समाजवाद और भारत पर उसका प्रभाव--!

 

समाजवादी और भारत

विश्व के अंदर बहुत सारे देश समाजवादी देश हैं जिसमें सोवियत रूस, जर्मनी, चीन इत्यादि। विश्व में मानवता परक जो विचारधारा है उसे सनातन धर्म, हिंदुत्व अथवा मानवतावादी विचार कह सकते हैं। इस विचार के द्वारा हज़ारों लाखों वर्षों से एक सफल आध्यात्मिक जीवन मानवीय आचरण मनुष्य को दिया। इस विचार ने "एकम सद विप्रा बहुधा वदन्ति" का उद्घोष किया, एक सत्य है और विद्वानों अपने-अपने प्रकार से उस सत्य की व्याख्या किया। यहां शास्त्रार्थ हुए अपनी बात कहने का अवसर मिला, किसी से संवाद में कोई शत्रुता नहीं, बल्कि प्रत्येक मनुष्य का ज्ञानवर्धक होना। दूसरे की चिंता करना यानी जब प्रत्येक मनुष्य दूसरे की चिंता करेगा कोई भी दुखी नहीं होगा लेकिन जब मनुष्य स्वांतः सुखाय के लिए जियेगा तो सहकार की भावना समाप्त हो जाएगी और मनुष्य दुःखी होगा। यही भारतीय संस्कृति है और यही भारतीय चिंतन है, जिसमें जियो और जीने दो का सिद्धांत दिया। 

सर्वे भवन्तु सुखिनः 

भारतीय चिंतन में प्रत्येक प्राणियों की चिंता की गई, चींटी को चारा देने से लेकर प्रत्येक पशुओं, पक्षियों में आत्मा है जीव हत्या पाप है यह दर्शन हमारे पूर्वजों ने दिया। इतना ही नहीं तो प्रत्येक पहाड़ों में ईश्वर का दर्शन किया, नदियों में माँ का दर्शन करने का प्रक्रिया। जीव, जंतु, पशु, पक्षी सभी के पास सब कुछ है लेकिन उनके पास विवेक नहीं है और मनुष्य विवेकशील प्राणी है। इसलिए ऋषियों ने कहा सभी की चिंता मनुष्य करेगा। भारतीय चिंतन इतना व्यापक है कि ऋषियों ने सभी पशुओं-पक्षियों, पेड़-पौधों को किसी न किसी न किसी देवता का "सवारी" बताया जैसे भगवती दुर्गा की सवारी "शेर" सरस्वती की सवारी "हँस" तो "सुवर" में "भगवान विष्णु" का अवतार बताया और भगवान कृष्ण ने "गीता" में कहा कि मैं बृक्षों में "पीपल" हूँ, पेड़ पौधों को कोई न कोई औषधि सभी के प्रति श्रद्धा पैदाकर पर्यावरण संरक्षण का काम किया। जब सारा विश्व में लोग 'नंगे बदन' रहते थे क्या भोजन करना? क्या भोजन नहीं करना? का ज्ञान नहीं था उस समय मानवता का उत्कृष्ट उदाहरण भारतीय संस्कृति प्रस्तुत करती थी।

किताबी विचारधारा

हज़ारों लाखों वर्षों की संरक्षित संस्कृति को विदेशी आक्रांताओं ने तहस-नहस करने का काम किया इस जियो और जीने दो की परंपरा को समाप्त करने का प्रयास किया लेकिन हमारे पूर्वजों ने संघर्ष कर उन्हें उचित जबाब दिया। विश्व के अंदर दो प्रकार का धर्म है एक वैदिक परंपरा जिसमें सनातन धर्म, जैन, बौद्ध और सिक्ख धर्म आता है, जिसकी चर्चा हमने ऊपर में किया है। दूसरा प्रकार किताबी है जिसमें ईसाई, यहूदी धर्म और इस्लाम धर्म माना जाता है जिसके सिद्धांत एक जैसे हैं। चर्च का सिद्धांत है कि जो यीशु को नहीं मानता, बाइबिल में विस्वास नहीं करता और चर्च में नहीं जाता उसे जिंदा रहने का अधिकार नहीं है। सब कुछ भक्ष्य है कोई परहेज नहीं है और ऐसा करते हुए पिछले हज़ार वर्षों में 150 करोड़ लोगों की हत्या की। इस्लाम का मानना है कि जिसका कुरान में विस्वास नहीं है जो मुहम्मद को नबी नहीं मानता और मस्जिद में नमाज अदा नहीं करता वह काफिर है उसे धरती पर रहने का अधिकार नहीं है। इस प्रकार इस्लाम ने अपने जन्म से लेकर आज तक करोणों लोगों की हत्या की और सारे विश्व में आतंकवाद की जननी के नाते जाना जाता है सारा विश्व इनसे परेशान है। लेकिन जो भी स्वविवेक से कुरान पढ़ ले रहा है वह इस्लाम छोड़ दें रहा है आज विश्व में एक आकड़े के अनुसार 25 % मुसलमान इस्लाम छोड़ दिया है वे अपने को एक्स मुस्लिम कहते हैं।

