माई रे एह्ड़ा पूत जड़ जेहडा ---राणा प्रताप !

 माई रे एहड़ा पूत--!

 राजपूताना की धरती जिसे हम आज राजस्थान कहते है, जब हम रात्रि में शांति से उस मरुस्थल के पहाणी की आवाज़ सुनते है तो ऐसा लगता है की जैसे हल्दी घाटी, कुम्भलगढ़, चित्तौ गढ़ की धरती आज भी यह पुकारती है  'माई रे एह्ड़ा पूत जड़ जेह्ड़ा 'राणा प्रताप' ! 'राणा उदय' क़ा स्वर्गवास हो चुका था सभी सामंत सुभचिन्तक दाह शंस्कार करके लौटकर एक वट बृक्ष क़े नीचे बैठे ही थे एक सामंत ने उठ कर कहा कि हमारे राणा, तो प्रताप होना चाहिए सभी बिचार मग्न हो गए क्यों कि सभी को पता था की राणा तो प्रताप क़े बड़े भाई हो चुके थे लेकिन सभी यह भी जानते थे कि बप्पा रावल क़े बंश को छोड़कर सभी राजपूत अकबर को राजा स्वीकार कर चुके है सबने सोच बिचार कर देश, धर्म क़ा क्या, कैसे हित हो सकता है प्रताप को राणा बनाने क़ा निर्णय किया । 

सपथ पूर्ण शासनरूढ़

राणा प्रताप ने कहा की यदि हम पर जिम्मेदारी आती है तो हम अकबर क़े आगे कभी सिर नहीं झुकाएगे यह सब सोच ले और हमारे साथ जीने, मरने की सौगंध खाए, एक साथ एकलिंग भगवान की जय क़ा उद्घोष हो उठता है, राजधानी लौटते प्रताप क़ा राजतिलक होता है, महाराणा प्रताप की जय क़ा उद्घोष होता है, महाराणा प्रतिज्ञा लेते है, भगवान एकलिंग की सपथ है  प्रताप क़े मुख से अकबर तुर्क ही कहलायेगा, मै शरीर रहते उसकी अधीनता स्वीकार करके उसे बादशाह नहीं कहुगा, सूर्य जहाँ पूर्ब में उगता है वही उगेगा, सूर्य क़े पश्चिम उगने क़े समान प्रताप क़े मुख से अकबर को बादशाह निकलना असंभव है, मेवाड़ की शौर्य भूमि पर बप्पा रावल क़े कुल की अक्षुण कीर्ति पताका हिंदुत्व की आन और शौर्य क़ा वह पुण्य प्रतीक, 'महाराणा सांगा' क़ा पावन पुत्र क़ा ९ मई १५४० वि.स.१५९६ को मेवाड मुकुटमणि प्रताप क़ा जन्म कुम्भलगढ़ में हुआ और यह महापुरुष वि.स.१६२८ फाल्गुन शुक्ल को सिंघसना रुढ़ हुआ अधिकांस रजवाड़े अकबर क़े दरबारी हो चुके थे ।

राजनीतिज्ञ महाराणा--!

अकबर क़े सेनापति मानसिंह शोलापुर विजय करके लौट रहे थे, उदयसागर पर महाराणा ने उनके स्वागत की ब्यवस्था की, अतिथि देवो भव इस नाते सत्कार करना ही था मानसिंह तो राजा नहीं थे परंपरा क़े अनुसार राजा क़े साथ ही राणा भोजन पर बैठ सकते थे क्यों की उस समय मानसिंह क़े पिता ही राजा थे, युवराज अमर ने स्वागत किया, मानसिंह ने अपने को असहज महसूस करते हुए दिल्ली पहुचे और अकबर द्वारा सेना सज्जित करके चित्तौर पर आक्रमण कर दिया, राणाप्रताप की ब्यूह रचना बहुत ही मजबूत थी लेकिन शत्रु सेना अपार थी बड़ी ही योजना से उन्होंने हल्दी घाटी को चुना था लेकिन हिन्दुओ क़ा दुर्भाग्य क़ा वह दिन भी आया, हल्दीघाटी में भीलो क़ा अपने देश और नरेश क़े लिए वह अमर बलिदान, राजपूत बीरो क़ा वह तेजस्विता और राणा क़ा लोकोत्तर पराक्रम क़ा इतिहास, बीर काब्य क़ा परम उपजिब्या है, मेवाड़ के गरम रक्त ने श्रावन १६३३ में हल्दीघाटी क़ा कण-कण लाल कर दिया अपार शत्रुसेना के सामने थोड़े से राजपूत, भील सैनिक कितना टिकते, राणाप्रताप को पीछे हटने को मजबूर होना पड़ा चेतक ने अपने स्वामी को सुरक्षित कर अंलतिम बिदाई ली। 

गुरिल्ला युद्ध के प्रणेता--!

राणा ने सिर नहीं झुकाया राजपूती आन क़ा सम्राट हिन्दू कुल गौरव इस संकट में भी अडिग रहकर जंगल -जंगल सैनिक शक्ति संगठित कर गुरिल्ला युद्ध को जन्म दिया, भामासाह ने आकर अकल्पित सहायता की चित्तौण को छोड़कर शेष सभी किलो को पुनः जीत लिया, उदयपुर राजधानी बनी राणाप्रताप की प्रतिज्ञा अक्षुण रही जब वे १९जनवरी सन १५९७ में परमधाम को जाने लगे तो उनके पुत्र, सामंतो ने उनकी प्रतिज्ञा दुहरा करके आस्वस्थ किया मेवाड़ की इस पबित्र भूमि में स्वधर्म क़ा वह सन्देश आज समग्र हिन्दू समाज को सुनाई  देता है।
     आज सर्वश्रेष्ठ हिन्दूकुल सूर्य क़े जन्म की बर्ष गाठ पर हार्दिक  अभिनंदन -----!           

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6 टिप्पणियाँ

  1. भगवान करे हिन्दू जल्दी जागे और आतंकवादियों का समूल नाश करे।

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  2. वीर श्रेष्ठ को शत-शत नमन

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  3. सादर वन्दे!
    माँ भारती के इस सच्चे महायोद्धा को हमारा कोटि कोटि नमन !
    रत्नेश त्रिपाठी

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  4. koti koti pranam anpey desh per mar metaney ki

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  5. bahut kam likha gaya hai

    akbar ki sena me 2,00,000 se bhi jyada the jab ki hamari maharana pratapji ki sena sirf 20,000

    uske bavjud akbar unko 20 saal tak ladta raha lekin hara nahi paya

    at the end maharana pratap got their own kingdom except chitod

    so it is amazing & channceless true story of hindu veer

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