विभाजन की विभीषिका और नेहरु का मुस्लिम प्रेम

 

नेहरू का संस्कार

वास्तविकता यह है कि नेहरु के अंदर राष्ट्रीयता नाम की कोई चीज नहीं था और उन्हें इसका ज्ञान भी नहीं था लेकिन उसमें उनका दोष इतना ही है कि वे कांग्रेस में पले बढ़े और वही संस्कार भी उन्हें मिला था। जैसा कि हम सभी लोग यह जानते हैं कि कांग्रेस की स्थापना एक ब्रिटिश ब्यूरोक्रेट्स ने किया था। इससे यह सिद्ध हो जाता है कि भारत की आजादी के लिए कांग्रेस की स्थापना नहीं हुई थी बल्कि कांग्रेस की स्थापना भारत को हमेशा के लिए गुलाम बनाये रखने के लिए थी और यही संस्कार नेहरू जी का था। इसलिए किसी भी कोने से नेहरु जी को भारत भारतियता से कोई लेना देना नहीं था, और यदि यह कहा जाय कि देश की आज़ादी में कांग्रेस का कोई योगदान नहीं था तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा। 1946 के पहले पटेल और नेहरू में कोई बहुत अंतर नहीं था, दोनों एक ही गुरु के शिष्य थे लेकिन पटेल को जन सामान्य के मन भावना का ज्ञान था, जनता की भावनाओं का उन्हें ज्ञान था लेकिन नेहरु जी को इन सब से कोई मतलब नहीं था। 

प्रधानमंत्री का चयन

आज तानाशाही और लोकतंत्र की बड़ी बड़ी बातें कांग्रेस पार्टी करती है लेकिन प्रथम प्रधानमंत्री के चुनाव के समय तो लोकतंत्र को ताक पर रख दिया गया था। कांग्रेस का जो भी अध्यक्ष होता उसी को सत्ता सौपी जाती इसको देखते हुए पार्टी का अध्यक्ष कौन होगा ? इसके लिए पार्टी की बैठक हुई जिसमें 13 राज्यों के प्रतिनिधियों ने सरदार पटेल को वोट किया और तीन ने आचार्य कृपलानी को, और नेहरू को एक भी वोट नहीं मिला। भारत के अंदर पहली बार लोकतंत्र की हत्या कर नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष यानी होने वाले प्रधानमंत्री का चयन किया गया और जो लोकतंत्र का अपने को अलंबरदार कहते उन्होंने यह कार्य किया। वास्तविकता यह है कि मोहनचंद करमचंद गांधी ने यह लोकतंत्र की हत्या कोई पहली बार नहीं किया था बल्कि जब नेताजी सुभाषचंद्र बोस जब कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे तब भी इनका रोल इसी प्रकार का था वे अपनी सुविधा अनुसार लोकतंत्र की परिभाषा कर लिया करते थे। 

नेहरू के बारे में पटेल की अवधारणा

सरदार पटेल इस बात को विस्वास के साथ मानते थे कि जवाहरलाल नेहरू मुसलमानों के प्रति पूरी तरह समर्पित हैं। आजादी के पश्चात प्रधानमंत्री के तौर पर नेहरू ने मुस्लिम तुष्टिकरण नीति का पूरी कट्टरता से पालन किया। बंटवारे बाद हिंदू-मुस्लिम दंगे हो या हिंदू-सिख शरणार्थियों की समस्या या फिर मुसलमानों को पाकिस्तान भेजने का मामला हो, नेहरू हमेशा अपने गुरू गांधी के पद-चिन्हों पर चलते रहे। इसलिए गांधी की तरह नेहरू भी यही मान कर चल रहे थे कि दिल्ली में जो कुछ हिंसा अथवा दंगा हो रहा है वह पाकिस्तान से आये हिंदू शरणार्थी कर रहे हैं। और तो और नेहरु इन किस्मत के मारे भूखे बेबस, लुटे-पिटे शरणार्थियों को चोर उचक्का भी मानते थे। उन्होंने देश का प्रधानमंत्री होते हुए सैकड़ों लोगों के बीच पाकिस्तान से आये एक गरीब और असहाय नवजवान की गर्दन दबोच दिया था। इस घटना का ज़िक्र गांधी जी के निजी सचिव प्यारेलाल नैयर ने अपनी पुस्तक में इस घटना का ब्यौरा देते हुए लिखा है--:

