शिक्षा अथवा स्किल डेवलपमेंट

विद्या ददाति विनयं

"सा विद्या या विमुक्तये" विद्या वह है जो मनुष्य को मुक्ति दिलाये, अब मुक्ति क्या है ? यह प्रश्न विचारणीय है आत्मा को परमात्मा से जोड़ना यानी प्रकृति अथवा परमेष्ठी, वह शिक्षा जिसमें पशु-पक्षी, जीव-जंतु, पेड़- पौधे ही नहीं तो जड़ वस्तु का भी विचार हो, उसकी भी चिंता हो, सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वेसंतु निरामयः, जहाँ इस प्रकार की जीवनशैली है उसे पढ़ा लिखा कहा जा सकता है, विद्या जो विनय, शील, सहनशीलता, सरलता देती है जो सर्प को दूध पिलाने से लेकर चींटी को चारा देने तक का ज्ञान जिसे करने से मन प्रसन्न होता है आत्मा को शांति मिलती है जब हम दुखी को भोजन कराते हैं, समाज के गरीब ब्यक्ति की चिंता करते हैं उसके शिक्षा की ब्यवस्था करते हैं उसे सुखी और संपन्न देखते हैं मन प्रसन्न होता है जिस शिक्षा से ऐसा करने की इक्षा हमारे मन में होती है, उसे विद्या कहते हैं, अब यह कौन सी विद्या ? क्या पढ़ने से मनुष्य के अंदर यह सब गुण आते हैं ?


वयं राष्ट्रे जाग्रयाम पुरोहितान

वह विद्या जिससे अपने देश व संस्कृति के प्रति गौरव का ज्ञान हो जिससे अपने महापुरुषों, अपने तीर्थों, नदियों, पर्वतों और प्राकृतिक सम्पदाओं में ईश्वरत्व का दर्शन करती हो जिससे जीव-जंतु, पशु-पक्षी, गिरि-जंगल सभी की सुरक्षा जिसकी ईश्वर ने हमे सुरक्षा करने की जिम्मेदारी सौंपी है आखिर मनुष्य ही जिम्मेदार क्यों ? क्योंकि सभी जीव जंतुओं में मनुष्य ही विवेकशील प्राणी है इस कारण पूरी पृथ्वी की सुरक्षा की जिम्मेदारी मनुष्य की है, भारतीय संस्कृति क्या है जब हम इस विषय पर विचार करते हैं तो ध्यान में आता है कि लाखों करोड़ों वर्षों के तपस्या करने के बाद यह उन्नत संस्कृति का निर्माण हुआ है जिसने तीर्थों का निर्माण किया जिसने महापुरुषों के आचरण को विकसित किया इस महान संस्कृति का विकास करके एक परिवार, समाज का निर्माण किया वह धीरे-धीरे राष्ट्र के रूप में विकसित हुआ प्रत्येक मनुष्य के अंदर जियो और जीने दो की संस्कृति का निर्माण किया जिसने केवल मेरा ही मार्ग सही है ऐसा नहीं तो आप का भी मार्ग ठीक है इस चिंतन ने अपने अपने विचार के आधार पर सनातन वैदिक धर्म में बहुत से पंथ पूजा पद्धति खड़े हुए जहाँ याज्ञवल्क्य के "अहम ब्रम्हास्मि" यानी "ब्रम्हा सत्य जगत मिथ्या" के सिद्धांत के आधार पर आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने 'बौद्ध नास्तिक चिंतन' को समाप्त कर तो 'रामानुजाचार्य' ने "द्वैतवाद" के चिंतन को स्वीकार किया वहीं 'स्वामी रामानंद' ने "विशिस्टा द्वैत" आगे चलकर 'स्वामी दयानंद सरस्वती' ने "त्रैतवाद" स्वीकार कर के दैश के स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। हमारे ऋषियों ने पुरोहितों का निर्माण करके सम्पूर्ण गाँवो को बांधे रखा और राष्ट्रीयता का अलख जगाने का काम किया यही है भारतीय शिक्षा।


