विसुद्ध गाव के सरदार--!
''सरदार पटेल'' 'भारत नवनिर्माण' की 'नयी भूमिका' में वे ''क्षत्रपति शिवाजी महराज'' जैसे दूरदर्शी थे 'आचार्य चाणक्य' जैसे कुशल राजनीतिज्ञ और भगवान मनु जैसे शासन के आकांक्षी थे। नेहरु के बिरोध के बावजूद भी भारतीय संस्कृति के प्रतीक ''सोमनाथ मंदिर'' का पुनर्निर्माण कराया, जिसका प्रधानमंत्री नेहरू के बिरोध के बावजूद ''राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू'' ने उद्घाटन किया, भारत प्रथम गृह व प्रथम उप प्रधानमंत्री होने का श्रेय उन्हें ही प्राप्त है। स्वतंत्र भारत में ५६२ रियासतों का विलय करने का साहस पूर्ण कार्य वही कर सकते थे। 'सरदार पटेल' का जन्म ३१ अक्टूबर १८७५ को गुजरात के नाडियाड उनके ननिहाल में हुआ वे खेडा जिले के 'कारमसद' में रहने वाले कृषक परिवार ''झाबरभाई पटेल'' की चौथी संतान थे। पहले उनकी शिक्षा स्वाध्याय से शुरू होकर 'बैरिस्टरी' की शिक्षा 'लन्दन' से प्राप्त की, वापस आकर अहमदाबाद में वकालत शुरू की देश की गुलामी स्वीकार न होने के कारण 'लोकमान्य तिलक जी' से प्रभावित होकर भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद गए।
गाधीजी की बात मानना देश पर भारी पड़ा--!
वे पूर्णतः १९२० से कांग्रेस आन्दोलन में सक्रिय हुए जनता और पार्टी में लोकप्रिय होने के कारण उन्हें नेहरु का प्रतिद्वंदी माना जाता था १९३७ तक उन्हें दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त हुआ, अधिकांश प्रांतीय समितियां सरदार पटेल के पक्ष में थी लेकिन गाँधी के एक इसारे ने उन्हें प्रधानमंत्री दायित्व से दूर कर दिया, श्री पटेल की यह सबसे बड़ी गलती थी कि उन्होंने देश से गाँधी को बड़ा माना और देश की अकांक्षाओ को पूरा नहीं किया जिसका खामियाजा आज देश भोग रहा है।एकता के प्रतीक--!
जहाँ उन्हें अपने पुरुषार्थ के बल पर लौहपुरुष कहा गया वही वे इस अपयश से नहीं बच सके कि भारत बिभाजन में वे बराबर के जिम्मेदार थे, उन्होंने यह कहते हुए विभाजन दस्तावेज पर हस्ताक्षर किया कि हम लड़ते -लड़ते बूढ़े हो गए थे, जहाँ उन्होंने ५६२ रियासतों के विलय का श्रेय प्राप्त किया वहीं कश्मीर की धारा ३७०, जिसका वे बड़ी पुरजोरी से बिरोध करते थे जब संसद में विल आया तो उस समय वे सदन के नेता थे क्योंकि 'पं. जवाहरलाल नेहरु' बाहर थे। उन्होंने बिल के पक्ष में वोट दिया और उसका समर्थन भी किया यदि वे चाहते तो यह बिल पास नहीं हो सकता था, उस दिन जब वे घर पर आये तो भोजन पर उनके मित्र जैसे निजी सचिव जो पटेल जी के साथ ही भोजन किया करते थे, भोजन मेज पर नहीं आये पटेल जी के पूछने पर बताया की उनका स्वास्थ ठीक नहीं है सरदार को यह समझने में समय नहीं लगा कि वे उनसे दुखी है उन्होंने नाराजगी का कारन पूछा, सचिव ने संसद की कार्यवाही पर उनसे कहा कि आप जैसे ''राष्ट्रबादी'' से देश को यह आशा नहीं थी इस पर पटेल ने उत्तर दिया कि यदि आज मै ३७० के पक्ष में अपना मत नहीं दिया होता तो नेहरू को यह कहने का मौका मिलता कि उनके न रहने पर मैंने उनका बिरोध किया, इससे यह प्रतीत होता है कि कही न कहीं सब के सब कांग्रेसी एक ही विचार के थे जिससे देश का विभाजन हुआ और ''कश्मीर की समस्या'' आज भी ज्यों की त्यों बनी हुई है इसमें सब के सब बराबर के अपराधी है।
प्रखर राष्ट्रवादी--!
वैसे सरदार के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है वे हमारे आधुनिक भारत के राजनैतिक ''इक्षा शक्ति'' वाले महान राजनेता के उदहारण के रूप में याद किये जायेगे, वे ''हिंदुत्व'' के पक्षधर भी थे लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि ''राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ'' के प्रतिबन्ध में उनका कोई योगदान नहीं था, 'सरदार बल्लभ भाई पटेल' का निधन १५ दिसंबर १९५० में मुंबई में हुआ।
लौह पुरुष---!
वे वास्तव में ''लौह पुरुष'' थे आज उनके जन्म दिन पर देश के प्रति उनके कार्यो को याद करना उनके प्रति कृतज्ञता अर्पित करना उनके पद चिन्हों पर चलना ही हमारे लिए श्रेयस्कर होगा भारत जैसे विशाल देश की एकता व अखंडता के लिए उन्हें हमेशा याद किया जायेगा।
3 टिप्पणियाँ
कांग्रेस ने खानापूरी की भी या नहीं... नमन सरदार को..
जवाब देंहटाएंlauh purush Sardar Patel ko shat-shat Naman !
जवाब देंहटाएंदेश के विभाजन के लिए जितना जिन्ना व नेहरु दोषी हैँ उतना ही पटेल .ऐसा लैरी कालिन्स दामिनिक लैपियर की पुस्तक 'आधी रात को आजादी' तथा मौ0अबुल कलाम आजाद की रचना 'इण्डिया विन्स फ्रीडम' से महसूस होता है .ऐसा ही निष्कर्ष सरस्वती कुमार,काशी का है .
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