महाराणा राजसिंह और मुगल--!

      

साहस राणाप्रताप जैसा

'महाराणा राजसिंह' हिन्दू कुल गौरव हिन्दू धर्म रक्षक थे, दक्षिण 'क्षत्रपति शिवाजी' तो उत्तर मे महाराणा राजसिंह थे, इनका जन्म 24 सितंबर 1629 मे महाराणा जगत सिंह माता महारानी मेडतड़ी जी थी, मात्र 23 वर्ष की आयु 1652-53 ईसवी मे उनका राज्यारोहण हुआ वे धर्माभिमानी थे जब औरंगजेब ने कट्टरता की सीमा पार कर हिन्दू मंदिरों को तोड़वाने लगा बलात जज़िया कर लगाने लगा उस समय महाराणा ने मथुरा ''भगवान श्रीनाथजी'' की रक्षा कैसे हो पूरे भारतवर्ष मे औरंगजेब की भय के कारण कोई जगह नहीं दे रहा था, महाराणा ने अपने राज्य मे ''श्रीनाथ द्वारा मंदिर'' बनवाया और औरंगजेब की चुनौती स्वीकार की, कहा जब तक मेवाङ की एक लाख की सेना और मेरे खानदान में कोई भी जिंदा रहेगा श्रीनाथजी के मंदिर को कुछ नहीं हो सकता, ज्ञात हो कि उस समय मेवाङ में एक लाख की नियमित सेना थी। आज भी ''नाथद्वारा'' दर्शन हेतु सम्पूर्ण विश्व का हिन्दू जाता है। कहते हैं महाराणा राजसिंह महाराणा जैसे ही थे वे महाराणा प्रताप जैसे संगठक भी और योद्धा भी जिन्होने बार-बार मुगल सत्ता को पराजित कर महाराणा कुंभा, महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप, महाराणा अमर सिंह द्वारा निर्मित परंपरा हिंदुत्व पथ को आगे बढ़ाया ।

चित्तौड़ गढ़ की विजय और जहागीर की पराजय 

''हल्दी घाटी के युद्ध के पश्चात "अकबर" की हिम्मत नहीं पड़ी की वह "मेवाण" पर आक्रमण कर सके, अकबर के बाद जहाँगीर दिल्ली के सिंहासन पर बैठा चार साल बाद उसने मेवाण पर हमला किया। आक्रमण का समाचार मिलने के पश्चात भी "महाराणा अमरसिंह" महल मे था क्योंकि दिवेर के युद्ध में उसने मुगलों को बुरी तरह पराजित किया था। अंत मे "रालमबरा" के सरदार ने महलो मे प्रबेश कर महाराणा को दुश्मन जिहादी के समाचार बताया तो महाराणा अमरसिंह बाहर निकाला और युद्ध क्षेत्र मे गया इस लड़ाई मे 'सरदार कहण सिंह' ने मुस्लिम सेना को पराजित कर दिया, एक वर्ष पश्चात विशाल सेना लेकर अपने सेनापति के नेतृत्व मे मेवाण पर आक्रमण किया महाराणा ने उसे पराजित कर अपने राज्य मिला लिया बार-बार पराजय के पश्चात "राणा अमरसिंह" ने "चित्तौण" को जीत लिया और अपने राज्य मे मिला लिया इससे हिन्दू समाज को कितनी खुशी हुई होगी हम इसकी कल्पना कर सकते हैं, "महाराणा अमरसिंह" ने 'जहाँगीर' को सत्रह बार पराजित किया''।   

