श्रीगणेशमहोत्सव और भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन--!

        

गणेश जी यानी क्या ?  

सनातन धर्म में गणेश जी का विशेष महत्व है किसी भी शुभ कार्य शुरू करने से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है क्यों की गणेश जी विघ्नेश्वर हैं, किसी विषय का ज्ञान प्रथम बुद्धि द्वारा ही होता है वे बुद्धि दाता भी हैं, इसीलिए सर्वप्रथम ''श्री गणेशायनमः''लिखा जाता है गणेश जी बुद्धि के देवता हैं, वे कैसे हैं जिनकी पूजा घर- घर में होती है जिनका लम्बा उदर है जिनका यानी 'लम्बोदर' जिनके कान बड़े हाथी के समान है सुनते हैं सब- कुछ हैं, बोलते नहीं पेट इतना बड़ा है कि सब उसमे पचा जाते हैं मुह इतना छोटा है बोलते बहुत कम हैं यह एक प्रकार का संगठन सूत्र है इनमे गुण ही गुण है इसनाते सनातन धर्म में सर्बाधिक वे पूज्य हैं, वे सगुन,शुभ के देवता हैं, सर्वाधिक इनकी पूजा घर-घर में महाराष्ट्र में होती थी.

सार्वजानिक पुजा 

 वीर सावरकर और कवि गोविन्द ने नासिक में मित्र मेला संस्था बनायीं इस संस्था ने देशभक्ति पूर्ण मराठी लोकगीतों की श्रंखला खड़ी कर आकर्षक ढंग गाकर सुनाकर इसा संस्था के कार्यकर्ताओं ने पश्चिम महाराष्ट्र में धूममचा दी, कविगोविंद को सुनने के लिए लोग उमड़ पड़ते थे राम-रावण कथा को आधार बनाकर लोगों में देशभक्ति का भाव जगाने में सफल होने लगे, उनके बारे में वीर सावरकर ने लिखा है की कवि गोविन्द अपनी कविता की अमर छाप जनमानस पर छोड़ जाते थे, धीरे-धीरे सावरकर, लोकमान्य तिलक नेताओं ने घर में पूजित गणेश जी, लोक देवता यानी गणेशउत्सव पुणे में सार्वजानिक रूप से शुरू किया बाद में यह नागपुर, बर्धा, अमरावती जैसे तमाम शहरों में गणेशउत्सव ने आज़ादी का नया ही आन्दोलन का स्वरुप धारण कर लिया, गणेशोत्सव का उपयोग आज़ादी की लडाई के लिए किया जाने की बात पूरे महाराष्ट्र में फ़ैल गयी, अंग्रेज घबरा गए इस बारे में रोलेट समिति रिपोर्ट ने भी चिंता जताई, रपट में कहा गया की गणेशोत्सव के दौरान युवकों की टोलियाँ सडकों पर घूम-घूम कर अंग्रेजी शासन बिरोधी गीत गाती हैं व स्कूली बच्चे पर्चे बाटते हैं, जिसमे अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाने और मराठों से शिवाजी की तरह बिद्रोह करने का आवाहन किया जाता है, साथ ही अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेकने के लिए धार्मिक संघर्ष को जरुरी बताया जाता है.
          उस समय गणेश उत्सवों में भाषण देने वाले प्रमुख राष्ट्रीय नेता वीर सावरकर, लोकमान्य तिलक, नेता जी सुबासचंद बोस, पंडित महामना मदनमोहन मालवीय, मौलिकचंद शर्मा, बैरिस्टर चक्रवर्ती और दादासाहेब खपड़े इत्यादि नेता हुवा करते थे जिन्होंने इस धार्मिक आन्दोलन को देश आज़ादी का आन्दोलन बना दिया जिसने देश के सामने एक बिकल्प खड़ा कर दिया इसी अधर पर बंगाल में दुर्गापूजा हिंदी भाषी क्षेत्रों में रामलीला शुरू की जिसने स्वतंत्रता का स्वरुप धारण कर लिया. 
सूबेदार जी 
मुजफ्फरपुर                    

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