गिरजा बाबू को शत शत नमन !


          विश्व में जिन लोगों क़ा नाम लोकतंत्र के संघर्ष के लिए लिया जायेगा, गिरजा प्रसाद कोईराला क़ा नाम उन दो-चार महत्वपूर्ण लोगों में होगा. 10 वर्षों तक 1999 मार्च से 2009 मार्च तक माओवादियों के आतंकवाद में राजा क़ा दुराग्रहपूर्ण सहयोग, और लोकतंत्र के लिए तड़पती हुयी नेपाली कांग्रेस, सद्भावना पार्टी व अन्य लोकतान्त्रिक ताकतों को हमने बहुत ही नजदीक से देखा है. माओवादियों ने किसी भी राजावादी की हत्या नहीं की न ही उनका नुकसान किया. राजा ने भी माओवादियों के साथ "सेफ लैंडिंग " जैसा व्यवहार दिखने क़ा युद्ध किया. जनता के लिए माओवादी व सेना दोनों के समान व्यवहार थे. ऐसे में जिनका लोकतंत्र में विस्वास है उनकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है, चाहे वो गिरजा बाबू हों या माधव नेपाल या पडोसी भारत अथवा लोकतंत्र क़ा ठेकेदार अमरीका.
     हमें शायद पता होगा की गिरजा बाबू का जन्म बिहार के सहरसा जिले में 1925 में हुआ था. इनकी पूरी शिक्षा-दीक्षा भारत में हुयी और इनके नेपाल के लोकतान्त्रिक आन्दोलन क़ा केंद्र काशी था. इनके पिता जी लोकतंत्र की लडाई के कारण निर्वासित जीवन भारत में सपरिवार बिता रहे थे. गिरजा बाबू, बी.पी. कोईराला, गणेशमान सिंह के साथ महात्मा गाँधी , डॉक्टर लोहिया के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया.
      बी.पी. कोईराला के न रहने पर कांग्रेस क़ा नेतृत्व गिरजा बाबू के हाथ में आया. मै गिरजा बाबू से 4 -5 बार मिला वे बड़े ही धैर्यवान थे. एक बार जब हिन्दू राष्ट्र को लेकर पूरा नेपाल असहज महसूस कर रहा था, गिरजा बाबू से हमारी भेंट हुयी मैंने उनसे चर्चा की उनका साफ उत्तर था कि मै हिंदुत्व के खिलाफ नहीं हूँ. लेकिन हिंदुत्व व देश के विकास में राजा बाधक है. बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि प्रसिद्द कथावाचक पं. नारायण पोखरेल को कथा के लिए हमने प्रोत्साहन दिया, मै प्रधानमंत्री रहते उनकी कथा सुनने जाता. एक बार राजा वीरेन्द्र ने मुझसे पूछा कि गिरजा बाबू आप कथा में जाते हैं! आप तो समाजवादी हैं, मैंने राजा को बताया कि मैं पं. नारायण पोखरेल की कथा को प्रोत्साहित करता हूँ जिससे कि नेपाल, नेपाल बना रहे. गिरजा बाबू हिन्दू राष्ट्र के समर्थक थे लेकिन राजा के नहीं. लोकतान्त्रिक हिन्दुराष्ट्र जिसका अभिवयक्त समय-समय पर उनकी उत्तराधिकारी सुजाता कोईराला करती रहती हैं.
      वे लोकतंत्र के महान योद्धा थे. उनकी स्पष्ट मान्यता थी कि हिंदुत्व रहने पर ही साम्यवाद, राजावाद व समाजवाद रहेगा. माओवाद के 10 वर्ष हिंसा, हत्या व ब्यभिचार से बाहर लाकर इतने लम्बे संघर्ष को बड़े ही धैर्य पूर्वक माओवादियों को राष्ट्र के मुख्य धारा में लाने का साहसिक कार्य किया. वे चाहते थे कि इसी बनने वाले संविधान में नेपाल हिन्दू राष्ट्र घोषित हो. वे शांति व संघर्ष के पर्याय थे उन्होंने भंग संसद की पुनर्बहाली की मांग की, अंत में विशाल सत्याग्रह में जब पूरा देश सड़क पर उतर आया जो न भूतो न भविष्यत् था, जिसमे कोई जनहानि नहीं हुयी नेपाल का संसद पुनर्बहाल हुआ. जहाँ माओवादियों ने 40 हजार निरपराध लोगों की हत्या की. नेपाल की संरचना (आधारभूत ढांचा) को बिगाड़ने का कार्य किया, वहीँ गिरजा बाबू ने गाँधीवादी रास्ता निकाला. वास्तव में वे नेल्सन मंडेला के पश्चात् दुनिया में वर्तमान समय के दुसरे लोकतान्त्रिक योद्धा थे. वे हिन्दू किंगडम के नहीं लोकतान्त्रिक हिन्दू राष्ट्र के समर्थक थे, उन्होंने अपनी रणनीति के द्वारा माओवादियों की अलोकतांत्रिक सरकार को सत्ताच्युत करके लोकतान्त्रिक साकार का गठन कराया. वे मानते थे कि नेपाल व भारत का हित समान है. भारत का विरोध करने वाला नेपाल का हितैषी नहीं हो सकता. वे जानते थे कि हिन्दू सुरक्षित रहेगा तो नेपाल भी सुरक्षित रहेगा, उन्हें शत-शत बार श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए आशा है कि नेपाल को लोकतान्त्रिक नेतृत्व उनकी पुत्री सुजाता के द्वारा मिलेगा और उनकी आत्मा के शांति के लिए संविधान में हिन्दू राष्ट्र अवश्य आएगा. मेरी 4 -5 बार की भेंट में जो वार्ता हुयी उसका थोडा सा उल्लेख किया है.

एक संघर्षशील आत्मा को हार्दिक नमन!
सूबेदार

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4 टिप्पणियाँ

  1. संघर्षशील आत्मा को हार्दिक नमन!

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  2. अच्छा लगा .......
    ............
    विलुप्त होती... .....नानी-दादी की पहेलियाँ.........परिणाम..... ( लड्डू बोलता है....इंजीनियर के दिल से....)
    http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_24.html

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  3. गिरीजा कोईराला के चिंतन मे हिन्दुत्व नही था। जब नेपाल मे धर्म निरपेक्षता के घोषणा के विरुद्ध स्वस्फुर्त आन्दोलन उठ खडा हुआ तो गिरीजा कोईराला राजा के पास जा कर आन्दोलन को दबाने के लिए धमकाने पहुंच गए। जबकी वह आन्दोलन स्व-स्फुर्त था। बाद मे हिन्दुत्व के भाव को मिटाने के लिए इन्ही नेताओं ने जातियता और क्षेत्रियता बढाने का घिनौना खेल खेला। गिरीजा जैसे लोग सफलता के लिए बहन, बेटी, धर्म या राष्ट्र किसी को भी दाँव पर लगा सकते थे। वह हिन्दु ब्राहमण परिवार से थें, लेकिन उनकी एक बहन पाकिस्तानी मुसलमान से ब्याही गई थी तथा उनकी खुद की बेटी जर्मन ईसाइ से ब्याही थी।

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