समाजवादी विचारधारा

विश्व के अंदर समाजवाद ने दुनिया के अनेक देशों में स्वत्व की भावना समाप्त कर दिया, विश्व के अनेक देश हैं जो समाजवाद के नाम पर अपने ही देश और संस्कृति को समाप्त करने पर तुले हुए हैं। सोवियत रूस के चौदह टुकड़े हो गए जर्मनी दो टुकड़े में हुआ लेकिन राष्ट्रवाद की हुंकार भरी और पुनः वह एक हो गया। फ्रांस तथा पश्चिम के अनेक देशों की हालत अच्छी नहीं है उन्होंने शरणार्थियों के नाम पर आतंकवादियों को शरण दिया, समाजवाद के कारण वे लोगों को पहचान नहीं सके कि वे किसको शरण दे रहे हैं आखिर ये शरणार्थी जिस कुल परंपरा को मानते हैं जिस धर्म को मानते हैं उनके देशों में शरण लेने क्यों नहीं जाते अथवा वे देश उन्हें अपने देश में शरण क्यों नहीं देते ? इसके पीछे का कारण क्या है? ब्रम्हदेश से रोहंगिया मुसलमानों को निकाला गया तो वे अरब देशों की ओर गए लेकिन क्या अरब देशों ने उन्हें शरण दिया तो नहीं दिया। क्योंकि सारे विश्व में वे जिहाद करना चाहते हैं अथवा सारे विश्व का इस्लामी कारण करना चाहते हैं। लेकिन समाजवादियों के आँख में समाजवाद की पट्टी बधी होने के कारण वे अपने देश व संस्कृति दोनों की हानि कर रहे हैं। चीन ने सतर्कता बरती इस कारण उन्होंने समाजवाद की पट्टी आँख में नहीं बांधा परिणामस्वरूप वहाँ आतंकवाद पर काबू पाए हुए हैं। जापान वैदिक कुल परंपरा का देश होने के कारण सतर्क रहें और एक भी इस्लाम मतावलंबियों को "वीसा" नहीं देते वे इस्लामी देशों से रिश्ता भी नहीं रखते आतंकवाद से मुक्त हैं। श्रीलंका, ब्रम्हदेश, थाईलैंड जैसे देश सतर्क हो रहे हैं। और धीरे धीरे समाजवाद को दुनिया ज्यों ज्यों पहचान रही है उसकी विदाई होती जा रही है। समाजवाद सेकुलर नाम का एक धोखा है इसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं।

भारतीय समाजवाद

देश के तथाकथित प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु समाजवादी थे, उनकी नीति भारत विरोधी थी जब देश का बटवारा धर्म के आधार पर हुआ तो पाकिस्तान इस्लामिक राष्ट्र बन गया लेकिन भारत हिंदू राष्ट्र क्यों नहीं ? जब पाकिस्तान से हिंदू भगाए जा रहे थे अथवा हिंदुओ की हत्या की जा रही थी उस समय नेहरू ने मुस्लिम प्रेम दिखा कर मुसलमानों को पाकिस्तान जाने से रोका ही नहीं बल्कि हिंदुओ को प्रताड़ित करने का काम किया। कश्मीर की समस्या नेहरू की देन थी राजा हरि सिंह जम्मू कश्मीर रियासत के राजा थे न कि चुने हुए प्रधानमंत्री, उन्होंने जब भारत में विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया तो नेहरू का कार्य प्रत्यक्ष भारत विरोधी हो गया। जब भारतीय सेना जीत रही थी उस समय नेहरू का राष्ट्रसंघ में जाना भारत विरोधी कृत्य था। समाजवादियों का देशप्रेम कुछ इसी प्रकार का था और आज भी है। धीरे -धीरे समाजवाद जातिवाद में परिणित हो गया और फिर बाद में धीरे- धीरे कब परिवारवाद में परिणित हो गया किसी को पता नहीं! आज के समाजवादी सोनिया गांधी, राहुल गांधी, लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव इत्यादि चाहे इन्हें समाजबादी कहिये या जातिवादी कहिये अथवा परिवार वादी कहिये। यही है भारतीय समाजवाद।

