कुम्भ क्यों-----!
पौराणिक कथा है की क्षीर सागर में समुद्र मंथन हुआ था जिसमे 'विष और अमृत' दोनों निकला था ये 'क्षीर सागर' गंडक नदी के पूर्व वैशाली व गंगाजी के उत्तर में था यहीं पर समुद्र मंथन हुआ था आज का उत्तर बिहार व हिमालय ही वह स्थान है जिसका प्रमाण के रूप में बिहार के बांका जिला में 'मंदार पर्वत' खड़ा है जिसको लेकर मंथन हुआ था आज भी उसमे सर्प की घिरारी पड़ी हुई है, यहीं पर वासुकीनाथ भी स्थित हैं नारायणी नदी इसका प्रमाण है अमृत घड़े को लेकर देवराज इन्द्र जब निकले तो जहाँ-जहाँ अमृत छलक वहां-वहां कुम्भ लगता है ये स्थान हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक है प्रत्येक बारह वर्ष पर कुम्भ और प्रत्येक छह वर्ष पर अर्ध कुम्भ लगता है इस वर्ष नासिक का कुम्भ है जिसमे भारतीय मत, पंथ, विचार, परंपरा के सभी मुखिया इकठ्ठा होते हैं भारतीय समाज को कैसे संस्कारित करना है हिन्दू हित, राष्ट्र हित, राष्ट्रीय एकता के लिए क्या- क्या करना सब कुछ तय होता था भारत की नगर, ग्राम ब्यवस्था, परिवार ब्यवस्था, समरसता सभी विषयों पर चिंतन होता था वास्तव में यही कुम्भ है।
यह समरसता का पर्व है
सम्पूर्ण भारत वर्ष ही नहीं पुरे विश्व का हिन्दू समाज बिना किसी भेद-भाव के कुम्भ में आता है कोई किसी की जाती, मत, पंथ, भाषा नहीं पूछता सभी एक दूसरे की सुबिधा का ध्यान रखते हैं सभी एक दूसरे की सेवा में अपने मुक्ति का मार्ग खोजते हैं सभी संतों के पंडालों में आध्यात्मिक चर्चा ही नहीं तो राष्ट्रीयता देश भक्ति का प्रबल प्रवचन होता है लगता है की देश भक्तों का मेला लगा हुआ है कोई भी तीर्थ यात्री किसी भी सरकार से किसी प्रकार की अपेक्षा नहीं रखता वह अपने खर्चे आता है किसी का वह कुछ नहीं लेना चाहता भक्तिमय वातावरण में रहता है सबके अंदर ईश्वर का ही दर्शन करता है।
राष्ट्रीय एकता का पर्व-
भारत के कोने-कोने से सभी पंथों के जगत गुरु शंकराचार्य, रामनुजाचार्य, रामानंदाचार्य, बल्लभाचार्य, गोरक्ष परंपरा, कबीर, नानक, रबिदास, आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन, गायत्री परिवार, गौरिया मठ, वारकरी मत, स्वामिनारायण ऐसे सभी मत-पंथ यहां इकठ्ठा होते है, शास्त्रार्थ की परंपरा रहती है शास्त्रार्थ के द्वारा अपने- अपने मत की श्रेष्ठता सिद्ध की जाती है, यह वास्तव में भारत का राष्ट्रीय कुम्भ होता है जो इस कुम्भ में शामिल होता है वे सभी भारतीय मत को पुष्ट करते हैं, लेकिन आज भी दुर्भाग्य का विषय है की कुछ मत पंथ कुम्भ में शामिल नहीं होते आखिर वे कब-तक अभारतीय बने रहेंगे इस्लाम और ईसाई मत के लोग कुम्भ में आने को तैयार नहीं वे अपना मत भारतीय मत में शामिल नहीं करना चाहते ये कब -तक यदि उन्हें भारत स्वीकार है तो उन्हें भारतीय परंपरा को स्वीकार करना होगा उन्हें इस राष्ट्रीय कुम्भ में शामिल हो सिक्ख, बौद्ध और जैन परंपरा के सामान राष्ट्रीयता का अंग बनाना चाहिए।
कुम्भ का अद्भुत दृश्य
आज प्रातः ४ बजे के पहले से ही संतों अखाड़ों के महंतों जगत गुरुओं तथा महामण्डलेस्वरों का अपने-अपने शिष्यों के साथ सवारियां निकल रही थी जैसे राजे- महाराजाओं की सवारी निकल रही हो, अद्भुत छटा है जैसे साक्षात 'देवराज इन्द्र' उतर आये हों सभी 'गोदावरी गंगा' के 'राम कुण्ड' की तरफ बढ़ रहे हैं, आज भारत के इस राष्ट्रीय एकात्मता के महाकुम्भ में लाखों श्रद्धालु स्नान करने वाले हैं ''धर्म'' भारत की आत्मा है यदि भारत को जगाना होगा तो धर्म को जगाना होगा हमारे पूर्वजों ने इन्हीं परम्पराओं द्वारा भारत को बार-बार जगाने का प्रयास किया, आज हम लाखों करोणों की संख्या में इस समरसता- राष्ट्रीयता के महाकुम्भ में डुबकी लगा रहे हैं, हरिद्वार के कुम्भ में सात करोड़, प्रयाग में नौ करोड़ श्रद्धालुओं ने स्नान किया, लेकिन वह दिन कब आएगा जब इस्लाम और ईसाई मतावलम्बी भी इस महाकुम्भ के अंग होंगे ! कब वे अरब और रोम की राष्ट्रीयता से पलड़ा झाडेंगे, आज राष्ट्रीयता का महान युग है जिसमे हम इन मतावलम्बियों को अछूत न समझे लेकिन यह कब होगा जब वे अपने को मलेक्ष-पन से मुक्ति पाएंगे ये मुक्ति भी कब मिलने वाली है जब वे इस महाकुम्भ के अंग होंगे------!
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