार कर मेवाड़ की ओर बढ़ गए।

अब मेवाड़ की ओर

चलने को तैयार हो कर आ गए युवक? "हा महराज! बप्पा ने उत्तर दिया। और तुम भील सरदार!"  साधू ने एक पहाड़ी पर आकर रुक पूछा! बप्पा रावल तुम इधर के मार्गों से परिचित हो, बप्पा ने बताया जी परिचित हूँ, भगवान एकलिंग का मंदिर है बाप्पा को सब ध्यान में आ गया गाय तो वहीं अपना दूध शिवलिंग पर चढ़ाती है। वही मंदिर जिसका भग्नावशेष खड़ा है! आगे बढ़ने पर हरित मुनि को ध्यान में आया कि कोई चिंतित घुड़सवार बैठा हुआ है उन्होंने बप्पा रावल को वहीं रोक लिया और उस घुड़सवार के पास पहुंच गए। उन्हें निकट आते देखकर सवार अपना सिर ऊपर उठाया और साधू देख दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम किया। साधू आशीर्वाद देने के बाद पूछा कि आप कौन हैं ? महाराज मैं मेवाड़ का मयूरी राजा मान हूँ। हरित मुनि ने पूछा कि आप यहाँ चिंतित क्यों बैठे हैं ? "महाराज राजाओं की चिंता को राजा ही जान सकते हैं, हर किसी के सामने उनका वर्णन नहीं किया जा सकता है आप अंधेरी गुफा में बैठकर ध्यान करने वाले साधू हैं, राजनीति की बात को आप क्या समझेंगे ?" साधू ने कहा कि हो सकता है कि मैं आपको उचित सलाह दे सकूँ! जब राजाओं के मंत्री सहयोग नहीं कर सकते तो सन्यासी उपयोगी परामर्श दे सकें। 

राजा मान और बाप्पा का प्रशिक्षण 

सन्यासी ने मेवाड़ राजा मान को अरब खलीफा के सेनापति के बारे में पूरी जानकारी दी तो राजा आश्चर्यचकित हो गए और कहा कि आप को मेरी चिन्ता की जानकारी है। इस पर सन्यासी चुप नहीं हुआ उसने पूछा कि जब सीमा रक्षक सम्राट दाहिर पर इस्लामिक हमले हुए तो अन्य भारतीय राजा चुप क्यों थे क्या वे इसी दिन का इंतजार कर रहे थे, राजा अपनी ब्याकुलता छिपा नहीं सका! "कौन कहता है कि सिन्ध के पतन पर हृदय को आघात नहीं पहुंचा जितना दुःख सिंध के अधःपतन का जितना मेरे हृदय को हुआ शायद उतना किसी को हुआ हो।" सिंध एक एक गांव जलाया जा रहा था तब राजस्थान के राजाओं को दिखाई नहीं दिया, राजा मान ने बात आगे बढ़ाई हम अपनी छमता से लड़ेंगे दुर्भाग्य है कि मेरे राज्य में सामंत बहुत हैं लेकिन दो सामन्त ही विस्वसनीय हैं और बीस हजार सैनिक राज्य भंडारों के सहारे कई वर्षो तक निरंतर युद्ध कर सकते हैं इतनी खाद्य सामग्री हमारे पास है। सन्यासी ने राजा से कहा कि चिन्ता न करते हुए अपने राज्य में युद्ध की तैयारी करें और राजा मान मेवाड़ चले गए। अब बप्पा रावल और हरित मुनि उसी खंडहर यानी एकलिंग मंदिर पहुचे जहाँ महाराजा दाहिर की रानी उनका इंतजार कर रही थी। बप्पा रावल ने उस सिर झुकाए हुए रानी को देखा प्रणाम किया कहा आपके अंदर की ज्वाला सारे "अरबदेश" को जलाकर खाक कर देगी। अब वे मेवाड़ राजा मान के अतिथि शाला में आतिथ्य ग्रहण के साथ बप्पा को प्रशिक्षित भी कर रहे हैं। हरित मुनि ने कहा--! यदि हिंदू न रहे तो आप भी नहीं रहेंगे, शायद संसार में ईसा, मूसा, आदम अथवा सुलेमान के रूप में पूजा अर्चना होगी! ब्रम्हा विष्णु महेश के नाम का अस्तित्व नहीं रहेगा। और अब हरित मुनि ने अपने हाथों से बप्पा को एक यज्ञोपवीत, एक खड्ग और एक मुकुट समर्पित किया। "इन्हे सदा अपने पास रखना वत्स!" बाप्पा ने म्यान से तलवार निकाली भीलों की विशाल सेना लेकर बप्पा अपने राज्य अधिकार प्राप्त करने चित्तौड़दुर्ग राजा मानको यह पता चल गया था कि चित्तौड़ का वास्तविक अधिकारी बप्पा ही है बहुत आसानी से बिना किसी खून खराबे के बप्पारावल राजसिंहासन पर विराजमान हुए ।

