महान परंपरा का वाहक वंश
भारतीय सत्ता का केंद्र चित्तौड़--!
७१२ ईशा में इस्लामिक सत्ता स्थापित नहीं हो पाई संघर्ष पर संघर्ष चलता रहा महाराजा दाहिर अथवा पृथ्बीराज चौहान के पराजित होने के पश्चात् चित्तौड़ हिन्दू सत्ता का केंद्र बना रहा और हिन्दू स्वाभिमान की रक्षा करता रहा जिस परंपरा की नीव युग पुरुष बप्पा रावल ने कंधार, ईरान तक जीत कर भगवा झंडा फहराया था उसी परंपरा के उत्तराधिकारी स्वयं महाराणा प्रताप आगे आये, वास्तव में यह कहना की मानसिंह व अन्य राजा जिन्होंने अकबर से बिबाहयेत्तर सम्बन्ध बनाये वे राजा थे, यह ही गलत है अकबर अपने साथ इनकी लड़कियों के साथ बिबाह कर इन सभी को राजा की उपाधि दी, ये सामान्य जमींदार थे न की राजा अकबर इनको राणा के मुकाबले खड़ा करना चाहता था जो सम्भव नहीं हो सका, इस नाते महाराणा इन सबके साथ भोजन कैसे करते क्यों की महाराणा तो भारत व हिन्दू समाज के सिरमौर, हिन्दू समाज स्वाभिमान के स्वाभाविक उत्तराधिकारी थे, बप्पा रावल बंश परंपरा की महत्वाकांक्षा तो भारत वर्ष यानी 'आर्यावर्त' पर शासन करने की थी ही इस नाते यह राजवंश इस इस्लामिक सत्ता को उखाड़ फेकना चाहता था जिससे भारत का गौरव पुनः वापस लाया जा सके, महाराणा का संघर्ष केवल चित्तौड़ के लिए ही नहीं बल्कि पूरे भारतवर्ष व हिन्दू धर्म, हिन्दू समाज के लिए था वे सम्राट चन्द्रगुप्त मोर्य के कुशल उत्तराधिकारी थे।महाराणा और तुलसी--!
एक बार महाराणा चित्रकूट श्रीराम की तपस्थली देखने गए वहां उनकी भेट संत तुलसीदास से हुई और उनसे कहा महाराज साधना-भजन, उपासना से क्या होगा यदि हिंदुत्व ही नहीं रहेगा ? तुलसीदास ने बिना उनकी ओर देखे ही बोले यदि इतना ही हिंदुत्व से प्रेम है तो महाराणा की सेना में क्यों नहीं भारती हो जाते-? मै तो राणा ही हूँ----! इतना कहना था कि तुलसीदास जी का जीवन ही बदल गया तुलसीदास ने भगवान राम के साथ संघर्ष किये बानर-भालुओं की सेना की तुलना राणा के सहयोगी कोल-भीलों से की, उन्होंने भगवन श्रीराम न कह- कर राजाराम कहा क्यों की कहीं हिन्दू जनता अकबर को अपना राजा न मान ले, एक प्रकार से रामचरित्र मानस महाराणा के प्रतिबिम्ब में लिखा गया (तुलसीदास ने श्रीराम के आलोक में महाराणा को देखा) एक महाकाब्य है जिसने मध्य -काल में हिन्दू समाज को बचाने का काम किया और महाराणा ने पुनः अपने सभी किलों को जीत कर अपने लक्ष्य प्राप्त किया।हल्दी घाटी ही नहीं सात युद्ध-----!
हल्दी घाटी का ऐतिहासिक युद्ध विश्व के अन्दर अनूठा युद्ध लड़ा गया यह केवल ५-६ घंटे अथवा एक दिन का नहीं था हल्दीघाटी के युद्ध में वहां के भीलों और राजपूतों ने अपने उष्ण खून से पूरी घाटी को लाल कर दिया, उस स्थान को देखने के पश्चात् यह अनुभव होता है की महाराणा ने यह स्थान क्यों चुना था--? महाराणा ने मेवाड़ की गद्दी पर बैठते ही एक लिंग भगवान की सौगंध खायी थी, वे मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं करेंगे, अकबर को तुर्क ही कहेंगे बादशाह नहीं, हल्दीघाटी युद्ध में मरने वालों की संख्या १५००० थी राजपुतीं की सेना में २०००० और अकबर की सेना में ८०००० सैनिक थे इस्लामिक सेना के सेनापति मानसिंह घबड़ाकर बगल में ही छावनी बनायीं और उसकी काफी ऊची दिवार बनायीं की पता नहीं कहा से महाराणा के छापामार सैनिक हमला कर दे, अकबर को अजमेर में आना पड़ा इसका उत्तराधिकारी सलीम युद्ध हेतु आया राणा के घोड़े चेतक ने अपने मालिक की इक्षा को समझ जहागीर के हाथी के मस्तक पर पैर जमा दिए राणा ने भाले से वार किया महावत मारा गया हौदा मोटा होने के कारन 'जहागीर' बच कर निकल गया, महाराणा के घाटी में जाने के पश्चात् अकबर ने हजारों निर्दोष किसानो की हत्या की, धीरे- धीरे आमेर, योधपुर, मारवाड़ व अन्य राजाओं को ताकतवर बनाया और सभी को राजा की उपाधि देकर महाराणा के समक्ष खड़े करने का प्रयास किया, बीच का काल महाराणा उदय सिंह के समय मेवाड़ कमजोर नेत्रित्व का परिणाम जो हिन्दू सत्ता थी वह कमजोर हुई जिसके अन्दर काबुल, कंधार, अफगानिस्तान, कश्मीर, गुजरात, सिंध, पूरा का पूरा पश्चिम भारत सत्ता केंद्र के