"पंडित नेहरू अपनी गाड़ी से कूदकर बाहर आ गए, उनके चारो ओर भीड़ जमा हो गई। उन्होंने लोगों को फटकार लगाते हुए कहा कि मैंने समझा था कि हम अपने पीड़ित भाइयों की मदद कर रहे हैं। लेकिन मुझे यह नहीं मालूम था कि हम चोर उचक्कों को शरण दे रहे हैं। पंडित नेहरू की यह बात सुनकर भीड़ की त्योरियां चढ़ गई, भीड़ गुस्से में आ गई। एक जोशीला नवजवान सामने आकर बोला, आप हमें भाषण दे रहे हैं, क्या आप जानते हैं कि हम हिंदू शरणार्थियों ने क्या कष्ट सहे हैं ? पंडित नेहरू यह बर्दास्त नहीं कर सके और उन्होंने उस नवजवान की गर्दन पकड़कर उसे झकझोर दिया। वहां मौजूद सुशीला ने नेहरू को खींचकर वहां से हटाने का प्रयास किया लेकिन नेहरु ने सुशीला को कोहनी से वापस धकेल दिया। जब नेहरु ने युवक को अपनी पकड़ से छोड़ा तो वह बड़बड़ाया, हां पंडित जी, कर लीजिए जो आपको करना हो। देश के प्रधानमंत्री के हाथों मरने से बड़े सौभाग्य की बात और क्या होगी।"

नेहरु की दृष्टि में दंगों के लिए हिंदू जिम्मेदार

दिल्ली में दंगों के लिए नेहरु हिंदू शरणार्थियों को ही जिम्मेदार मानते थे लेकिन वास्तविकता यह है कि इन दंगों के लिए दिल्ली के मुसलमानों का आक्रामक रवैया जिम्मेदार था फिर भी नेहरु मुसलमानों को 'शांतिप्रिय' मानते थे। दिल्ली में जब दंगे उफान पर थे तो नेहरु जी ने एक प्रेस कांफ्रेंस 13 सितम्बर,1947 को किया, उसमें कहा---: "दिल्ली की आवादी अमनपसंद मानी जाती है। चार-पांच सौ सालों से यहां हिंदू-मुसलमान मिल जुल कर रह रहे हैं। लेकिन अब दिल्ली की आवादी में एक चौथाई हिस्सा शरणार्थियों का हो गया है। मुझे लगता है कि यह कहना सही होगा कि दिल्ली में जो कुछ हो रहा है उसके लिए 75 प्रतिशत तक वो कहानियां जिम्मेदार हैं जो पंजाब (पाकिस्तान) के शरणार्थी अपने साथ यहां लेकर आये थे।" यदि हम यह कहें कि नेहरू की आँख पर हिंदू विरोध की पट्टी बधी थी तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। अक्टूबर 1947 दशहरा और ईद साथ-साथ आने वाला था नेहरु जी ने पटेल को पत्र लिखा कि "मुसलमानों से गलत ब्यवहार की आशंका नहीं है क्योंकि वे पूरी तरह टूट चुके हैं और डरे हुए हैं। आखिर नेहरू कहना क्या चाहते हैं कि दंगाई केवल हिंदू समाज है ? इन सबको देखने के बाद लगता है कि डा अम्बेडकर का नेहरू-गाँधी के बारे में जो विचार है वह बिल्कुल सत्य है, डॉ आंबेडकर लिखते हैं कि नेहरू गाँधी को इस्लाम की जमीनी हकीकत कुछ पता नहीं है।