बाप्पा रावल का धर्म युद्ध

चित्तौड़ सेना की कमान बप्पा रावल के हाथ में थी, उसी के आदेशों का पालन हो रहा था। बप्पा ने 25 हज़ार युवकों का एक दस्ता पीछे छोड़ दिया था ताकि आवश्यकता पड़ने पर वे नए दस्ते के रूप में नए जोस से लड़ सके। दाएं और बाएं हिस्से पर चित्तौड़ के सामंत बलराम सिंह और रणबाघ सिंह डटे हुए थे मध्य भाग में स्वयं बप्पा रावल। हरित मुनि और राजा दाहिर की विधवा रानी सेना के साथ अलग अलग ऊँटों पर चढ़े युद्ध का नजारा देख रहे थे। बलराम सिंह ने शंखनाद किया और खलीफा के सेनापति से बोला--! भारत वासियों ने तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा है इस प्रकार खून की होली खेलना अनुचित है। हम स्वतंत्रता से अपने देश में रहना चाहते हैं ! सेनापति सलीम जोर से चिल्लाया "हिन्दुओं! अल्लाह-त-आला ने सारी दुनिया की जमीन और सारे देश मुसलमानों के प्रभाव और मुस्लिम खलीफा के शासन के लिए वफ्फ कर दिया है और हमारे रसूले मकबूल ने तबलीगे इस्लाम की मशाल हमारे हाथ में देकर यह कर्तव्य भी हमे सौंपा है कि हम उसे लेकर दुनिया के चप्पे चप्पे से कुफ्र का अंधेरा दूर करते जाय। इसलिए देश प्रेम, शान्ति और स्वतंत्रता आदि बातों का ढोंग हमारे घोड़ों के रास्ते में बाधा उपस्थित नहीं कर सकते।" चित्तौड़ी सेना ने खलीफा की सेना के छक्के छुड़ा दिया सेनापति सलीम को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? इस्लामिक सेना घबड़ाकर भागने लगी उन्हें यह कल्पना भी नहीं था कि भारतीय योद्धा लड़ भी सकते हैं उन्होंने भारतीयों को भीरू समझ रखा था लेकिन अब उन्हें बप्पा रावल जैसा नेतृत्व करता मिल गया है।

विजय ही विजय

सेनापति सलीम को समझौते के अतिरिक्त कुछ सूझ नहीं रहा था क्या करता? एक अश्वारोही अरब युवक सफेद झंडा लेकर रास्ते के सैनिकों को कुछ कहते आगे दौड़ा जा रहा था। बप्पा रावल के सामने थोड़ी ही दूर पर आ खड़ा हुआ, उसने सफेद झंडे को दो तीन बार हिलाया। दुभाषिया ने जोर से कहा!  "कृपया युद्ध बंद कर दीजिए! हम अरब संधि चाहते हैं।" घोड़े पर सवार बप्पा रावल का सीना तन गया, गर्दन ऊँची हो गई चेहरा पहले से कहीं अधिक रोबीला दिखाई देने लगा। युद्ध बंद करने का निवेदन अरब सेनापति की ओर से बार बार आने लगा लगभग पराजय स्वीकार कर लिया।

