भारत वर्ष ------ हज़ार वर्ष पराधीनता का नहीं शौर्य, स्वाभिमान और शतत संघर्ष का काल ।

           

भगवान कहते हैं

पवित्र गीता मे भगवान कृष्ण कहते हैं ''हे अर्जुन! मै महाकाल हूँ लोकक्षय और लोकबृद्धि दोनों का कारण, मै इन दुष्टों के विनाश के लिए प्रवृत हूँ, अर्जुन तू लड़े या न लड़े, इस महाभारत मे उपस्थित सभी योद्धा समाप्त होने वाले हैं, अतः कर्तब्य यही है कि तू उठे स्वधर्म का पालन करे और यश प्राप्त करे, वस्तुतः तू निमित्त मात्र है, कर्ता तो मै ही हूँ, मै जो परम अकर्ता हूँ, वहीं परमकर्ता भी हूँ।''
 भगवान वहीं कहते हैं जब-जब अधर्म बढ़ेगा मै आऊँगा और वे बिभिन्न रूपों मे आए --!

जब अरब देश तक जीता 

 भारत वर्ष आर्यावर्त राष्ट्र एक राज्य अनेक परंतु परकीय हमले मे एक, भारतवर्ष ने चक्रवर्ती सम्राटों को जन्म दिया मौर्य सम्राट, गुप्तवंश, शुंगवंश, चालुक्य, चेर, पल्लव वंश, महान बाप्पा रावल (राणा) वंश, महान विजय नगर साम्राज्य, नाग वंश ऐसे सैकड़ों राजवंशों ने इस पर शासन किया, दुर्भाग्य कैसा है कि जिसे इस्लामिक काल कहा जाता है वह किस आधार पर कौन से इतिहास लेखक थे, जो अरबी लुटेरे आए अपने साथ कुछ भांण भी लेकर आए वे उसी लूट का वर्णन करते थे जैसे 'बाबर नामा- अकबर नामा' ये क्या है जो बाबर चार वर्ष भी भारत भूमि पर टिक नहीं सका मारा गया उसे भारत का विजेता बताना भारत और हिन्दू समाज का अपमान करना है। छठी -सातवीं सताब्दी मे इस्लाम का उद्भव हुआ आठवीं सताब्दी मे यानी 712 से भारत मे लुटेरे आने शुरू हो गए हम सभी को ज्ञात है कि भारत के ब्यापारी पश्चिम ब्यापार हेतु जाते थे अरब इत्यादि देशों मे कुछ खाने-पीने के लिए नहीं था, सभी का गिरोह बना केवल लूटने का ही धन्धा था जो जितना बड़ा गिरोह का सरदार उतनी बड़ी प्रतिष्ठा, धीरे-धीरे इन लुटेरों को ध्यान मे आया कि भारत तो सुखी सम्पन्न देश है लेकिन अरब देश की कोई हैसियत ही नहीं थी कि वे भारत हमला करते, मुहम्मदबिन कासिम कहीं का कोई राजा नहीं था वह सीमा प्रांत सिंध का लुटेरा था, माफी मांगना छल -प्रपंच द्वारा छुट जाना राजा दहिरसेन निश्चिंत थे एक दिन धोखे से राजा की हत्या हो गयी राजधानी देवलपुर (कराची) लूट किया जिसका बदला राजा दाहिरसेन की दोनों पुत्रियों ने बगदाद मे जाकर कासिम की हत्या से चुकाया ।