और एन. वी. गाइडगिल

नेहरु की तुष्टिकरण नीति और हिंदुओं को बार बार लांछन लगाने की प्रबृत्ति पर गाइडगिल ने तत्काल विरोध किया। उन्होंने अपनी पुस्तक'गवर्नमेंट फ्रॉम इनसाइड' में लिखा है कि, "मैन अपनी एक रिपोर्ट में नेहरु को सुझाव दिया कि उनका हिंदुओ पर लाँछन लगाना उचित नहीं है। हिंदू भारत में बहुसंख्यक है और लोकतांत्रिक चुनाव प्रणाली उनको एक दिन अपने आप शक्तिशाली बना देगी। इसलिए हिंदुओं पर आक्रोश निकालने की कोई जरूरत नहीं है, वहीं दूसरी ओर नेहरू के भाषण हिंदुओं के मन में कटुता पैदा कर रहे हैं।" गाइडगिल दूरदृष्टि वाले राजनेता थे आज लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिंदूवादी विचार सत्ता में स्थापित हो चुका है। बहरहाल गाइडगिल की इस साप्ताहिक रिपोर्ट को पढ़कर नेहरु तिलमिला गए। और 12 अक्टूबर,1947 को गाइडगिल को एक पत्र लिखा, "आपकी रिपोर्ट अजीव है इसमें मेरे भाषणों पर दिल्ली में हुई प्रतिक्रिया का लेखा-जोखा है। आपने जो भी लिखा है वह कुछ लोगों की भावनाएं हो सकती हैं लेकिन मैंने जो कहा है वह मेरी भावना और मेरे फैसले को प्रकट करता है। मेरा फैसला उन लोगों की राय से प्रभावित नहीं होता, जिनका आप उल्लेख कर रहे हैं।" इससे यह सिद्ध होता है कि नेहरु को अपना विरोध बर्दास्त नहीं होता था एक प्रकार से वे अलोकतांत्रिक ब्यक्ति थे।

गाइडगिल का मानना था कि अगर नेहरू शरणार्थियों के प्रति सहानुभूति रखते तो हिंदू समाज में गाँधी की हत्या का माहौल तैयार नहीं होता ऐसा गाइडगिल ने अपनी पुस्तक में लिखा! इससे यह साबित होता है कि गांधी हत्या के पीछे नेहरु की मुस्लिम तुष्टिकरण नीति और हिंदू शरणार्थियों के प्रति दुर्व्यवहार भी एक कारण था।  पाकिस्तान के खिलाफ जो भी कड़ा रुख अपनाता नेहरू उसे मुस्लिम विरोधी मान लेते थे, नेहरु की दृष्टि में पाकिस्तान बिरोध और मुस्लिम बिरोध में कोई अंतर नहीं था। गाइडगिल ने आगे लिखा---: "मैं पूरे अफसोस के साथ ऑन-रिकार्ड यह बात कहना चाहता हूं कि जब भी मैंने पाकिस्तान के बारे में कोई प्रस्ताव रखा, नेहरु जी ने ऐसी ही प्रतिक्रिया व्यक्त की जैसे मैं मुसलमानों का दुश्मन हूँ।"