समाजवादियों की आर्थिक नीति को हम आसानी से समझ सकते हैं, कोटा और परिमिट कोटेदार कौन होता था ? तो कोई कांग्रेसी होता था एक प्रकार से उसे रोजगार उपलब्ध कराया जाता था। यदि आपके घर में विवाह अथवा कोई अन्य कार्यक्रम पड़ गया तो आपको कोटेदार के यहाँ जाना और सब कुछ काला बाजारी की बाजार, यदि आपको मिट्टी का तेल चाहिये तो लाइन में लगिये उसके लिए सुबह 4 बजे जागना पड़ता था। टेलीफोन तो बहुत बड़ी बात उसके लिए भी संसद कोटा पर निर्भर रहना पड़ता था। यदि आपको घर बनवाना है उस समय भी सीमेंट का भी कोटा सिस्टम। यानी पूरा देश ब्लेक मार्केटिंग का देश यही था और है भारतीय समाजवाद। इंफ्रास्ट्रक्चर पर कोई काम नहीं! ट्रेन में कोई सुविधा उपलब्ध नहीं बिना टिकट चलने का अभ्यास, चोरी, बेईमानी और घूसखोरी का अभ्यास यानी समाजवाद। "हमारी मांगे पूरी हो चाहे जो मजबूरी हो।" का सिद्धांत देशहित से कोई सरोकार नहीं। 

समाजवाद का परिणाम

भारतीय समाजवाद के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी देने का प्रयास मैंने किया है, समाजवादी विचारधारा अपनी संस्कृति, परंपरा से दूर ले जाने का काम करती है जिसका परिणाम राष्ट्र को बहुत हानि उठानी पड़ती है। विश्व के अंदर जो मुसलमान रिफ्यूजी बनकर विश्व के तमाम देशों में गए जैसे फ्रांस, जर्मनी, इंग्लैंड इत्यादि आज वे देश आतंकवाद से परेशान ही नहीं है बल्कि उनकी संस्कृति खतरे में पड़ गई है। भारत तो सैकड़ो वर्षों से इस्लामिक आतंकवाद झेल रहा है और देश विभाजन के पश्चात समाजवादी विचारधारा ने भारत को खोखला करने का काम किया है। समाजवाद और साम्यवाद दोनों सगे भाई जैसे ही है। सोवियत रूस में साम्यवादियों की सरकार आने पर कोई चार करोड़ लोगों की हत्या की, चीन में छः करोड़ लोगों की हत्या की ऐसे अनगिनत हत्याएं इन लोगों ने किया। जिसका अंत सोवियत रूस के चौदह टुकड़े हो गए, पश्चिमी और पूर्वी जर्मनी हो गया ऐसे विश्व में अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं और चीन टूटने वाला है उसे कोई बचा नहीं सकता। अब धीरे धीरे सारे विश्व में राष्ट्रवाद का ज्वार आ रहा है, समाजवाद और साम्यवाद अपने आप काल के गाल में समाहित होते जा रहे हैं। और सारा विश्व अपनी संस्कृति, परंपरा का संरक्षण करते हुए राष्ट्रवाद की ओर बढ रहा है।

देश की आत्मा

आखिर देश की आत्मा क्या है ? क्या पश्चिमी विचार जो ईसाई, यहूदी और मुस्लिम विचार है यह भारतीय आत्मा है अथवा पश्चिम की विचारधारा साम्यवाद, समाजवाद अथवा पूंजीवाद ये भारतीय चिति है? नहीं यह विदेशी विचार है न कि भारतीय विचार, ये आक्रमणकारी हैं दुर्दांत अपराधी जिसे भारत कभी क्षमा नहीं कर सकता! भारतीय चिति तो भारतीय विचार से ही आ सकती है। तो भारतीय चिति क्या है? जहाँ वेद अपौरुषेय है जिसमें मनुष्य को "अमृताः पुत्रा:" बताया गया है मनुस्मृति जो धरती का प्रथम ग्रंथ है जिसमें महर्षि मनु ने लिखा "मनुर्भव"। और फिर धीरे धीरे भारतीय चिति इस प्रकार विकसित हुई  अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, अवंतिका ये है भारतीय चिति। गंगा, सिंधुश्च, काबेरी, यमुना च सरस्वती, रेवा, महानदी, गोदा, ब्रम्हपुत्र, पुनात्माम ये है भारतीय आत्मा। राम,कृष्ण, शंकर, बुद्ध, महावीर और नानक देव हैं भारतीय संस्कृति के पुरोधा। शंकराचार्य, माधवाचार्य, रामानुजाचार्य, रामानंदाचार्य, बल्लभाचार्य, नानक, कबीर दास, सूरदास, तुलसीदास, संत रविदास ये हैं भारतीय चिति के दर्शन। वेद, उपनिषद, ब्राह्मण ग्रंथ, रामायण, गुरुग्रंथ साहिब,त्रिपटक और महाभारत ये है भारत की आत्मा। इस प्रकार हमें भारतीय दर्शन भारतीय संस्कृति और विदेशी विचार और संस्कृति पर विचार करने की आवश्यकता है और भारत को भारत बनाये रखने के लिए काम करने की आवश्यकता है।

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