औरंगजेब की पराजय पर पराजय

शाहजहाँ के अंत समय दिल्ली मे सत्ता संघर्ष के समय ''महाराणा राजसिंह'' ने औरंगजेब की कोई सहायता नहीं की जबकि औरंगजेब ने महाराणा से सहायता मांगी थी, उसी समय महाराणा ने रामपुरा क्षेत्र को अपने अधिकार मे ले लिया, औरंगजेब मुगल सुल्तान बन गया परंतु राजसिंह के कृत्य पर ध्यान नहीं दिया, जयपुर के ''राजा जयसिंह'' और जोधपुर के ''राजा जसवंत सिंह'' के देहावसान होने के पश्चात औरंगजेब निश्चिंत होकर हिंदुओं पर जज़िया कर लगा दिया महाराणा राजसिंह ने इसका बिरोध किया, औरंगजेब जोधपुर पर हमला के दौरान ''रूपगढ़'' रियासत की राजकुमारी ''जजल कुमारी'' का डोला उठवाने हेतु पाँच हज़ार की लस्कर लेकर भेजा उस राजकुमारी ने बुद्धिमत्ता पूर्वक महाराणा को याद किया, महाराणा ने एक बड़ी फौज लेकार उस राजकुमारी की रक्षा की औरंगजेब की सारी फौज मारी गयी, जोधपुर के अल्प बयस्क ''राजा अजीत सिंह'' को औरंगजेब गिरफ्तार करना चाहा महाराणा ने उसकी रक्षा की वहाँ भी उसे मुहकी खानी पड़ी, औरंगजेब ने हिंदुओं पर जज़िया लगाया महाराणा ने एक कडा पत्र औरंगजेब को लिखा पत्र की भाषा और तथ्य वह पचा नहीं सका तिलमिला गया, इन सब से औरंगजेब चिढ़कर काबुल, बंगाल इत्यादि स्थानो से अपनी सारी फौज वापस बुलाली और मुगल साम्राज्य की सारी शक्ति लगाकर मेवाण पर आक्रमण किया औरंगजेब चित्तौण, मदलगढ़, मंदसौर आदि दुर्गो को जीतता हुआ आगे बढ़ता चला गया किसी ने उसका बिरोध नहीं किया और विजय के आनंद मे उत्सव मानता हुआ राजस्थान के दक्षिणी -पश्चिमी पहाड़ियों तक पहुच गया वहाँ महाराणा राजासिंह उसके प्रतिरोध हेतु प्रस्तुत था।

और फिर शान्ति सन्धि

शाहजादा अकबर 'पचास हजार' की सेना लेकर ''उदयपुर'' जा पहुचा किसी ने उसे भी नहीं रोका वह निश्चिंत होकर बैठ गया तो महाराणा राजसिंह ने अचानक आक्रमण करके उसके सारे सैनिको को तलवार के घाट उतार दिया और ''अकबर'' को बंदी बना लिया शांति -संधि के पश्चात उसे छोड़ा गया, मुगल सेना के दूसरे भाग मे दिलवर खाँ सेनापति के नेतृत्व मे मारवाड़ की ओर से मेवाण पर हमला किया इसको राणा के सरदारों विक्रम सिंह सोलंकी और गोपीनाथ राठौर ने पराजित कर दिया, उनका सारा साजो सामान, हथियार और गोला, बारूद छीन कर वापस भगा दिया, उधर "राणा राजसिंह" ने 'औरंगजेब' पर आक्रमण कर दिया वह दिवारी के पास छावनी लगाए बैठा था, अचानक आक्रमण कर औरंगजेब को भी "महाराणा राजसिंह" ने पराजित कर दिया, उसे भी अपना सारा गोला, बारूद, हथियार शस्त्र, अस्त्र छोडकर भागना पड़ा, बाद मे महाराणा ने "चित्तौड़" पर आक्रमण कर मुगल सेना को भगा दिया और क्षेत्र जो औरंगजेब ने जीता था उसे भी जीतकर पुनः अधिकार कर लिया, जब औरंगजेब ने मथुरा के श्रीनाथ जी मंदिर को तोड़ा तो राणा राजसिंह ने सौ मस्जिदों को तुड़वा दिया, अपने पुत्र राजकुमार ''भीम सिंह'' को गुजरात भेजा और कहा सभी मस्जिदें तोड़ डाले भीम सिंह ने तीन सौ मस्जिदें तोड़वा दिया, विजय की ध्वजा को लहराता हुआ सूरत तक पहुच गया इसी प्रकार मालवा को विजय करता हुआ नर्मदा और बेतवा तक चला गया मांडव, उज्जैन और चँदेरी तक भगवा झण्डा "मेवाण" ने फ़ाहराया। उधर "दुर्गादास राठौड़" ने भी 'औरंगजेब' की नाक में दम करके रखा था, कुमार अजीत सिंह को राजा बनाकर ही दम लिया, कहा जाता है कि दुर्गादास राठौड़ का भोजन, जलपान और शयन सब घोड़े के पार्श्व पर ही होता था। सूरत से हट कर "राजकुमार भीम सिंह" ने साहजादा अकबर और सेनापति तहवर खाँ को कई जगहों पराजित किया, शाहजादा अकबर औरंगजेब से नाराज होकर क्षत्रपति संभाजी की शरण मे चला गया, अंत मे औरंगजेब हार मानकर महाराणा से शांति -संधि कर वापस दिली चला गया।