पंजाबी शरणार्थियों के प्रति नेहरू का व्यवहार

पंजाब नेशनल बैंक के चेयरमैन लाला योधराज, पत्रकार दुर्गादास और लाहौर हाईकोर्ट के पूर्व जज बक्सी टेकचंद इन तीनों 20 सितंबर 1947 को प्रधानमंत्री नेहरु से मिलने पहुंचे जिसका वर्णन दुर्गादास ने अपनी पुस्तक 'इंडिया फ्रॉम कर्जन टू नेहरु एंड आफ्टर' में इस प्रकार किया है--: "इस बैठक के शुरुआत में पंजाब नेशनल बैंक के चेयरमैन जोधराज ने शरणार्थियों को बसाने के लिए दिल्ली से सात मील दूर जमीन मांगी। नेहरु ने तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मैं तुम लोगों (पंजाबियों) को दिल्ली के सात सौ मील दायरे में भी नहीं आने दूँगा, नेहरु ने गुस्से में ऐसा इसलिए कहा क्योंकि वे पंजाबियों पर गुस्सा थे और उन्हें लगता था कि दिल्ली के तनाव के लिए यही लोग जिम्मेदार हैं। उन्होंने कहा कि इन हरकतों की वजह से पूरी दुनिया में सरकार का नाम खराब हुआ है।" इससे यह स्पष्ट दिखाई देता है कि हिंदू शरणार्थियों के मुद्दे पर सरदार पटेल और नेहरु के विचारों में कितना अंतर था। आगे दुर्गादास ने सरदार पटेल से मिलने का अनुभव करते हुए लिखा--: जो कमेटी नेहरू से मिली थी वह सरदार पटेल से भी मिली "सरदार पटेल ने कमेटी को बताया कि उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली को साफ कर दिया है कि वह हिंदू और सिखों द्वारा छोड़ी गई प्रापर्टी के बारे में अपनी सरकार की नीति घोषित करे। अगर पाकिस्तान इन संपत्तियों के लिए भुगतान नहीं करता है तो फिर हम भी भारत में छोड़ी गई मुसलमानों की प्रॉपर्टी के साथ यही करेंगे। सरदार पटेल ने लियाकत अली को यह भी बता दिया था कि अगर पाकिस्तान में हिंदू और सिख नहीं बचे तो फिर भारत में भी मुसलमानों का रहना मुश्किल हो जाएगा।"

दिल्ली में मुस्लिम कालोनी की योजना

उन दिनों मुसलमान डर के कारण हिंदू मुहल्लों के अपने मकान छोड़कर राहत कैम्पों में रह रहे थे। नेहरू ने इस बारे में 21 नवंबर 1947  को सरदार पटेल को एक पत्र लिखा--: "गैर मुस्लिम क्षेत्रों में बहुत कम मुसलमानों को मकान व सुरक्षा मिल सकती है, हमें अगर अपने जिम्मेदारी का पालन करना है तो मुस्लिम बहुल मुहल्लों में मुसलमानों के खाली पड़े मकान गैर मुस्लिमों को नहीं दिये जाय। मुझे पता चला है कि कुछ सिखों ने मुस्लिम मुहल्लों के मकानों को कब्जा कर लिया है। इससे वहां परेशानी खड़ी हो गई है और वहाँ के बाकी मुसलमान भी अपना मकान छोड़ रहे हैं, ऐसी हरकतों को बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए और मुस्लिमों के मकान अन्य लोगों को न दिया जाय। "सरदार पटेल मुस्लिम तुष्टिकरण पर विस्वास नहीं करते थे इसलिए नेहरु का पत्र मिलते ही उन्होंने जो उसका उत्तर लिखा जो आज भी प्रासंगिक है--: "दिल्ली में मुस्लिम पॉकेट बनाना हमारी नीतियों के खिलाफ है। दिल्ली में मुस्लिम क्षेत्र बनाने से हालात नहीं सुधरेंगे, बल्कि टकराव और बढ़ जाएगा, मुझे नहीं लगता कि मुस्लिम बहुल इलाकों में गैर-मुस्लिम ऐसी स्थिति खडी कर सकते हैं कि जिसके कारण मुस्लिम लोग अपना इलाका छोड़ने के लिए मजबूर हो गए। ऐसे मामलों का समाधान यही है कि अराजक तत्वों को हटाकर पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था की जाय, ऐसा होने पर इन इलाकों में मिली-जुली यानी हिंदू-मुस्लिम आबादी बढ़ेगी।" जहाँ सरदार पटेल दूरद्रष्टा थे वहीं नेहरू को कुछ दिखाई नहीं देता था जिन मुसलमानों ने पाकिस्तान की मांग की वे गजवाये हिन्द के लिए यहीं रूक गए और आज भारत में तमाम पाकिस्तानी पॉकेट दिखाई दे रहा है।


