भारतीय मन के साथ द्रोह करते सेकुलरिष्ट व बामपंथी-------!


भारतीय मन क्या है?

भारतीय वांग्मय में जब हम भारतीय चिति अथवा भारतीय मन के बारे में विचार करेंगे तो ध्यान रखना होगा कि भारत का मन क्या है ? भारतीय राष्ट्र क्या है ? भारतीय चिति क्या है ? यह कोई नया राष्ट्र नहीं है ब्रम्हांड उत्पत्ति के साथ ईश्वर ने इस भूमण्डल के इस आर्यावर्त क्षेत्र में जब सृष्टि रचना की उसी समय ईश्वर ने मानव जीवन के बारे में चिंतन किया, भारतीय ग्रन्थों का मत है कि सर्व प्रथम मनुष्य की उत्पत्ति हिमालय के उत्तर त्रिविष्टप में हुई, सभी को पता है कि गंगा जी से उत्तर त्रिविष्टप से दक्षिण क्षीर सागर था, भूगर्भ क्षात्र इसे ठीक से समझ सकते हैं, हिमालय के पश्चिम आदि बद्री से वैदिक नदी सरस्वती का उद्गम हुआ वहीँ से कुरुक्षेत्र, पुष्कर होते हुए प्रभास क्षेत्र होकर समुद्र में गिरती है एक अरब छानबे वर्ष पूर्व कहते हैं कि इसी नदी के किनारे भगवान ब्रम्हाजी के कंठ में वेद आया यानी ईश्वर ने सर्वप्रथम वेदों का ज्ञान ब्रम्हाजी को दिया ब्रम्हाजी ने अपने चार शिष्यों वायु, अग्नि, आदित्य और अङ्गिरा को दिया इन ऋषियों ने सरस्वती नदी के किनारे गुरुकुल खोलकर ऋषी अगस्त, लोमहर्षणी, विश्वामित्र, वशिष्ठ, ऋचीक इत्यादि ऋषियों को दिया इन ऋषियों ने सारे आर्यवर्ते में इस ज्ञान को मानव जीवन में संचारित किया वास्तविकता यह है कि यहीं से भारतीय वांग्मय की शुरूआत होती है यहीं से भारतीय चिंतन धारा का प्रवाह चलता है।

और चिंतन की धारा आगे बढ़ी

ब्रिटिश काल था महर्षि दयानंद सरस्वती का प्रादुर्भाव हुआ वे बड़े क्रांतिकारी वैदिक ऋषि थे इन्हीं को 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का श्रेय जाता है, आर्यसमाज की स्थापना कर देश में अद्भुत क्रांति का नेतृत्व किया शास्त्रार्थ कर उन्होंने इस्लाम और ईसाईयत को चुनौती दी उन्होंने वेदों का भाष्य किया, ऋग्वेद भाष्यभूमिका लिखी सत्यार्थप्रकाश लिखकर तो सारे विश्व को चुनौती दे डाली, मेरठ में स्वामी जी का प्रवास था जहाँ वे जाते शास्त्रार्थ जरूर होता विधर्मी वड़े प्रसन्नचित थे कि हिंदू समाज का एक ऐसा सन्यासी आ रहा है जो हिंदू धर्म की आलोचना करते हैं स्वामी जी का प्रवचन सुनने बहुत बडी संख्या में मुल्ला-मौलबी और पादरी आये थे स्वामी जी ने जब पुराणों के बारे में बोले तो विधर्मियों ने बड़ी ताली बजायी लेकिन तुरंत ही उन्होंने कुरान और बाइबिल को भी उसी भाषा में आलोचना का पात्र बनाया वहां पर कमिश्नर के साथ DM-SP इत्यादि सब बड़े अधिकारी भी मौजूद थे विशप ने स्वामी जी से पूछा कि आप सृष्टि के बारे में करोड़ों वर्ष कहते हैं तो इसका प्रमाण क्या है ? स्वामी जी ने कहा कि हिन्दू समाज में जब भी कोई छोटा बड़ा शुभ कार्य धार्मिक कार्य होता है तो एक पुरोहित आता है वह एक मंत्र बोलता है-स्वस्ति वाचन करता है वह इस प्रकार है- "कलियुगे कलि प्रथम चरणे जम्बूद्वीपे, भारत खंडे आर्यवर्ते मासा$नाम मासा-----!'' स्वामी ने बताया कि जिस विधा में एक एक क्षण की गणना होती है वह कभी गलत नहीं होती, फिर किसी ने पूछा कि आप कहते हैं कि वेद अपौरुषेय है लेकिन वेदों की ऋचाओं में तो ऋषियों के नाम है इसका अर्थ है कि वेद की ऋचाओं को ऋषियों ने लिखा स्वामी जी ने उत्तर दिया ये ऋषि लेखक नहीं है ये तो मंत्रद्रष्टा हैं अब मंत्रद्रष्टा क्या है भारतीय वांग्मय में बारह महीने और बारह राशियां हैं ये सब नक्षत्रों की गणना के अनुसार ही है जैसे जब किसी अक्षांश व देशांतर पर सम्पूर्ण "ब्रह्मांड मछली" का आकार बनाता है तो उस समय "मीन राशि" तय किया ऐसे जब "ब्रह्मांड घड़े" का आकार बनाता है तो ऋषियों ने उसे "कुंभ राशि" कहा इस प्रकार सभी राशियां वैज्ञानिक आधार पर बनी है, एक मन्त्र गायत्री मंत्र है जिसका वेदों में सर्बधिक महत्व है लोग कहते हैं कि यह  ऋषि विश्वामित्र की रचना है लेकिन यह ईश्वर प्रदत वेदमंत्र है ऋषि विश्वामित्र ने इस मन्त्र का सोध करते-करते एक विशिष्ठ ब्रम्हांड को देखा कि सभी ग्रह भगवान सूर्य का चक्कर लगा रहे हैं ब्रम्हांड में एक आवाज़ आ रही है वह आवाज़ है, "ओम भूर्भुवः स्वह तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहिधियो यो यो नः प्रचोदयात" तो विश्वामित्र इसके मंत्रद्रष्टा थे न कि लेखक, इस प्रकार ऋषियों ने प्रत्येक वेद का ब्राह्मण ग्रंथ लिखा फिर राजा जनक के दरबार ऋषियों ने जो शास्त्रार्थ किये उसे हम उपनिषद कहते हैं इस प्रकार वेदों के ब्याकरण को निघंटु, तमाम लोगों ने विभिन्न विषयों पर भाष्य, महाभाष्य लिखा, हिन्दू समाज के दो महान ग्रंथों "रामायण और महाभारत" की रचना कर सम्पूर्ण समाज को बांध दिया दो ऐसे महापुरुष भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण जिसे हिन्दू समाज ने अपना आदर्श मानकर व्यवहार करता है।

