रक्षाबंधन के सूत्र-धागे का महत्व------!

 भारतीय चिति---!

भारतीय समाज मे रक्षाबंधन का इतना महत्व क्यों है क्या ये भाई- बहनों का त्यवहार है फिर इस देशके मनीषी इसे राष्ट्रीय पर्व मानते हैं कुछ विद्वान इसे भारतीय समाज के चिति, धार्मिक ऐतिहासिक महत्व बताते हैं आखिर इस पर्व का क्यों और कैसे इतना महत्व है-?

''येन वद्धों बली राजा'' -- दान वीर राजा बलि -!

हमे प्रहलाद पौत्र महाराजा बली की कथा हम सबको ध्यान मे है जब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए की यह देवताओं के राज्य पर 'राज़ा बली' का शासन है इसे हमे वापस दिलाएँ विष्णु ने बताया की राज़ा बली तो बड़े धार्मिक राज़ा हैं इसलिए उनसे युद्ध करना अधार्मिक होगा और अपने मर्यादा के बिरुद्ध होगा लेकिन भगवान विष्णु ने देवताओं की बात मान 'बामन' (बाल ब्रह्मण) रूप धारण कर वे ठीक राजाबली के यज्ञ के समय पहुचे, राजा बलि यज्ञ वेदी पर ही दान किया करते थे किसी से को वापस नहीं करते थे, राजाबली बामन भगवान के सुंदर स्वरूप को देख मोहित हो गया, भगवान ने राजा से दान मांगा राजाबली तो उस समय के सबसे बड़े दानी थे और उस समय तो यज्ञ कर रहे थे, दान पीठिका पर बैठे थे, राजा ने उस बालक से कहा मांगो, लेकिन उनके गुरु शुक्राचार्य ने दान देने से मना किया कहा की ये सामान्य बालक नहीं ये साक्षात विष्णु हैं ये तुम्हें ठगने आए हैं, लेकिन राजा ने कहा यदि ये विष्णु हैं तो और भी सौभाग्य की बात है कि विष्णु स्वयं ही मुझसे कुछ मागने आए हैं, वे नहीं माने और दान देने के लिए अडिग हो गए तो बामन भगवान ने उनसे कहा कि हे राजन आप रक्षा सूत्र बधवाकर पहले संकल्प ले-! फिर मै कुछ माँगूगा । 

जब भगवान ने राजा को राखी बांधी 

राजा को भगवान बामन ने रक्षासूत्र बांध दान मांगा, मुझे केवल ढाई कदम जमीन अपने आसन के लिए चाहिए-! राजा ने जैसे ही स्वीकार किया देखते ही देखते वह छोटा सा बालक महाआकार लेता दिखाई दिया और दो कदम मे ही सारी धरती नाप ली फिर कहा राजन अब मै अपना कदम कहाँ रखू राजा ने आफ्ना सिर झुका दिया, भगवान ने वर मागने के लिए कहा तो महादानी राजाबली के भगवान से अपने साथ रहने के लिए काहा उसी समय राजबली पाताल लोक चले गए और भगवान उनके दरवान बन वही रहने लगे, देवताओं ने प्रथम बार रक्षाबंधन का महत्व जाना। 

फिर  श्री लक्ष्मी  ने राजा बलि को राखी बांधी

अब देवलोक मे भगवती लक्ष्मी अकेले रहने लगी भगवान तो पाताल लोक मे राजाबली की चाकरी कर रहे हैं उन्होने पाताल लोक जाकर राजाबली से भेटकर उनको भाई बना रक्षासूत्र बांधा राजबली ने लक्ष्मी से वर मागने को कहा लक्ष्मी ने उनसे उनके दरवान को ही मांगा, राजबली तो सब समझ ही रहे थे उन्होने रक्षासूत्र बधवाने के पश्चात भगवान विष्णु को लक्ष्मी को सौप दिया वे देवलोक चले गए, धीरे-धीरे देवता फिर मानव समाज मे यह रक्षावनधन की परंपरा पड़ गयी।


''येन वद्धों बली राजा''---
जब इंद्राणी ने इन्द्र को राखी बांधी

देवासुर संग्राम हो रहा था बार-बार असुर जीतते देवता पराजित होते तब इंद्राणी ने इन्द्र को युद्ध मे जाते समय रक्षा सूत्र बांधा और देवताओं को विजयश्री प्राप्त हुई धीरे-धीरे यह त्यवहार का स्वरूप धारण कर लिया, यह त्यवहार पहले वीर-ब्रत के रूप मे मनाया जाता था फिर परंपरा बन राष्ट्रीय पर्व हो गया, धीरे-धीरे यह प्रचलन राष्ट्र ब्यापी हो चला, पुरोहित यानी परहित यानी राष्ट्रहित, पुरोहित हिन्दू समाज का आईना होता है वह गाव-गाव मे प्रत्येक हिन्दू के यहाँ राखी बांध राष्ट्र चेतना जगाने का काम करता था जो आज भी परंपरा मे है पुरोहित हमारा प्रतीकात्मक राष्ट्र है, वही हिन्दू राष्ट्र का प्रतिनिधि करता है इसलिये वह हमारे हाथ मे राखी बांधता है और हम उसके यानी राष्ट्र की रक्षा का संकल्प लेते हैं वास्तविक रक्षाबंधन यही है।

 समाज व्यापी रक्षावन्धन

आज रक्षाबंधन का त्यवहार भाई-बहन का त्यवहार बन राष्ट्र-ब्यापी हो गया, ''आरएसएस'' सभी शाखाओं पर 'समरसता' लाने हेतु मनाता है, ''धर्म जागरण'' इसी कार्यक्रम को जहाँ पिछड़ी बस्तियाँ है जो समाज मुख्य धारा से अलग-थलग पड़ा हैं वहाँ धर्मरक्षा हेतु ''धर्मरक्षा समितियों'' के माध्यम से सभी के समानता हेतु धर्मरक्षा बंधन सभी बस्तियों, वनबासी गावों मे रक्षा सूत्र बांध हम सब हिन्दू हैं, भारतीय है हम एक माता के पुत्र है यह भावना सबके मन मे आए यह पर्व इस कारण मनाया जाता है आज प्रत्येक ''भारतीय राष्ट्रीय पर्व'' मान किसी न किसी रूप मे रक्षाबंधन पर्व को मनाता है।            

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1 टिप्पणियाँ

  1. सभी सनातनी मित्रों को रक्षाबंधन की ढेर सारी शुभकामनाए।

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