डॉ अम्बेडकर की दृष्टि में नेहरु

डॉ आंबेडकर ने सुझाव दिया था कि प्रत्येक हिंदू पाकिस्तान से भारत में आ जाना चाहिए और प्रत्येक मुस्लिम को पाकिस्तान चले जाना चाहिए। पाकिस्तान की सरकार दलितों को भारत नहीं जाने देना चाहती थी ऐसा नहीं कि उनको दलितों से बहुत प्रेम था! पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली ने कहा--: "अगर दलित पाकिस्तान से चले जायेंगे तो हमारे शहरों की सफाई कौन करेगा ? "पाकिस्तान की नीच हरकतों से डॉ आंबेडकर बहुत नाराज थे, वे पाकिस्तान के प्रत्येक दलित को भारत लाने में जुट गए। उन्होंने 27 नवंबर 1947 को एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा--: "पाकिस्तान के चक्कर में फॅसा दलित समाज हर उपलब्ध मार्ग और साधन से भारत आ जाये। मैं कहना चाहता हूँ कि पाकिस्तान और हैदराबाद रियासत के मुसलमानों पर विस्वास करने से दलित समाज का विनाश होगा। दलित वर्ग हिंदू समाज से नफरत करता है, इसलिए मुसलमान हमारे मित्र हैं यह मानने की बुरी आदत दलितों को लग गई है, जो बहुत गलत है। मुसलमान तो अपने लिए दलितों का साथ चाहते हैं लेकिन बदले में वे कभी दलितों का साथ नहीं देते हैं।" पाकिस्तान में कई दलितों का धर्मांतरण कराया गया था अम्बेडकर ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वे भारत आ जाये उन्हें पूरी तरह स्वीकार कर लिया जाएगा। अंबेडकर के इस मुहिम को झटका लगा नेहरु ने कोई सहयोग नहीं किया, अम्बेडकर ने कहा कि नेहरू को मुसलमानों की चिंता है न कि दलित हिंदुओं की। डॉ आंबेडकर ने 1951 अक्टूबर 27 को एक रैली में कहा--:  "पाकिस्तान से दलितों को निकालने के लिए मैंने नेहरु से कुछ करने के लिए कहा, लेकिन नेहरु ने कुछ भी नहीं किया। मैंने दलितों को निकालने के लिए दो ब्यक्तियों को पाकिस्तान भेजा और हमारी महार बटालियन के कुछ लोगों को भी दलितों की सुरक्षा के लिए रवाना किया गया। अगर खुद कांग्रेस के नेता (नेहरु) को दलितों से इतनी सहानुभूति होती तो सोचिए यह कांग्रेस हमारे लिए क्या करेगी ?" हम बचपन से पढ़ते हैं कि डॉ आंबेडकर ने 1951 में नेहरु मंत्रिमंडल से इसलिए स्तीफा दिया था क्योंकि संसद में हिंदू कोड बिल पास नहीं हो पाया था यह अर्धसत्य है, वास्तविकता यह है कि डॉ आंबेडकर का स्तीफा नेहरु की मुस्लिम तुष्टिकरण नीति थी, उन्होंने अपने स्तीफा में लिखा-----: "यह सरकार दलितों की तुलना में मुसलमानों की सुरक्षा को लेकर हमेशा ज्यादा चिंतित रहती है। प्रधानमंत्री का पूरा समय और ध्यान मुसलमानों की सुरक्षा के लिए लगा होता है। मैं भी भारत के मुसलमानों को सुरक्षा देना चाहता हूँ, लेकिन क्या सिर्फ मुसलमानों को ही सुरक्षा की आवश्यकता है ? क्या दलितों, आदिवासियों और ईसाइयों को सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है ? सरकार ने इन समुदायों के लिए क्या चिन्ता दिखाई है ? जहाँ तक मैं समझता हूँ कि मुसलमानों की तुलना में दलितों को कहीं अधिक देखभाल की जरुरत है।" 

डॉ आंबेडकर ने एक रैली में--!