नाते महाराणा बप्पारावल से कुम्भा, सांगा और राणा तक सिसौदिया वंश का सबल हिन्दू नेतृत्व था कश्मीर से कन्याकुमारी तक हिन्दू अपना गौरव मानता था, शेष दिल्ली से पूर्व, दक्षिण भारत के कुछ हिस्से मे इस्लामिक सत्ता मुगलों के नेतृत्व में थी इस प्रकार पूरे भारतियों के हृदय पर सिसौदिया वंश राणाप्रताप की सत्ता स्वीकार थी महाराणा ने अपने जीते ५७ वर्ष की आयु में ही पूरा चित्तौड़ अपने कब्जे में ले लिया। और 19 जनवरी 1597 को वे जैसे स्वतंत्रता में पैदा हुए थे वैसे ही स्वतंत्र रूप से गोलोकधाम चले गए, जब तक यह देश व मानव जाति रहेगी भारतीय स्वाभिमान के प्रतीक को याद रखेगा।------आज भी वहां की मिटटी से आवाज आती है ---
14 टिप्पणियाँ
ऐसी अमूल्य बाते जो किसी भी हिन्दू के रक्त आंदोलित करदे हमें नहीं पढाई जाती! हमें अपने इतिहास से अथवा तो असली इतिहास से दूर किया जा रहा है! इसमें साडी हिन्दू विरोधी ताकते अपना पूरा सामर्थ्य झोंक चुकी है,और उनके प्रयास अभी भी निरंतर जरी है..... ऐसे में हम पता नहीं क्यों शांत बैठे रह जाते है....
जवाब देंहटाएंआपके प्रयास अवश्य ही रंग लायेंगे!
जय महाराणा,जय श्रीराम
कुँवर जी,
हिंदू शिरोमणी और वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का इतिहास उनकी वीरता ,पराक्रम और शौर्य से भरा हुआ है ! निसंदेह उनके समकक्ष ना कोई हुआ है और ना कभी होगा !!
जवाब देंहटाएंमहाराणा प्रताप की कुर्बानी को हम लोग भुला चुके हैं.
जवाब देंहटाएंमहाराणा आज भी भारतीय सूर्य है और हमारे स्वाभिमान के प्रतीक हैं वे आज भी भारत के पर्याय बने हुए हैं ।
जवाब देंहटाएंmaharana pratap jaisa na koi hoga unki shaurya ki baate sunkar aankhe bhar aati hai
जवाब देंहटाएंmaharana pratap jaisa na koi hoga unki shaurya ki baate sunkar aankhe bhar aati hai
जवाब देंहटाएंhamare mahapurusho ke karya hamare liye anukarniya hain, lekin ham hindu kaise hai ki sudharne ka nam hi nahi lete aaj bharat ka islamikaran ho raha hai ham hath par hath dhare baithe hai. aaiye is par vichar karen tabhi maharana ki aatma ko shanti milegi.
जवाब देंहटाएंaap ka itihaas sankalan aur rastrwaadi soch dono hi aap ke lekh ka aadhar hain lekh se nai jankari mili dhnywaad
जवाब देंहटाएंराजस्थान की आन बान और शान आज भी बरकार है...
जवाब देंहटाएंबङे भाई प्रणाम
जवाब देंहटाएंअकबर के समय कि बात हे कि जब
इस दुष्ट मुगल को अपने उपर घमँङ हुया तो ईसने राम भक्त तुलसीदास को दिल्ली बुलबाकर कैद कर लिया तब
राम भक्त हनुमान जी क्रपा बँदरो के कारण इसके महलो मे सभी का जीबन
दुशबार हो गया . तब इसने अपने मुल्राओ के कहने पर तुलसी दास जी को जेल से बाहर निकालकर माफी मागी ।
तब तुलसी दास जी ने कहा कि हे दुष्ट
मुगल अब तेरे ओर तेरे परिबार के लिये अब दिल्ली मे रहना मुशकिल हे क्योकि अब ये दिल्ली राम भक्तो कि है ओर अपने पाप के परिणामतः अब आगरा मे यमुना का खारा जल पीकर प्रश्चित करना होगा . अगर तु या तेरे बँश का
कोई शासक दिल्ली से राज्य चलायेगा तो उसका राज्य नष्ट हो जायेगा
परिणाम आप सभी जानते हे कि इसके बँशज ओँरगजेब ने जब दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया तो उसके राज्य का क्या हुआ1
हमारे सभी देब परँम शक्तिशाली ओर दयालु हे
हमे अब शात्र ओर शक्ति कि पुजा करनी चाहिये
जय राम भक्त हनुमान कि
वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का इतिहास उनकी वीरता ,पराक्रम और शौर्य से भरा हुआ है ! निसंदेह उनके समकक्ष ना कोई हुआ है और ना कभी होगा
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकुछ इतिहासकारों का मत है की क्षत्रिय जाती जिसमे श्रीराम,श्रीक़ृष्ण,महावीर और महात्मा बुद्ध जैसे लोग हुए हों वह जाती मांसाहारी नहीं हो सकती राजपूतों के दो भाग थे जो राजपूत महाराणा प्रताप के साथ थे वे शाकाहारी बने रहे जो मानसिंह के साथ यानी मुगलो के संपर्क आए वे सभी मांसाहारी हो गए।
जवाब देंहटाएंमहाराना प्ताप
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