हिन्दू क़े हित में जन्मू,हिन्दू क़े हित मर जाऊ----------!

हे जगद पिता जगदीश्वर ,
               यह गुण अपने में पाऊँ.
हिन्दू क़े हित में जन्मू,
                हिन्दू क़े हित मर जाऊ.
चाहे राणा सम मुझको,
                 तुम वन-वन में भटकाना.
चाहे तज भोग रसीले,
                  सुखी ही घास खिलाना.
चाहे शिवराज बनाकर,
                   तुम कंठ कृपाण लगाना.
चाहे कर बीर हकीकत,
                    नित शूली पर चढ़वाना.
पर हिन्दू क़ा तन देना,
                     मै भले नरक में जाऊँ.
हिन्दू क़े हित में जन्मू,
हिन्दू क़े हित मर जाऊँ ---------------१
चाहे गुरु अर्जुन क़े सम,
                      तुम तप्त तवे पर लाना.
चाहे गुरु बन्दा क़े सम,
                     तुम अंग-अंग नुचवाना.
चाहे गुरु- पुत्रो क़े सम,
                     दीवारों   में   चुनवाना.
चाहे मतिदास बनाकर,
                      सिर आरे  से चिरवाना.
पर  नाथ  अहिंदू  होकर,
                       मै नहीं  धरा  पर आऊँ.
                       हिन्दू क़े हित में जन्मू ,
                       हिन्दू क़े हित मर जाऊँ .
     [सरल-सहगान से साभार] 

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8 टिप्पणियाँ

  1. लेकिन अफ़सोस तो इस बात का है कि हिन्दू शब्द ही मुसलमानों का दिया हुआ है

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  2. सुन्दर भावपूर्ण,वीररस से ओतप्रोत!!

    सलीम भाई,
    वेसे हिन्दु शब्द है तो नहिं,गैर भारतिय मुसलमानों का दिया,पर अगर हो तो भी क्या फ़र्क पडता है,तुम लोग अल्लाह को ईश्वर कह्ते हो तो,वह हिन्दु हो गया?
    तुम सभी के नाम अरबी है,तो तुम अरबी हो गये? नहिं हम तो तुम्हे गौरवशाली भारत भुमि के भारतिय मुस्लिम मानते है।

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  3. शायद सलीम ठीक कहते है। मुस्लीम एवम ईसाईयत के प्रादुर्भाव के पहले धर्म का अर्थ "धारण करने योग्य वृति" हुआ करती थी। मत मतांतर के बावजुद समस्त दक्षिण एसिया मे समरसता थी। लेकिन मुसलमानो ने धर्म को साम्प्रादायिक रंग दिया और फिर यहां की सनातन परम्पराओ को एक अलग नाम देना आवश्यक हो गया। लेकिन जो हुआ, उस पर कोई मुसलमान भाई अगर गर्व करता है तो मै यह मानुंगा की उनके धर्म से अध्यात्म समाप्त हो चुका है।

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  4. सादर वन्दे !
    जिसको चोट लगी आपकी इस राष्ट्र वादी कविता से वो टिप्पणी देने पहले आया | अपनी विद्वता लेकर | अभी इसको इतिहास बताना सुरु करूँ तो ये भी इस गीत के श्रेणी में आ जायेगा | लेकिन बुद्धिमान जो ठहरा ! लीजिये इस चक्कर में मै इस कालजयी कविता की प्रशंसा करना भूल गया ! खून में शक्ति भरती इस वीर रचना का अभिनन्दन !

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  5. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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