डॉ आंबेडकर एक सुलझे हुए राजनेता थे वे नेहरु की मुस्लिम परस्ती से तंग आ चुके थे, उन्होंने 1951 -52 चुनाव प्रचार के दौरान नेहरु के मुस्लिम तुष्टिकरण की बखिया उधेड़ते हुए कहा।---: "नेहरु मुसलमानों पर होने वाले किसी काल्पनिक अत्याचार की बात सुनकर बिचलित हो जाते हैं। नेहरु मुसलमानों की रक्षा करने के लिए सब कुछ करने को तैयार हो जाते हैं लेकिन क्या उन्होंने कभी दलितों की रक्षा करने के लिए कोई रूचि दिखाई है? पिछले 20 साल से नेहरु देश के सबसे बड़े नेताओं में से एक हैं, उन्होंने कम से कम दो हजार जन सभाओं को संबोधित किया होगा। लेकिन जहाँ तक मुझे याद है उन्होंने कभी इस बात का जिक्र नहीं किया कि दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं। मैं मानता हूं कि मुसलमानों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए लेकिन मैं यह भी नहीं चाहता कि मुसलमान दलितों की कीमत पर मौज करें, क्योंकि दलितों को उनसे ज्यादा सुरक्षा की आवश्यकता है।"

नेहरु  और  वी.शंकर

एक आईसीएस अधिकारी वी. शंकर जिन्होंने नेहरु जी के साथ काम किया है ने नेहरु के तुष्टिकरण का जबरदस्त विश्लेषण किया है, उन्होंने नेहरु की मुस्लिम परस्ती के बारे में लिखा---: "तथाकथित पीड़ित मुसलमानों की चिंता में नेहरु अनंत पीड़ा उठाते थे लेकिन जब पीड़ित दूसरे समुदाय का होता तो नेहरु से इस तरह की पीड़ा उठाने की उम्मीद नहीं किया जा सकता था। नेहरु मानते थे कि प्रधानमंत्री और कांग्रेस नेता के रूप में अल्पसंख्यकों विशेष रूप से मुसलमानों के लिए उनकी विशेष जिम्मेदारी है। उनकी नजर में मुसलमानों को भारत में बनाये रखना और उनकी जान-माल की सुरक्षा इस देश की धर्मनिरपेक्षता की सर्बोच्च परीक्षा थी। एक पूर्व गवर्नर ने कहा कि अगर नेहरू मुसलमानों की सुरक्षा की मांगों को मान लेते हैं तो एक दिन ऐसी स्थिति आ जायेगी जब हिंदुओ की रक्षा करनी पड़ेगी।" वास्तव में वी शंकर दूरदृष्टि वाले अधिकारी थे, आज नेहरु के कारण सारे देश में हिंदू समाज असुरक्षित महसूस कर रहा है। आये दिन हिंदुओं के त्योहारों पर पथराव किया जाता है और तुष्टिकरण ऐसा है कि मुख्य आरोपी किसी न किसी हिंदू को बना दिया जाता है। आज देश नेहरू के पापों का फल भोग रहा है, लगता है नेहरु स्वयं 'गजवाये हिंद' चाहता था, इसीलिए जिन लोगों ने पाकिस्तान बनाने की मांग किया, नेहरू ने देश विभाजन के पश्चात उन्हें जाने नहीं दिया और आज वे भारत के लिए सरदर्द बने हुए हैं।

आखिर मुसलमान पाकिस्तान क्यों नहीं गए ?

मुसलमान पाकिस्तान क्यों नहीं गए इसका गांधी हत्या से गहरा संबंध है, गाँधी हत्या जाँच के लिए बने कपूर कमीशन की एक रिपोर्ट में लिखा गया है कि--: "तथ्य ये है कि मुसलमानों को पाकिस्तान जाने से रोकने के लिए नेहरु ने मौलाना आजाद, रफी अहमद किदवई और अन्य मुसलमानों के साथ मिलकर बहुत मेहनत की। नेहरु ने मुसलमानों की संपत्तियों को सुरक्षित रखने के लिए पैसा और समय दोनों खर्च किया। इससे मुसलमानों के प्रति शत्रुता की भावना पैदा हुई। शरणार्थियों को लगता था कि अगर उन्हें पाकिस्तान से निकाल दिया गया है तो मुसलमानों के साथ भी ऐसा होना चाहिये।" कपूर कमीशन आगे लिखता है, "जनसंख्या की अदला बदली न होने पर शरणार्थियों के अंदर अंधी नफरत फैल गई थी। तब हर गली, चौराहे और नुक्कड़ पर यह चर्चा हो रही थी कि आखिर मुसलमान पाकिस्तान क्यों नहीं जा रहे हैं ?" आम भारतीय जनता ऐसा विचार कर रही थी, यह समझने के लिए हमें समझने के लिए इन विषयों पर विचार करने की आवश्यकता है कि---! 

