मुगल सेना नायक राजा मानसिंह


महाराणा का प्रतिशोध

महाराणा प्रताप ने विजय प्राप्त करने के पश्चात् अपने सामंत रहे मानसिंह को दण्डित करने का तय किया वे यह भी देखना चाहते थे कि अब मानसिंह जिसका सामंत है जिसने मानसिंह को राजा की उपाधि दी है जिसका ये सेनापति है वह कितनी मदद करता है! महाराणा ने आमेर राज्य के व्यावसायिक नगर "मालपुरा" को तबाह करने के लिए हमला किया और उसे नष्ट करने के पश्चात् शेष जीवन प्रजा पालन में लगा दिया। लेकिन मानसिंह का दुर्भाग्य देखिये उसे अपनी करनी का फल मिलना प्रारंभ हो गाया। वास्तविकता यह है कि जो ब्यक्ति एक बार गिर जाता है वह गिरता ही रहता है मानसिंह जीवन भर अपमानित होता रहा यहाँ तक मरने के पश्चात् वह आज भी अपमानित हो रहा है ।

जीवन भर पश्चाताप

महाराणा प्रताप कछवाहों को सबक सिखाने के बाद प्रजा पालन में जुट गए लेकिन अकबर को यह कसक बनी रही कि मेवाङ को फतह नहीं कर सका उसने राजपूताने के अधिकांश राजाओं से सन्धि कर उन्हें अपने काबू में कर लिया जो मेवाड़ के सामंत थे। उन्हें मंसबदारी देकर राजा का सम्मान देकर कुछ से रिस्तेदारी जोड़कर अपने काबू में कर लिया यानी एक प्रकार से गुलाम बना लिया लेकिन मेवाड़ में वह पराजित ही रहा । उसका परिणाम मानसिंह का दरबार में महत्व कम हो गया, मानसिंह भी सुख से नहीं रह पाया जीवन भर उसे यह पश्चाताप बना रहा कि उसने मेवाड़ पर आक्रमण किया। अकबर मानसिंह से केवल एक बार ही रुष्ट हुआ जब वह महाराणा के विरुद्ध असफल हुआ।

मानसिंह और जहाँगीर

अकबर के मृत्यु के पश्चात जहाँगीर आगरा की गद्दी पर बैठा तो उसने 35 दिन के बाद मानसिंह को बंगाल में युद्ध के लिए भेज दिया। मानसिंह अपने कर्मों पर पश्चाताप करता हुआ बंगाल रवाना हो गया। मई 1607 में जहाँगीर ने मानसिंह को अपने पास तलब किया, उस समय जहाँगीर काबुल में था जब फरवरी 1608 में वह जहाँगीर आगरा पहुंचा तो मानसिंह उसकी सेवा में उपस्थित हुआ।, जहाँगीर ने मानसिंह को बूढ़ा भेड़िया और कपटी कहकर उसकी आलोचना की और हमेशा अपमानित करने का अवसर खोजता रहता था।

गिरावट की हद पार की

जहाँगीर को मिलाने के लिए मानसिंह ने 8 जून 1608 को अपने पुत्र जगत सिंह की युवा पुत्री का विबाह बूढ़े जहाँगीर के साथ कर दिया। इस स्थिति को समझना बड़ा ही कठिन है मनुष्य का इससे बड़ी दुर्गति और क्या हो सकता है ? कि जिस जहाँगीर से मानसिंह की बहन मानबाई का बिबाह हुआ था जिसे जहाँगीर शराब के नशे में कोड़े से पीट -पीट कर मार डाला था, उसी जहाँगीर के साथ मानसिंह अपनी पौत्री का विवाह किया। कोई परिणाम नहीं आया जहाँगीर ने मानसिंह की पौत्री को तो अपने हरम में जगह दी किन्तु मानसिंह को दक्षिण में युद्ध के लिए भेज दिया। मानसिंह का शेष जीवन दक्षिण के मोर्चे पर ब्यतीत हुआ, उसे मरते समय अपनी मातृभूमि भी नशीब नहीं हुई। मानसिंह को अपने कर्मों का फल मिला ईश्वर कभी किसी को माफ नहीं करता मंदिर बनाने, पूजा करने से पाप कम नहीं होता उसका प्रतिफल तो मिलता ही है। 'भारतीय राष्ट्रवाद आध्यात्मिक राष्ट्रवाद' है 'मानसिंह' यह समझ नहीं सका कि "महाराणा प्रताप" भारतीय संस्कृति- राष्ट्रीयता के प्रतीक हैं और 'मुगल' आक्रांता लुटेरा, 6 जुलाई 1614 को ''एलिचपुर'' में मानसिंह ने अंतिम सांस ली। 

संदर्भ सूची: चित्रकूट का चातक, सवाई जयसिंह, मानप्रकाश, राणा रासौ, नीले घोड़े का सवार, अरावली के मुक्त शिखर