चित्तौड़ के पुनर्जन्म दाता "राणा हम्मीर सिंह"

 

मेवाड़ राजवंश

734 ई. से मेवाड़ जिस राजकुल का आरम्भ हुआ उसका क्रम अटूट बना रहा। "केवल राजपूताने की रियासतें ही नहीं परंतु सँसार अन्य राज्यों के राजवंशों से भी उदयपुर का राजवंश अधिक प्राचीन है। 1350 ई. से भी अधिक वर्ष एक ही राज्य पर राज्य करने वाला संसार में शायद ही कोई दूसरा राजवंश होगा।" इस राजवंश में अनेक प्रतिष्ठित राजा हुए जिनमें बप्पा रावल, राणा हम्मीर, महाराणा कुम्भा, राणा सांगा और राणा प्रताप केवल बड़े शौर्यवान ही नहीं थे बल्कि वे शक्ति संपन्नता भी बहुत अर्जित किया पुण्य कार्य, निर्माण कार्य तथा बहुत युद्ध कार्य भी इस अवधि में किये। राणा हम्मीर सिंह सिसौदिया वंश के प्रथम शासक थे, रावल लक्ष्मण सिंह का ठिगाना सिसौदे गांव था उन्हें मेवाड़ नरेश ने वहां की जागीर दी थी हालांकि यह वंश भी बप्पा रावल का ही था, राणा हम्मीर को मेवाड़ का उद्धारक कहा जाता है। 

महारानी पद्मनी का जौहर

 ई.स. 1303 का वर्ष था दिल्ली का सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी हिंदू राजाओं के तमाम ठिकानों को तबाह कर चुका था, उसको चितौड़ राज्य जो किसी से झुकने को तैयार नहीं था। अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया, तत्कालीन चित्तौड़ के शासक रावल रतन सिंह बड़े यशस्वी और पराक्रमी राजा थे। उन्होंने अपने राजपूत सामंतों, गढ़ों और ठिगानों को युद्ध की तैयारी के लिए पत्र लिखा। सारे राजपूत सामंत चित्तौड़ किले में दाखिल हो गए उसमें से सबसे महत्वपूर्ण सामंत थे रावल लक्ष्मण सिंह जो सिसौदे गाँव के थे इसी बप्पा रावल वंश के थे वे अपने सात पुत्रों तथा अपनी सेना के साथ युद्ध में भाग लिया। रावल रतन सिंह ने युद्ध के लिए विचार विमर्श करना शुरू कर दिया और महारानी पद्मिनी ने जौहर की तैयारी! राजपूत सेना किले से बाहर युद्ध मैदान पर उतरी राजपूत- मुस्लिम सेना पर भारी पड़ने लगे अलाउद्दीन खिलजी दूर पहाड़ी पर बैठा युद्ध देख रहा था उसे मेवाड़ के राजपूतों से भय था इसलिए युद्ध में प्रत्यक्ष भाग नहीं लिया। तभी आवाज आयी रावल रतन सिंह मारे गए, राजपूतों ने शाका किया और स्वयं को बलिदान करते हुए हज़ारों मुसलमानों को काट डाला लेकिन मुस्लिम सेना समुद्र जैसी थी अब राजपूत युद्ध हार चुके थे लक्ष्मण सिंह सहित 6 बेटों का बलिदान हो चुका था उसमें एक लड़का अजय सिंह घायल अवस्था में बच गया और युद्ध मैदान से बाहर निकल गया। जब राजपूतों ने भगवा पहन कर शाका किया, महारानी पद्मिनी को जब सूचना मिली कि महराज मारे गए तो सभी 16000 क्षत्राणियों के साथ जलती चिताओं में कूद कर अपने को अग्नि को समर्पित कर दिया जिसे हम आज भी महारानी पद्मिनी के जौहर के नाम से जानते हैं।