मनुर्भव

भारत में शिक्षा का अर्थ है पूर्ण मानव जीवन का विकास केवल आर्थिक चिंतन नहीं तो समग्र विकास चिंतन धारा जिसमे वैद्य मनुष्य की नाड़ी से ही पूरे शरीर के रोगों का पता लगाने का सामर्थ्य रखता लेकिन पश्चिमी चिकित्सा प्रणाली में सभी अंगो के अलग अलग प्रकार व सोध करने यानी समग्रता नहीं, "ऋग्वेद" में भगवान ने हमे मनुर्भव की शिक्षा दी हमारे ऋषियों ने मनुर्भव यानी मनुष्य बनो यानी 'हिन्दू वांग्मय' ने पूर्ण मानव की बात की, पूर्ण मानव के लिए प दीनदयाल उपाध्याय ने 'एकात्म मानववाद' में कहा कि आप तभी सुखी हो सकते हैं जब 'निचले पावदान' पर बैठा ब्यक्ति को दो वक्त की रोटी पहनने के लिए कपड़े और रहने के लिए मकान हो जाय पूर्ण मनुष्य 'भगवान श्री राम' जैसे "मनुस्मृति" आधारित जीवन जिसमें सब कुछ समाहित हो इस प्रकार की शिक्षा जिससे परिपूर्ण मानव बनाया जा सकता है, शिक्षा मातृ भाषा में ही होना चाहिए जो भाव हम अपनी माँ की भाषा में समझ सकते हैं वह अंग्रेजी भाषा में नहीं समझ सकते आज विश्व में अनेक देश हैं जो अपनी मातृभाषा के प्रति सजग हैं क्योंकि अपनी राष्ट्रीयता उसी में समाहित है।

वर्तमान शिक्षा

वर्तमान भारतीय शिक्षा भारतीय न होकर मनुष्य को मनुष्य नहीं एक यन्त्र बनाने का प्रयत्न हो रहा है इस शिक्षा में मानवता के लिए कोई स्थान नहीं है प्रकृति का दोहन नहीं केवल शोषण करने की बृत्ति तैयार की जा रही है नास्तिक दर्शन होने के कारण पश्चिमी दर्शन में मनुष्य को देखने का नजरिया अलग प्रकार का होने के कारण आज सारा जगत त्राहि-त्राहि कर रहा है केवल रोटी के लिए शिक्षा, केवल भोजन के लिए शिक्षा, केवल अपने लिए शिक्षा यानी 'स्किल डेवलपमेंट' के अतिरिक्त कुछ नहीं और स्किल डेवलपमेंट को शिक्षा नहीं कह सकते, जब टर्की में इस्लामी खलीफा को हटाकर 'ब्रिटिश सासन ने 'मुहम्मद कमाल पासा' को शासक बनाया तो मुसलमानों ने "खिलाफत आंदोलन" शुरू किया उसकी पहली बैठक में गांधी जी भी गए थे वे अपने साथ "स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती" को भी ले गए जब मुसलमानों ने "काफिरों" की हत्या करने का आवाहन किया तब स्वामी जी ने गाँधी से कहा कि इसमे तो हिन्दुओ की हत्या की बात हो रही है आप समझ रहे हैं! 'महात्मा गांधी' ने कहा ये हिन्दुओं के लिए नहीं अंग्रेजों के लिए कह रहे हैं, "पार्टीशन ऑफ इंडिया" में डॉ आंबेडकर कहते हैं कि काश गांधी पढ़े लिखे होते फिर आगे वे लिखते हैं कि 'गाँधी नेहरू' की शिक्षा केवल 'स्किल डेवलपमेंट' है न कि शिक्षा 'भारतीय शिक्षा' यानी "भारतीय वांग्मय" की शिक्षा जिसमे "वेद, उपनिषद, ब्राह्मण ग्रंथ, रामायण और महाभारत" इत्यादि ग्रंथ जो मानुष को मनुष्य बनाती है न कि यंत्र।