महात्मा बुद्ध और शंकराचार्य

महाभारत काल के कोइ दो हज़ार वर्ष पश्चात ध्यान में आया कि महायुद्ध में बहुत सारे वैज्ञानिक, विद्वान, योद्धा समाप्त हो गए कोइ दिग्दर्शन नहीं होने से समाज विखरने लगा,समाज दिशा हीन होने के कारण सामाजिक बुराई घर करने लगी जीव हत्या, मांसाहार  व पापाचार को बढ़ावा मिलने लगा वैदिक संस्कृति ह्रास होने लगा ऐसे समय कपिलवस्तु राज्य में राजा सुद्धोधन के यहाँ एक बालक पैदा हुआ बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया जो तपस्या के पश्चात महात्मा बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जब यह बालक पैदा हुआ तो राजपुरोहित आया राजा के पूछने पर पुरोहित ने बताया कि यह बालक या तो चक्रवर्ती सम्राट होगा अथवा बहुत बड़ा सन्यासी राजा सुद्धोधन को लगा कि यदि यह पढ़ लेगा तो कहीं सन्यासी न हो जाय इस डर से उन्होंने इसकी शिक्षा दीक्षा नहीं कराई यह बालक राजमहल में ही रहना बचपन में ही विवाह कर दिया आखिर इन्हें तो सन्यासी होना ही था विधी के विधान को कौन टाल सकता है एक दिन अपने मंत्री के साथ महल से बाहर निकले कि देखा एक ब्यक्ति एक लाठी से ठेगते जा रहा है पूछने पर मंत्री ने बताया कि एक दिन सबको इस अवस्था में आना पड़ता है यानी बूढ़ा होता है फिर आगे बढ़ने पर देखा रास्ता रुका हुआ है उन्होने पूछा ये क्यों ये क्या है कि एक ब्यक्ति को चार लोगों के कंधे पर जा रहे है मंत्री ने बताया कि एक ब्यक्ति मर गया है उसकी लास जा रही है इस कारण सब रुके हुए हैं सिद्धार्थ के पूछने पर मंत्री ने बताया एक दिन सभी को मरना होता है घर लौटकर रात्रि में एक बार अपनी पत्नी का मुख देखकर वे घर छोड़कर चले गए, उन्होंने वैशाली, गया, राजगिरि के भ्रमण में कई जगह साक्षात्कार किया उस समय मंदिरों में पशुबलि, हिंसाचार बहुत था वैदिक साहित्य की उपेक्षा हो रही थी उन्होंने एक पंडित से पूछा कि जीवो की हिँसा क्यों पंडित ने बताया कि यह ईश्वर को चढ़ता है बुद्ध ने कहा यदि ईश्वर ऎसी हिँसा को कराता है तो मैं ऐसे किसी ईश्वर को नहीं मानता फिर किसी ने बताया कि यह वेदों में लिखा है उन्होंने कहा कि मैं ऐसे किसी ग्रन्थ को नहीं मानता। बुद्ध का जीवन सुद्ध वैदिक था वे वेदानुकूल आचरण करते थे दीन दुखियों का चिन्तन करते थे वेदों के अनुसार मानव मात्र का कल्याण यही उनका लक्ष्य था इसी लक्ष्य को लेकर सम्पूर्ण आर्यावर्त के सभी राजाओं को इस समानता का शंदेश दिया। धीरे-धीरे इन राजाओँ में विकृति आ गई क्योंकि उन्हें वेदो का ज्ञान नहीं था सभी नास्तिक हो गए धर्म का वन्धन न होने के कारण उत्श्रीखल स्वभाव वन गया बौद्ध भिक्षुओं में हर प्रकार का दोष घर कर गया वे अपने स्वार्थ में कपटी हो गए उनके अंदर देश भक्ति भारतीय संस्कृति में ही दोष दिखाई देने लगा। ऐसे समय में देश के सुदूर दक्षिण केरल के कालड़ी ग्राम में एक साधारण ब्राह्मण परिवार में एक बालक ने जन्म लिया जिसका नाम शंकर रखा