राजपुताना को संगठित किया !

यह समय ऐसा था जब 'महाराणा राजसिंह' ने पूरे राजपूताना को संगठित कर ''मुगल (कहते हैं कि राणा राजसिंह 'जयपुर राज़ा' के यहाँ भोजन भी किया, उसको लेकर मेवाण मे उन्हे बिरोध भी झेलना पड़ा) इस्लामिक'' सत्ता को पराजित किया, इस्लामिक सत्ता को बार-बार पराजित होना पड़ा और भारत वर्ष मे उसके पराजय का युग यहीं से प्रारम्भ हुआ, औरंगजेब बार-बार महाराणा से पराजित होकर पूरी की पूरी राजधानी सहित दक्षिण चला गया और फिर वह वापस नहीं आ सका। महाराणा राजसिंह 1652 से 1680 ईसवी तक शासन किया, 22अक्टूबर 1680 को वे अल्प आयु में स्वर्ग सिधार गए। उस समय ''मेवाण'' की शासन ब्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त किया अपनी सीमा को सुरक्षित रखने हेतु किलों का निर्माण कराया, एक लाख की नियमित सेना रखने का अभ्यास किया जो रथ, हाथी के अतिरिक्त थी उन्होने ''बाप्पा रावल'' और 'महाराणा प्रताप' की धर्म रक्षक परंपरा को कायम रखी ।                

एक टिप्पणी भेजें

8 टिप्पणियाँ

  1. मेवाड़ की भूमि कभी पराजित नहीं हुई हमेसा विजय ही विजय रहा लेकिन इतिहास को सेकुलर इतिहासकारों ने देश के साथ गद्दारी की और इन महाराणाओं के बारे में देश को बहुत काम जानकारी दी औरंगजेब को तीन-तीन बार अपने हथियार,बीबियाँ और खजाना छोङकर भागना पड़ा भारत कभी गुलामी को स्वीकार नहीं किया यह इसका सबूत है.

    जवाब देंहटाएं
  2. हुकुम ये ग़लत हे राणा अमर सिंह विलसी नहीं थे अगर महाराणा प्रताप सिंह के बाद कोई महान था तो वो राणा अमर सिंह थे ओर उन्होंने आपना राज्य आपने बेटे को दे कर तपस्या करने चले गये थे
    जय एकलिंग जी
    जय महाराणा प्रताप सिंह
    जय राणा अमर सिंह

    जवाब देंहटाएं
  3. जी बिलकुल राणा अमरसिंग जी पराक्रमी अपितु एक कुशल राजनेतिक व्यक्ती भी थे .. उन्होने ते दादा राणा उदयसिंग अपने पिता महाराणा प्रतापसिंग इन दोनो के समय भी युद्ध किये और अपने समय भी पराक्रम दिखाया ...

    जवाब देंहटाएं
  4. राणा अमर सिंह को विलासी कहना ही मुर्खता है,दिबेर का ऐतिहासिक युद्ध युवराज अमर सिंह के नेतृत्व में ही लडा गया जिसमें शाही सेना की बुरी तरह हार हुइ तथा अकबर का जीजा इस लडाई मे मारा गया

    जवाब देंहटाएं