वैदिक काल की कथा है उस समय खेती नहीं होती थी सभी फल -फूल खा कर जीवन बिताते थे जंगलो में स्वाभाविक जीवन था सभ्यता का विकाश उत्तरोत्तर नदियों और जंगलो में ऋषियों, धार्मिक राजाओ के माध्यम से हो रहा था एक समय आया अकाल पड़ गया जंगलो में फल-फूल नहीं हुआ, धरा के प्रथम नरेश राजापृथु जिनके नाम पर इस धरती का नाम पृथ्बी पड़ा बड़े ही उदारमना संस्कृत वाहक राजा थे, बड़े ही दुखी हो गए अपना धनुष-वाण उठाया और पृथ्बी को समाप्त करने को ठानी न तो पृथ्बी रहेगी न ही मनुष्य को कोई कष्ट, राजापृथु जब महल से बाहर निकले की यह धरती गाय के रूप में उनके सामने आ गयी राजा ने पीछा किया गाय ने राजा से कहा, मै इस धरती का ही स्वरुप हूँ चाहे तो मुझे समाप्त कर सकते है लेकिन मेरी बात सुनिए मै मनुष्यों को जीवन जीने का उपाय बताती हू, राजा को गाय माता ने बताया कि मेरे दूध से तमाम प्रकार के पकवान बनेगे मेरे बछड़ो के द्वारा हल चलाकर खेती करो, हमारे दूध और अन्न द्वारा जनता की सेवा करो राजा पृथु को बात समझ में आ गयी और इस धरती पर खेती शुरू हो गयी यह घटना लाखो वर्ष पुरानी है वैदिक कालीन .।
देवतात्मा गाय
हमारे देश में गाय को पशु नहीं माना जाता बल्कि वह तो देवतात्मा है जिसमे लाखो देवता निवास करते है जिस नाते उसका सम्मान है, उसके साथ माँ जैसा ब्यवहार किया जाता है यह भाव दुनिया में किंचित मात्र दखाई नहीं देता भारत में बसे किसी भी गाव में गाय यह एक पशुधन नहीं गोमाता है, गोवर्धन की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है, वेदों में गाय को अवध्य कहा गया है .।
राष्ट्र की आत्मा है गाय
गोरक्षा प्रत्येक भारतीय अपना कर्तब्य मानता है पहले गायो द्वारा ही मूल्यों का संतुलन व मापन किया जाता था राजा दिलीप से लेकर आज तक के सभी राष्ट्र भक्त राजाओ द्वारा रक्षित यह गाय विशेष महत्व रखती है गोदान ही सबसे बड़ा दान माना जाता है जो हमें धन-धान्य से परिपूर्ण करती है, गोरक्षा को लेकर अनेक संघर्ष हुए है चाहे जैन आचार्य हो या सिख सभी ने इसकी रक्षा में कोई कसर नहीं छोड़ा पंजाब में कूका बिद्रोह भड़का, उसका कारन गोहत्या ही था, १८५७ का स्वातंत्रय समर गो हत्या बिरोधी प्रखर भावना से प्रेरित हुआ था देश आज़ादी के बाद भी गोरक्षा के अनेक प्रयास हुए आज भी जारी है, जिस प्रकार से राजा दिलीप रहे हो या भगवान कृष्ण, अथवा मध्य काल के संत समाज ने राष्ट्र की एकात्मता हेतु गोरक्षा की। ठीक उसी प्रकार आज के संत भी श्री श्री रबिशंकर, बाबा रामदेव, अमृतमयी माँ, शंकराचार्य इत्यादि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या अन्य राष्ट्रबादी संगठन गोरक्षा, राष्ट्र रक्षा में जुटे हुए है आईये हम सभी मिल कर भारतीय एकात्मता की रक्षा करे, आज भी गाय के प्रति पूरे भारतीय समाज में अटूट श्रद्धा भक्ति प्रबल रूप से बनी हुई है ।
3 टिप्पणियाँ
यह तो बड़ी ही नेकी का कार्य है..
जवाब देंहटाएंsir mere hisab se srif gay hi nhi
जवाब देंहटाएंhar janawr hamare desh ki darohar hai
aapne bilkul thik likha sabhi me bhagwan ka ans hai hindu sabhi me ishwar ka ansh dekhta hai.
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