गया वह जन्म से ही मेधावी था 4 वर्ष में गुरुगृह में पढ़ने के लिए गया लेकीन एक वर्ष में ही उन्हें गुरूजी ने वापस भेज दिया उन्हें चार-पांच वर्ष में ही वेद, उपनिषद, ब्राह्मण ग्रंथ इत्यादि ग्रंथों का अध्ययन हो गया दक्षिण के सभी विद्वान उस नन्हे से आचार्य से शास्त्रार्थ कर पराजित हो गर्व महसूस करते थे उन सभी लोगों को यह आभास होने लगा कि इस पृथ्वी के उद्धारक ने जन्म ले लिया है वे सात वर्ष में माँ से आज्ञा लेकर अमरकंटक अपने गुरु के पास सन्यास दीक्षा ली, उन्होंने शास्त्रार्थ के बल वैदिक धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा की भारतीय संस्कृति के रक्षार्थ "52 शक्तिपीठों", "चारों धाम" और "द्वादश ज्योतिर्लिंगों" की पुनर्स्थापना कर सुनिश्चित किया, आज की पंचदेव पूजा सारा कर्मकांड आदि जगद्गुरु शंकराचार्य की देन है, जहाँ भगवान बुद्ध ने समता वादी समाज के निर्माण व दुखी गरीबों में ईश्वर देखा वहीं शंकर ने भारतीय राष्ट्रवाद की नींव रखी इसी आधार पर आर्य चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य ने जहाँ-जहाँ हिन्दू वहाँ-वहाँ भारत का निर्माण किया, इन्हीं को आधार मानकर स्वामी रामानुजाचार्य, स्वामी रामानंद, सन्त रविदास, संत कबीरदास ने भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाने का कार्य किया।

चिति पर हमले और पहरुवे

सैकड़ो वर्षों तक विदेशी आक्रांताओं से झुझते रहने के बावजूद हमारे ऋषियों महर्षियों ने अपने सजग नेतृत्व द्वारा आने वाली पीढ़ी के निर्माण में जुटे रहे एक ओर इस्लामिक काल में संत रविदास, तुलसीदास, कुम्हान दास, चैतन्य महाप्रभु जैसे सन्तों ने सामाजिक चैतन्यता प्रवाहित करते रहे तो ब्रिटिश काल में महर्षि दयानंद सरस्वती ने आर्यसमाज द्वारा गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, डॉ हेडगेवारजी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, महर्षि अरविंद व श्री माँ ने भारत माता की आराधना शुरू की, कोलकाता में रामकृष्ण मिशन, रवींद्र नाथ टैगोर ने विश्वभारती, तो महामना मदनमोहन मालवीय ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय खोलकर भारतीय नयी पीढ़ी को जागृत करने के काम में लग गए मूल्य परक शिक्षा के अद्भुत प्रयत्न किये गए, इन महापुरुषों को यह ध्यान में था कि वर्तमान राजनैतिक नेतृत्व का विजन भविष्य के भारत के हिट में नहीं है, इसीलिए डॉ आंबेडकर यह कहते हैं सबसे बड़ा दुर्भाग्य शाली दिन वह था जिस दिन गाँधी देश के सर्वमान्य नेता वन गए क्योंकि गांधी को भारतीय वांग्मय का ज्ञान नहीं था वे वेद, उपनिषद, ब्राह्मण ग्रंथों, रामायण और महाभारत जैसे भारतीय आत्मा (ग्रन्थों) का ज्ञान नहीं था (पाकिस्तान, पार्टीशन ऑफ इंडिया- डॉ आंबेडकर) देश का विभाजन हो गया हमारे महापुरुषों को जो अंदेसा था वही हुआ जो लोग कहते थे कि देश का विभाजन मेरी लास पर होगा वे जिंदा रहे और देश का विभाजन हो गया।