कौन है हम्मीर

किले में अलाउद्दीन खिलजी को कुछ नहीं मिला, उसने अपने सात वर्षीय पुत्र 'खिज्र खान' को चित्तौड़ की गद्दी सौंप कर दिल्ली चला गया। और अब मेवाड़ राज्य में अराजकता का वातावरण हो गया वहां की जनता देशभक्त थी किसी मुस्लिम को स्वीकार करने को तैयार नहीं थी। इधर युद्ध में हाथ पैर बेकाम हुए लक्ष्मण सिंह का छोटा लड़का अजय सिंह जंगलों में दर- दर भटक रहा था, वे एक स्थान पर खड़े देख रहे थे! कि खिलजी की सह पर स्थान-स्थान पर डकैती होने लगी स्थानीय 'मुंजाबलुचा' नाम का डाकू जिस पर खिलजी का हाथ था इससे पूरा मेवाड़ परेशान था। मुंजा बलुचा डाकू एक रात डकैती करके वापस अपने ठिकाने पर जा रहा था, तब तक एक दस वर्ष के बालक ने उसे द्वंद्व युद्ध के लिए ललकारा ! पहले तो मुंजा जोर ठहाका मार हंसा लेकिन बाद में युद्ध के लिए तैयार हो गया एक ही झटके में उस वीर बालक ने उसका गला धड़ से अलग कर दिया। तभी इस युद्ध को देखते हुए वहां पहुँच जो यह दृश्य देख रहे थे अजय सिंह ने पुछा कि वीर बालक तुम कौन हो ? उस बालक ने उत्तर दिया "मैं सिसौदे गांव का बप्पा रावल का वंशज लक्ष्मण सिंह का पोता सूर्यवंशी "हम्मीर सिंह" कहते हैं मुझे। दौड़कर अजय सिंह चिल्लाते हुए उसे गले लगा लिया और कहा हे बप्पा के कुल दीपक मैं तुम्हारा चाचा अजय सिंह! तुरंत अजय सिंह ने घोषणा की कि कौन कहता है कि मेवाड़ का कोई उत्तराधिकारी नहीं है बप्पा रावल के वंश का वारिस अभी जीवित है और यही है चित्तौड़ का उत्तराधिकारी ! उन्होंने उसका तुरंत हम्मीर सिंह का राजतिलक कर सिसौदे गांव चले गए। यह खबर आग के समान पूरे राजस्थान में फैल गई सभी सामंत, ठिगानों के लोग अपने राजा से मिलने आने लगे और आगे दस वर्षों तक सेना की तैयारी होने लगी अजय सिंह ने हम्मीर सिंह को युद्ध कलाओ का ज्ञान दिया और गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया वह गुरिल्ला युद्ध का महारथी बन गया। इधर चित्तौड़ से खिजर खान भाग गया था उसके स्थान पर खिलजी ने  एक अपने सेवक 'मल्दी सोनगरा' को चित्तौड़ सौंप दिया था। राणा हम्मीर का जन्म लक्ष्मण सिंह के पुत्र अरिसिंह पत्नी उर्मिला की कोख से सिसौदे गांव सन 1314 में हुआ था

महाराणा हम्मीर का पुनः चित्तौड़ पर कब्जा

1303 में चित्तौड़ के पराजय के पश्चात आम कत्लेआम हुआ जिसमें 30000 किसान मारे गए पूरे राज्य में प्रतिक्रिया थी सभी बदला लेने के लिए उतावले थे और अब तो उन्हें हम्मीर जैसा नायक मिल गया है। खिज्र खान से शासन नहीं चलने पर ख़िलजी ने अपने एक सेवक सोनगरा को जिम्मेदारी दी। हम्मीर को खिलजी के अत्याचारों से परिचय कराया उससे हम्मीर के अंदर आग भड़क उठी, भील सरदार और राजपूतों सामन्त और सरदारों ने युद्ध की आज्ञा मांगी, अब 1326 आ गया और महाराणा हम्मीर सिंह ने अपनी प्रचंड सेना लेकर मेवाड़ पर आक्रमण कर उसे परास्त किया, वह सोनगरा भागकर दिल्ली ख़िलजी के पास भाग गया, लेकिन उसके पुत्र जयसिंह को कैद कर लिया गया। इधर उन्हें परास्त कर महाराणा हम्मीर ने चित्तौड़ में सिसौदिया कुल का अधिपत्य स्थापित करना शुरू कर दिया। सिसौदे गांव के होने के कारण आगे इस वंश का नाम सिसौदिया हो गया। हम्मीर का ही प्रताप था कि उनके पहले रावल कहे जाने वाले राज्यकर्ता अब राणा फिर महाराणा कहलाने लगे।