तुर्क लुटेरे न कि शासक 

 सातवीं सताब्दी मे भारत वर्ष के चक्रवर्ती सम्राट राजा हर्षवर्धन थे वे बौद्ध धर्म से प्रभावित होने के कारण सीमा प्रांत भी कुछ कमजोर सा हो गया था सीमा प्रांत के राजा- सामंत अपने-अपने को स्वतंत्र घोषित कर लिए थे सम्राट ने कोई ध्यान नहीं दिया अरब मे गिरोहो का बनना जारी था एक हाथ मे कुरान लेकर अल्लाह के नाम पर लूट-पाट करना ही उनकी जीविका थी, गजनी का लुटेरा महमूद गजनवी पुरुषपुर (पेशावर) लूट-पाट मचाने आया राजा जयपाल ने उसे बुरी तरह पीटा, यह भी हो सकता है कि अरब के इन लुटेरों को सायद जगीरदार कहते रहे हों, लेकिन वह बार-बार आतंक मचाने आता राजा आनंदपाल ने संधि की जिससे वह आतंक बंद हो जाय लेकिन वह माना नहीं भारत अंदर घुसकर लूट-पाट करता हुआ सोमनाथ मंदिर सहित कई मंदिरों को ध्वस्त ही नहीं तो लूट पाट भी किया जब वह जाने लगा तो गुजरात के राजाओं ने उसे रेगिस्तान मे 1030 मे समाप्त कर दिया, गजनी की मौत के पश्चात मुहम्मद गोरी वहाँ का जागीर बना यानी डकैतों के गिरोह का सरदार मुहम्मद गोरी ने कई बार पृथ्बिराज चौहान के राज्य मे लूट-पाट करता राजा ने कई बार उसे मारकर भगाया पकड़-पकड़ कर छोड़ दिया, सूफी संत मोइद्दीन चिस्ती (मु गोरी का जासूस) ने समय देखकर गोरी को हमला करने हेतु बुलाया राजा धोखे से पराजित हुआ लेकिन 'कबी चंद्रवर दायी' की युक्ति काम आई पृथ्बिराज चौहान ने शब्दवेधी वाण द्वारा मुहम्मद गोरी का 1191 मे बध कर कबी और राजा दोनों ने अपने आपको समाप्त कर लिया, दिल्ली पराजय भारत की पराजय नहीं क्योंकि पृथ्बिराज चौहान का शासन केवल दो जागीर 'अजमेर और दिल्ली' जो की कन्नौज से भी छोटी थी वे कोई भारत के चक्रवर्ती सम्राट नहीं थे इस कारण शेष भारत का क्या ? क्या मुहम्मद गोरी ने शासन किया ! क्या कासिम ने शासन किया !क्या गजनी ने शासन किया तो उसका उत्तर है की नहीं ! तो ये कहाँ के शासक थे इतिहास मे खोजते रहिए ।

फिर हिंदुत्व का सूर्य उदय हुआ 

 चार वर्ष तक कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली जागीर का शासक रहा फिर इब्रहीम लोदी शासक हुआ इसे समाप्त कर कुशल सेनापति हेमचन्द्र विक्रमादित्य दिल्ली के सम्राट हुए, 1526 मे बाबर का युद्ध इब्रहीम लोदी से हुआ ऐसा नहीं था की बाबर दिल्ली का शासक हुआ वह तो चार वर्ष उत्तर भारत के कुछ हिस्सों मे लूट-पाट मचाता रहा और मर गया (यही लुटेरों की प्रबिति) हिमायूं भी भागता ही रहा अकबर धोखे से हेमचन्द्र को पराजित कर उसकी हत्या कर दी और पहला मुगल दिल्ली के जागीर पर आया लेकिन उसकी हिम्मत यह नहीं थी की वह दिल्ली को राजधानी बनाए उसने फ़तेहपुर सीकरी को अपना केंद्र बनाया आगरा से शासन शुरू किया लेकिन उसका शासन भी कुछ ही हिस्से मे था अफगानिस्तान, कश्मीर से लेकर मालवा गुजरात तक महाराणा का शासन था मुगलों की सत्ता को भारतीय जनता ने कभी स्वीकार नहीं की राणा राजसिंह से कई बार पराजित होने बाद औरंगजेब दक्षिण गया वह पहले क्षत्रपति शिवाजी महराज़ से उलझा फिर संभाजी राजे से कई युद्धों    में पराजित होने के पश्चात धोखे से संभाजी को पकड़वा लिया अपमान पूर्वक उनका बध किया परिणाम यह हुआ औरंगजेब की समाधि वहीं बन गयी वापस नहीं जा सका दक्षिण मे मराठे, राजपूतना, सिक्ख और जाट खड़े हो पुनः स्वर्ण मंदिर को उन्ही पकड़े हुए मुगल सैनिकों द्वारा जीर्णोद्धार पवित्र सरोवर को साफ कराया, लाल किले पर भगवा झण्डा फहराया सत्रहवीं शताब्दी सम्पूर्ण विदेशियों को समाप्त कर हिन्दू पद पादशाही की स्थापना हुई ।