अब संधि वार्ता

अरब सेनापति पराजय स्वीकार कर चुका था अब समझौते की बात आई वह कुछ हर्जाना देकर जाना चाहता था लेकिन बीच में हरित मुनि ने टोका समझौता तो जिस प्रकार चंद्रगुप्त मौर्य और सेल्युकस के बीच हुआ था उसी प्रकार समझौता होगा। सेल्युकस ने अपनी पुत्री का विवाह 'चंद्रगुप्त मौर्य' के साथ किया था उसी प्रकार अरब खलीफा सेनापति 'सलीम' की बेटी का विवाह भारतीय सेनापति बप्पा रावल के साथ होगी यही समझौते की शर्त होगी।और अंत में सलीम मजबूर होकर अपनी लड़की "मय्याह" का विवाह 'बप्पा रावल' के साथ करके वापस अपने देश चला गया।

अरब से लेकर राजपुताना तक

अब भारत राजसत्ता केंद्र की बागडोर ''बप्पा रावल'' के हाथ में थी बप्पा बड़े बुद्धिमान और राजनीतिज्ञ थे उन्होंने तय किया कि अरब देश से प्रत्येक सौ मील पर ठिगाना (किला सैनिक अड्डे) बनाया जाय, तुरंत उसका अनुपालन शुरू हो गया ठिगाने बनने शुरू हो गए प्रति सौ किमी पर एक सैन्य अधिकारी (किलेदार) की नियुक्ति हुई। बप्पा रावल ने खलीफा सेनापति हज्जाम की सेना को हज्जाज के मुल्क तक खदेड़ दिया, इससे बप्पा संतुष्ट नहीं हुए उन्होंने गजनी (संस्थापक राजा गज) तक गए वहाँ के मुस्लिम शासक को पराजित कर बप्पा रावल ने चौरा वंश को राज्य की बागडोर सौंप दिया। बप्पा रावल ने केवल सलीम की बेटी से ही विवाह नहीं किया बल्कि अपने जीवन के अंतिम वर्षों में खुरासान गए, इस्पाहन (वर्तमान इरान), कश्मीर, इराक, ईरान, तूरान (मध्य एशिया का भाग) काफिरिस्तान, (वर्तमान अफगानिस्तान का न्यूरिस्तान प्रान्त) के मलेक्ष शासकों को पराजित कर उन सभी की कन्याओं से बप्पा रावल ने विवाह किया। बप्पा रावल इतने दूरदर्शी थे कि ऐसी ब्यवस्था बनायी की लगभग आगे तीन सौ-चार सौ वर्षों तक अरब अथवा मुस्लिम आक्रमणकारियों की हिम्मत नहीं हुई कि वे भारत की ओर आँख उठाकर देख सकें।

अरेबियन इतिहासकारों ने लिखा है कि भारत वर्ष में एक कालभोज नाम का एक राजा था जिसके पास 31 लाख की सेना थी। जिसका शासन अफगानिस्तान से लेकर बंगाल तक था। यानी अरब देश की सीमा से बंगाल विशाल भूभाग पर महाराणा का शासन था। मुस्लिम इतिहास में जितना कष्ट व अपमान इस राजा ने दिया विश्व के इतिहास में कहीं नहीं मिलता। ज्ञातव्य है कि यही कलभोज ही बाप्पा रावल है न कोई और राजा। महाराजा कालभोज चक्रवर्ती सम्राट थे उनका शासन सम्पूर्ण भारत वर्ष पर था और चित्तौड़ उस समय भारतीय सत्ता का केंद्र बन गया था। जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण चित्तौड़ गढ़ स्वयं ही है, और बाप्पा रावल से लेकर महाराणा राजसिंह तक भारत वर्ष का केंद्र मेवाड़ बना रहा जिसे हम चक्रवर्ती सम्राट भी कह सकते हैं।

संदर्भ ग्रंथ-- "नीले घोडे का सवार"- राजेन्द्र भटनागर, "अरावली के मुक्त शिखर"-शत्रुघ्न प्रसाद, "बप्पा रावल"-शिवब्रत लाल, शुद्धि आंदोलन का संछिप्त इतिहास-श्रीरंग गोडबोले


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