@ मुसलमानों को पाकिस्तान भेजने की मांग क्यों हो रही थी ? @विभाजन के बाद ज्यादातर मुसलमानों ने भारत में रुकने का फैसला क्यों लिया ? @जनसंख्या की अदला-बदली पर जिन्ना और नेहरु का रूख क्या था ?  @गाँधी के कहने पर नेहरु ने किस तरह से मुसलमानों को भारत में रोका ? @सरदार पटेल और डॉ आंबेडकर मुसलमानों को पाकिस्तान क्यों भेजना चाहते थे ? @ आखिर कितने मुसलमान भारत से पाकिस्तान गए!

डॉ भीमराव अंबेडकर ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ है इसलिए भारत में एक भी मुसलमान नहीं रहना चाहिए और पाकिस्तान में एक भी हिंदू! आगे उन्होंने कहा कि यदि मुसलमान यहां रूक जायेगे तो पचास साल बाद फिर यही समस्या उत्पन्न होगी। कोई भी मुसलमान किसी हिंदू की शासन सत्ता स्वीकार नहीं करेंगे, वे संविधान नहीं सरिया कानून मानेंगे। ठीक उसी प्रकार सरदार पटेल ने एक सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि ऐसा क्या हो गया कि चौबीस घंटे में निष्ठा बदल गई। तो वास्तविकता यह है कि मुसलमानों ने बहुत दूरदृष्टि से विचार कर एक अलग देश ले लिया और भारत में रह भी गए जिससे गजवाये हिन्द भी किया जा सके और उसके लिए आज खुले-आम हिंदू समाज को चुनौती दे रहे हैं। और नेहरू के पापों का फल भारत भोगने के लिए मजबूर है।

कितने मुसलमान पाकिस्तान गए ?

सरदार वल्लभ भाई और डॉ आंबेडकर ने मुसलमानों को पाकिस्तान भेजे जाने का समर्थन किया था और इसके विपरीत गांधी, नेहरु ने न केवल इसका विरोध किया बल्कि मुसलमानों को रोकने के लिए साम, दाम, दण्ड, भेद सभी का उपयोग किया। परिणाम यह हुआ कि भारत से बहुत कम मुसलमान पाकिस्तान गए। यदि आकड़े पर जाय तो ध्यान में आता है कि भारत के हिस्से में आयी जमीन साढ़े चार करोड़ मुसलमान रहते थे जिसमें एक करोड़ भी पाकिस्तान नहीं गए। भारत से पाकिस्तान जाने वाले मुसलमान पचहत्तर प्रतिशत पंजाब प्रांत से गए थे। 1951 में जनगणना के अनुसार पंजाब से 55.50 लाख, प.बंगाल, बिहार, उड़ीसा से केवल सात लाख, दिल्ली और उत्तर प्रदेश से मात्र चार लाख पैसठ हजार, राजस्थान से दो लाख पैंतीस हजार, महाराष्ट्र और गुजरात से एक लाख साठ हजार, भोपाल और हैदराबाद से पंचानबे हजार और तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक से केवल अट्ठारह हजार मुसलमान पाकिस्तान गए। जबकि पाकिस्तान से हिंदुओं को भगा दिया गया उनके साथ सामुहिक बलत्कार, हत्या हुई उनकी सारी संपत्ति लूट ली गई ट्रेनें लाशों से भारी आ रही थीं, लेकिन नेहरु को यह सब दिखाई नहीं दे रहा था उन्हें हिंदू ही दुश्मन नजर आ रहा था।

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