पहले जी हुजूरी फिर धोखे से सत्ता का प्रयास 

अंग्रेजों ने कुटिल चाल से भारतीय राजाओं से बिभिन्न प्रकार की संधि की राजाओं को चौथ देना उनकी चापलूसी करना धीरे-धीरे बंगाल मे अपना धंधा मजबूत करने मे सफलता प्राप्त की उन्होने राजाओं से हम ब्यापारी हैं हमे चौकीदार भर्ती की अनुमती राजाओं ने इसे स्वीकार कर लिया क्योंकि ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया की हैसियत भारत के राजाओं के सामने कुछ भी नहीं थी, उस समय ब्रिटिश एक राष्ट्र था भी नहीं था, अंग्रेजों ने कमीशन पर मालगुजारी वसूलने की अनुमती ली, सेक्योर्टीगार्ड की आड़ मे वे सेना भर्ती करते रहे उस समय स्वामी दयानन्द सरस्वती का प्रादुर्भाव हुआ वे भारतीय राजाओं को सचेत करने लगे और उसी मे 1857का बिगुल बज ही गया ज्ञातब्य हो की उस समय तक पूरे देश मे हिंदुओं का शासन था, लेकिन केवल बंगाल की लूट ने ब्रिटिश को मालामाल कर दिया और वे भारत मे षणयंत्र शुरू कर दिये अंग्रेजों ने 1912 मे दिली को राजधानी घोषित किया केवल 70 वर्ष ही सत्ता और संघर्ष दोनों और फिर सत्ता हस्तांतरण क्योंकि ब्रिटिस के पास कोई राष्ट्रिय सेना ही नहीं थी।

और उपनिवेश 

 संधि मे उन्होने भारत मे जनगणना 1851 मे कराया जिसमे राजाओं की सहमति थी उन्हे (अंग्रेजों) ध्यान मे आया की भारत मे तो 80% शाक्षरता है इसी कारण 1857 मे बिहार और उत्तर प्रदेश मे ही 20 लाख लोगो की हत्या, बंगाल मे 40 लाख लोगों की हत्या, क्या यह गुलामी का लक्षण है जो जाती गुलाम होती है वह संघर्ष करती है ! देश मे स्वामी दयानन्द, स्वामी विबेकानंद, महर्षि अरविंद, विरसा मुंडा, सिद्धू कानू, लोकमान्य तिलक, बिपिनचंद पाल, लाला लाजपत राय जैसे क्रांतिकारी आध्यात्मिक ताकते खड़ी हो गयी राजा, महाराजा, साधु, संत, नेता जी सुभाषचंद बोष की आज़ाद हिन्द फौज और भारतीय जनता खड़ी हुई अंग्रेजों को जाना पड़ा, यह कहना की उन्होने 600 रियासतों को स्वतंत्र कर दिया यह भी गलत है क्योंकि वे तो उन राजाओं से समझौता किए थे यह स्वाभाविक सत्ता हस्तांतरण था क्यों कि केवल भारत के कुछ हिस्से पर ही ब्रिटिश का शासन था 1947 से 37 वर्ष पहले तक एक तिहाई भारत पर ब्रिटिश सत्ता थी लेकिन वह (ब्रिटिश शासित) भाग हमेसा संघर्ष रत रहा  और बड़ी ही धूर्चातता व चालाकी से उपनिवेश कायम किया ।

 पराधीन देश मे आध्यात्मिक चेतना 

मध्यकाल मे रामानुजाचार्य, रामानन्द स्वामी के द्वादस भगवत शिष्य, संत रविदास, कबीर दास, मीराबाई, संत तुलसी दास ने रामलीला शुरू कर तथा रामचरित मानस लिखकर पूरे देश को जागृत कर दिया क्या किसी गुलाम देश मे यह संभव है ? दूसरा जहां इस्लाम अथवा ईसाईयत का शासन रहा हो वहाँ कोई गैर मतावलंबी जीवित बचा है नहीं ! जहां-जहां ये दोनों मत गए वहाँ की संस्कृतियाँ समाप्त हो गईं, यदि भारत पराधीन रहा होता तो क्या हिन्दू समाज व भारतीय संस्कृति बच पाती नहीं ! इससे यह सिद्ध होता है भारत कभी पराधीन नहीं रहा बल्कि ''नेहरू पंथियों'' ने यह झूठा प्रचार किया कि हम गुलाम थे जिससे हिन्दू समाज के भीतर हीन भावना की ग्रंथि बन सके, वास्तव मे यदि विचार किया जाय तो ध्यान आता है की यह काल भारत के आध्यात्मिक उत्थान का काल था जिसे पराधीनता का काल कहा जा रहा है । 