पुनः वैभव की ओर, मुहम्मद तुगलक कैद किया 

अब मेवाड़ किले पर पुनः भगवा ध्वज फहरने लगा। मेवाङ के आस पास 80 ठिगानों को मुसलमानों से जीत कर कब्जा कर लिया दिल्ली के सुल्तान को जब यह समाचार मिला तो वह कॉप उठा, विचार विमर्श के पश्चात उसने मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए सेना तैयार कर अपनी विशाल सेना के साथ चल दिया। अब दिल्ली पर मुहम्मद तुगलक का शासन था, इधर हम्मीर सम्पूर्ण राजपुताना को आज़ाद देखना चाहते थे, राणा हम्मीर तुगलक से बेखबर नहीं थे। उन्होंने शत्रु सेना का मेवाड़ में इंतजार करना ठीक नहीं समझा वे भी दिल्ली की ओर अपनी प्रचंड सेना के साथ चल दिये। तीन महीने चलने के साथ तुगलक सिंगौली के मैदान में डेरा डाल दिया। राणा जिस का इंतजार कर रहे वह समय आ गया सिंगौली के मैदान में अपने मुट्ठी भर सैनिकों के साथ गुरिल्ला युद्ध के द्वारा रात्रि में ऐसा हमला किया कि तुगलक के छक्के छुड़ा दिया। हम्मीर बड़ा दुद्धिमान और चौकन्ना योद्धा था वह तुगलक को कोई मौका नहीं देना चाहते थे। रात्रि के अंधेरे में शाही सेना आपस में लड़कर मर गई, राणा हम्मीर ने तुगलक को अपने घोड़े के पीछे बाधकर घसीटते दौड़ाते हुए मेवाड़ ले आये और छः महीने के लिए कैद कर लिया गया। बाद में पचास लाख रुपए एक हज़ार हाथी और सम्पूर्ण राजपुताना के आज़ादी के शर्त पर सुल्तान को कैद से रिहा कर दिया गया छः महीने दिल्ली का सिंहासन खाली रहा। पर हम्मीर ने दिल्ली पर कब्जा नहीं किया। उस समय दिल्ली भारत के सत्ता का केंद्र नहीं था लेकिन अब मेवाङ अपने पौरुष के बल भारत की सत्ता के केंद्र में आ गया था। हम्मीर के जिंदा रहते हुए किसी भी मुस्लिम सुल्तान ने मेवाड़ अथवा किसी हिन्दू राजा पर आक्रमण नहीं किया।

अंतिम विदाई

उस इस्लामिक विप्लव में मेवाड़ के राणा हम्मीर ने सारे राजपूताने को पुनः हिंदुत्व मय करके विशाल साम्राज्य का निर्माण किया इतना ही नहीं भारतवर्ष में उत्तर में मेवाड़ जो भारतीय सत्ता का केन्द्र बन गया था दूसरा विजयनगर साम्राज्य इन्होंने हिंदू संस्कृति हिंदू धर्म ध्वजा को कभी झुकने नहीं दिया। भारत के अंदर कोई एक सत्ता केंद्र नहीं था क्योंकि चक्रवर्ती ब्यवस्था समाप्त हो गई थी राजा अपने पौरुष के आधार पर भारत की सत्ता के केंद्र में रहते थे और अब सत्ता का केंद्र मेवाड़ बन गया था जिसका नेतृत्व महाराणा हम्मीर करते थे । पहले इस राजवंश के उत्तराधिकारियों को रावल कहा जाता था रावल रतन सिंह के पतन के पश्चात हम्मीर ने राणा की उपाधि धारण किया और फिर महाराणा की उपाधि धारण किया। बप्पारावल को आशीर्वाद देते हुए हरित मुनि ने कहा था कि तू रावल से राणा और राणा से महाराणा बनेगा। और आज वही हुआ अब जितना एकलिंग को काम लेना था ले लिया और हम्मीर को महादेव ने 1378 में अपने धाम बुला लिया। इस वंश में बप्पा रावल के पश्चात यदि किसी को इस वंश का मेरू कहा जायेगा तो वह महाराणा हम्मीर ही हो सकता है। उन्होंने मेवाड़ की पुनर्स्थापना किया अपने पुरुषार्थ के बल पुनः हिंदवी साम्राज्य की स्थापना की जो भारत की सत्ता का केंद्र बन गया।

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