ब्रिटिश काल मे भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम हेतु राष्ट्रवादी विचार की अवधारणा जिन महापुरुषों ने रखी उसमे यदि कहा जाय तो केवल और केवल महर्षि दयानन्द सरस्वती और स्वामी विवेकानंद का ही नाम उल्लेखनीय है जिनके प्रेरणा श्रोत आदि शंकर थे, इन्हीं महापुरुषों के प्रखर देश- भक्ति विचार ने देश आज़ादी का महामंत्र फूका जिसमे हजारों क्रांतिकारियों ने अपने को बलिदान किया लेकिन देश की क्षितिज पर जो लंबे समय तक छाए रहे जिंहोने देश को नेतृत्व दिया उसमे लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और बिपिनचन्द्र पाल प्रमुख थे जो देश के अलग-अलग सीमांत प्रान्तों से थे।
राष्ट्रवाद की धारा
भारत मे हमेसा दो धाराएँ थी एक राष्ट्रवाद और सून्यवाद, राष्ट्रवाद की धारा जिसमे महाराणा प्रताप, क्षत्रपति शिवा जी जैसे तो दूसरी तरफ ब्रिटिश काल मे स्वामी दयानन्द, विवेकानंद जी जैसे संत थे जहां लोकमान्य तिलक स्वामी दयानन्द से प्रभावित थे वही विवेकानंद का उनके शिष्य के समान आदर करते थे, लाला लाजपत राय आर्य समाजी होते हुए भी उत्तर भारत मे ,"रामलीला" का प्रचार किया था वहीं बिपिनचन्द्र पाल ने "दुर्गा पूजा" को सार्वजनिक कर हिन्दू समाज को जागृत करने का प्रयत्न किया तिलक ने सावरकर के साथ मिलकर "गणेश उत्सव" को सार्वजनिक कर महाराष्ट्र मे राष्ट्र जागरण का काम किया यह जागरण देश की स्वतन्त्रता प्राप्ति हेतु अमृत रस के समान था ।और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
जहां देश आज़ादी हेतु स्वामी दयानन्द सरस्वती हिन्दू समाज का जागरण कर क्रांतिकारियों की नरसरी तैयार कर रहे थे वहीं यह तिकड़ी (लाल,बाल,पाल) स्वामी जी का आदेश मानकर देश को नेतृत्व दे रही थी, देश राष्ट्रवाद के आंदोलन की मुख्य धारा मे जुड़कर हज़ार वर्ष की गुलामी से मुक्ति चाहता था। उसी समय आरएसएस के संस्थापक डॉ हेड्गेवार अपनी मेडिकल की शिक्षा पूर्ण कर नागपुर वापस आ चुके थे वे बराबर इस चिंता मे डूबे रहते की जिस देश मे महाराणा जैसे सूर-वीर महापुरुषों की शृंखला रही हो जहां चाणक्य जैसे राजनीतिज्ञ और शंकरचार्य और दयानन्द सरस्वती जैसे सन्यासी रहे हों वह देश बार-बार गुलाम क्यों होता है-? जिसकी इतनी महान संस्कृति हो, न तो भारत मे धन की कमी, न वीरों की कमी, न तो विद्वानों की कमी फिर यह दशा क्यों-? इस प्रश्न के उत्तर खोजते लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय और बिपिंचन्द्र पाल जैसे नेताओं से भेट की फिर उन्होने देखा की अंग्रेज़ो द्वारा नया नेतृत्व उभारा जा रहा है और इन महान नेताओं की तपस्या पर पानी फिर रहा है । डॉ केशव बलीराम हेड्गेवार बड़े द्रवित होकर अपने मित्रों, राष्ट्रवादी नेताओं से मिलकर लाल, बाल, पाल तथा दयानन्द, विवेकानंद के वेदना का जो अंकुर फूटा उसे डॉ हेड्गेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (हृदय की ब्यथा संघ बन फूट निकली) के नाम से नागपुर मे विजय दशमी के दिन उसका बीजारोपण किया। जो आज भारत ही नहीं पूरे विश्व मे सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन बनकर खड़ा हो गया संघ आज भारत तथा हिन्दू समाज की सभी समस्या के समाधान का उत्तर---- है।
1 टिप्पणियाँ
सर्व प्रथम शंकराचार्य,दूसरे महापुरुष स्वामी दयानन्द ने जिस कम को कर भारत को भारत वर्ष बनाने का स्वप्न सजोया उसी स्वप्न को साकार करने हेतु डॉ हेड्गेवार ने आरएसएस की स्थापना की ।
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