और क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को सत्ता छोड़ने को मजबूर किया                 

 सत्तरहवीं शताब्दी मे ब्रिटिश के पास कोई राष्ट्रीय सेना नहीं थी वह एक राष्ट्र भी नहीं था ईस्ट इंडिया कंपनी धूर्तता पूर्ण काम कर रही थी समझौते की आण मे कंपनी- ''धंधा मुनेफ़ा का -सपना जीसस का'' आधार बना धंधा कर रही थी कंपनी के प्रबन्धकों को गवर्नर कहा जाता था उन्हे भारत का गवर्नर समझना मूर्खता थी, योजना वद्ध तरीके से लार्ड मैकाले ने 1934 मे आज के आधुनिक कानवेंट की तर्ज पर अँग्रेजी शिक्षा का प्रचार शुरू किया ज्ञातब्य हो कि यह केवल आधे भारत मे ही लागू था बाद मे चर्च ने शिक्षा अपने हाथ मे लेकर शिक्षा और मतांतरण दोनों शुरू किया और देश के सभी गुरुकुलों को समाप्त करने का प्रयास किया, लेकिन भारतीय राजा, आध्यात्मिक संत और क्रांतिकारियों ने विदेशियों को देश छोड़ने हेतु मजबूर कर दिया ।

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5 टिप्पणियाँ

  1. नेहरू जी ने सेकुलर के नाम पर वामपंथियों को इतिहास का काम देकर भारत के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया है आ उनके अनुयाई किसी भी महापुरुष (महाराणा प्रताप,क्षत्रपति शिवा ज,गुरु गोविंद सिंह) को इतिहास मे सामील करने पर भगवा करण कहकर सोर मचाते हैं आज भी देशद्रोह पर उतारू हैं।

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  3. आपने बुद्ध धर्म को कमजोर दर्शाने की चेष्टा की जिससे मैं सहमत नहीं क्यों कि आज उसी धर्म के अनुयायी राष्ट्र चीन,जापान आदि भारत से ज्यादा शक्तिशाली हैं
    मुगल यदि कमजोर थे तो हमारे अधिकांश धार्मिक स्थलों का रूप मस्जिद में कैसे परिवर्तित हो गया।
    अंग्रेजो की तो ईस्ट इंडिया कम्पनी ने राज किया भारत पर और कितने चर्च,स्तूप आदि बना दिये जो आज भी उनकी उपस्थिति की पुष्टि करते रहते हैं।
    यदि हम इतने ही वीर थे तो भरतखण्ड एक छोटे से विदेशी नाम के इंडिया में कैसे समा चुका?
    इसलिये आपका लेख तर्कसंगत नहीं लगा।

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    1. आपने लगता है की आकलन ठीक प्रकार से नहीं किया है मैं कोई बौद्ध धर्म का बिरोधी नहीं जहाँ तक चीन की बात है तो वह हान है न की बौद्ध , बौद्ध केवल तिब्बत में है वह भी कुछ लाख सम्पूर्ण विश्व में ३५ करोड़ से अधिक नहीं आप यदि राष्ट्रीयता की दृष्टि से देखेगे तो मेरे समर्थक बनेगे!

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  4. आपने इस लेख का आकलन लगता है समझदारी से नहीं किया है जैसे लुटेरे आते हैं लूट -मार कर चले जाते हैं लेकिन उन्हें राजा नहीं कहा जा सकता बख्तियार ख़िलजी कहाँ का राजा था है किसी को पता ! अरब में कोई राजा नहीं सब कबीलों का ही शासन था जो जितना घोड़ों का सरदार उाटना बड़ा डाँकू चाटुकार सेकुलर इतिहासकार उन्हें राजा भी कह सकते हैं वे आंधी के सामान आये तूफान के सामान चले गए लेकिन जोर जबरदस्ती लूट तो किया ही मतान्तर भी किया मंदिर भी तोडा मस्जिद बनाया हम हिन्दू उन मस्जिदों को किसी भगवान का मंदिर है नहीं तोडा उसे यह समझना की उन्होंने निश्चिन्त होकर बनाया हमपर शासन किया ये गलत है १९४७ के पश्चात यह अधिक प्रचार हुआ की हम हज़ार वर्ष से गुलाम थे.

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