भगतसिंह वामपंथी अथवा राष्ट्रवादी
लाहौर में सर्वपंथ सम्मेलन का आयोजन था, आयोजन की जिम्मेदारी ब्रम्हा समाज की थी। जिसमे आर्य समाज के संस्थापक "स्वामी दयानंद सरस्वती" मुख्य रूप से पहुँचे थे सारे विश्व में स्वामीजी की विद्वता का डंका बज रहा था। उस समय विदेशों से भी स्वामीजी को निमंत्रण आता था लेकिन स्वामीजी कहते कि मेरी प्राथमिकता स्वराज्य और स्वधर्म है जो भारत के लिए है इस कारण मैं विदेश नहीं जा सकता। स्वामी दयानंद जी से मिलने के लिए पंजाब के "बंगा" ग्राम जिला लायलपुर (अब पाकिस्तान) से सरदार-किसन सिंह जी के पिता जी अर्थात भगत सिंह के दादा जी आये और स्वामी जी को निमंत्रण दिया बहुत आग्रह किया कि आप मेरे घर पर पधारें वहीं कुछ दूरी पर बंगा नामक गाँव था स्वामी दयानंद सरस्वती उनके यहाँ गए। "सरदार किसान सिंह" दो भाई थे वे स्वामी जी के द्वारा उनका उपनयन संस्कार कराना चाहते थे, जिसे ऋषि दयानंद सरस्वती ने पूरा किया। सरदार सिंह के दादा ने कहा कि स्वामी जी मैं देश के लिए इन दोनों बच्चों को समर्पित करता हूँ वे दोनों और कोई नहीं था वे बड़ा भाई भगतसिंह के पिता सरदार किसान सिंह और छोटा "अजीत सिंह" उनके चाचा जी थे। भगत सिंह का क्रांतिकारी जीवन जो शुरू हुआ वे कहते हैं कि मैं अपने चाचा जी की डायरी पढ़कर देशभक्त बना। इसका अर्थ यह है कि चाचा जी आर्यसमाजी थे वे राष्ट्रवादी थे उनकी डायरी में भी यही था जिसको पढ़कर भगतसिंह राष्ट्रवादी बन क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होते हैं। वास्तविकता यह है कि वे राष्ट्रवादी थे न कि वामपंथी! वामपंथी विचारधारा के इतिहासकारों ने इन्हें वामपंथी बताने का एक असफल प्रयास किया और आज भी कर रहे हैं।
स्वर्गारोहण के समय
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था उनकी शिक्षा डी ए वी कालेज में हुई थी वे भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी थे उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ ब्रिटिश साम्राज्य का मुकाबला किया। वे अपने अन्य साथियों सुखदेव और राजगुरु के साथ जेल गए जेल में उन्होंने अनेक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया। जेल में वे नियमित पढ़ते थे जेलर से विश्व के तमाम क्रांतिकारियों के जीवनी, उनके दर्शन पर आधारित पुस्तकों को मांगकर पढ़ते थे और जब फांसी का अंतिम समय आया तो उनके मित्र अथवा घर के किसी ने उन्हें सुझाव दिया कि वे वाहे गुरु का ध्यान करें। उन्होंने कहा जीवन भर मैंने अपने को नास्तिक बताया तो यदि आज मैं ईश्वर का ध्यान करता हूँ तो लोग मेरे बारे में कहेंगे कि भगतसिंह मौत से डर गया इसलिए मैं केवल भारतीय स्वतंत्रता का ध्यान करूँगा। इसका अर्थ यह है कि वे प्रकारांतर से नास्तिक न होकर आस्तिक थे। और उनसे ब्रिटिश साम्राज्य भयाक्रांत था इस डर से समय से पहले 23 मार्च 1931 को फाँसी पर चढ़ाकर बिना किसी सूचना के दूर ले जा कर लास का अंतिम संस्कार किया और जब जानकारी जनता की मिली कि ब्रिटिश ने यह कायरतापूर्ण कृत्य किये हैं सारे विश्व में इसका निन्दा की गई और सम्पूर्ण भारत में जनाक्रोश ऐसा फैला कि अंग्रेजों को लग गया कि अब हम भारत पर शासन नहीं कर सकते और हमे भारत छोड़ना पड़ेगा। और भगतसिंह ने जिस कारण फाँसी स्वीकार किया एक दिन वह सफल हो गया देश के अंदर स्वतंत्रता संग्राम के लिए देश खड़ा हो गया अंग्रेज अधिकारी अपने जीवन को सुरक्षित नहीं समझ कर उन्होंने भारत छोड़ने का निर्णय लिया और देश बटवारें के साथ 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हो गया।
जेल का उनका एक संस्मरण
भगत_सिंह की बैरक की साफ-सफाई करने वाले भंगी (वाल्मीकि) का नाम #बोघा था. भगत सिंह उसको #बेबे (मां) कहकर बुलाते थे। जब कोई पूछता कि भगत सिंह ये बोघा तेरी बेबे कैसे हुआ?
तब भगत सिंह कहते!
'मेरा मल-मूत्र या तो मेरी बेबे ने उठाया, या इस भले पुरूष बोघे ने, बोघे में मैं अपनी बेबे (मां) देखता हूं, ये मेरी बेबे ही है।"
यह कहकर भगत सिंह बोघे को अपनी बाहों में भर लेता, भगत सिंह जी अक्सर बोघा से कहते,
"बेबे ! मैं तेरे हाथों की रोटी खाना चाहता हूँ,"
पर बोघा अपनी जाति को याद करके झिझक जाता और कहता,... "भगत सिंह तू ऊँची जात का सरदार, और मैं एक अदना सा वाल्मीकि, भगतां तू रहने दे, ज़िद न कर!"
सरदार भगत सिंह भी अपनी ज़िद के पक्के थे, फांसी से कुछ दिन पहले जिद करके उन्होंने बोघे को कहा....
"बेबे! अब तो हम चंद दिन के मेहमान हैं, अब तो इच्छा पूरी कर दे!"
बोघे की आँखों में आंसू बह चले. रोते-रोते उसने खुद अपने हाथों से उस वीर शहीद ए आजम के लिए रोटिया बनाई, और अपने हाथों से ही खिलाई, भगत सिह के मुंह में रोटी का ग्रस डालते ही बोघे की रुलाई फूट पड़ी।
"ओए भगतां, ओए मेरे शेरा, धन्य है तेरी मां, जिसने तुझे जन्म दिया।"
"भगत सिंह ने बोघे को अपनी बाहों में भर लिया।"
ऐसी सोच के मालिक थे वीर सरदार भगत सिंह जी...
परन्तु आजादी के 70 साल बाद भी आज हम समाज में व्याप्त ऊँच-नीच के भेद-भाव की भावना को दूर करने के लिये वो न कर पाए जो 88 साल पहले भगत सिंह ने किया।
महान हुतात्मा को इस देश का प्रणाम!
1 टिप्पणियाँ
Jai Jai bhagat singh
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