कांग्रेस का वैचारिक दिवालियापन-योजना वद्ध घुसपैठ

वैसे तो मुसलमानों ने असम को मुस्लिम बहुल बनाने के लिए आजादी के पहले से ही घुसपैठ शुरू कर दी थी ''जिन्ना ने 1939 में अपने प्राइवेट सेक्रेटरी से कहा 10 वर्ष के बाद मैं चाँदी के तस्तरी में रखकर आसाम को तुम्हें भेट करूंगा'' स्वातंत्र वीर सावरकर ने बहुत पहले ही सचेत किया था उनकी बात को अनसुनी कर दिया गया, डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी के प्रयत्न से प.बंगाल और असम का बड़ा हिस्सा बच गया, देश विभाजन के पश्चात पूर्वी पाकिस्तान से हज़ारों मुस्लिम घुष्पैठिये असम में घुस गए, भारत की संसद ने 13 फरवरी 1950 को "इमिग्रेशन ऐक्ट" बनाये असम सरकार ने गैर कानूनी तौर पर आए घुश्पैठियों को निकालने को कहा पर कोई सफलता नहीं मिली,  घुश्पैठियों के कारण असम के जनजातियों का जीना दूभर हो गया, 1951 में नागरिकों का नेशनल रजिस्टर बनाया गया 1952 में पासपोर्ट अधिनियम तथा 1955 में "सिटीजनशिप" ऐक्ट बना पूर्व के 'इमिग्रेशन एक्ट' को समाप्त कर दिया गया 1961 के जनगणना अनुसार असम जनसंख्या की बढ़ोतरी 34.97 प्रतिशत थीं यानी 1951 से61 के बीच घुश्पैठियों की संख्या साढ़े सात लाख हो गई, असम के मुख्यमंत्री 'बी पी चलिहा' ने घुश्पैठियों की संख्या साढ़े तीन लाख बतायी, 1967,1968 तथा 1969 में 1.29 लाख घुश्पैठियों को असम से निकाला गया उस समय असम में कांग्रेस के 33 MLA मुस्लिम थे "मोइनुल हक विधायक के नेतृत्व में अपने ही मुख्यमंत्री के खिलाफ प्रदर्शन किया यदि मुस्लिम घुश्पैठियों की वापसी न रोकी गई तो कांग्रेस का ''मुस्लिम वोट बैंक'' समाप्त हो जाएगा" परिणाम 1961-71 के बीच घुश्पैठियों की 34.71 प्रतिशत आवादी बढ़ गई, 25 मार्च 1971 से लेकर 12 दिसंबर 1971 तक जनसैलाब की भांति 12 लाख से अधिक घुष्पैठिये बांग्लादेश से आ गए उन्हें मुसलमानों ने बड़े पैमाने पर सहायता करने का काम किया उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा कि सभी बांग्लादेशी वापस किये जायेगे लेकिन यह केवल बयान ही रहा, 1977 में इंद्रा गाँधी ने संविधान में बलात ''सेकुलर'' शब्द जोड़कर मुस्लिम घुश्पैठियों को बढ़ावा देने का परोक्ष रूप से प्रयास किया, असम के ''आल इंडिया स्टूडेंट यूनियन'' ने मुस्लिम घुश्पैठियों के विरुद्ध विशाल प्रदर्शन किया, 83 से निरंतर दंगों व हत्या का दौरा शुरू हो गया 'नेल्ली' जिले में ही केवल 1800 पुरूष बच्चे मारे गए, 1967- 1971 के बीच आने वाले घुश्पैठियों के वोट देने के अधिकार खत्म किया लेकिन यह लागू नहीं हो सका, 1971-1991 के बीच मुसलमानों की संख्या में 77 प्रतिशत बढोतरी हुई इस समय बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा सिमा लांघने का सर्वाधिक अतिक्रमण था ''यह कहना अतिसयोक्तिन होगा कि बांग्लादेश द्वारा यह अघोषित युद्ध था'', लेकिन कांग्रेस ने चुनावी वोट बैंक के चलते कांग्रेस सरकार ने इसकी अनदेखी की अब हिँसा का रुकने वाला नहीं था 5 अक्टूबर 93 मुसलमानों ने बोडो जनजाति पर हमले किये जिसमें 400 लोग मारे गए 4000 परिवार बुरी तरह प्रभावित हुए, 2001-2004 के बीच कार्वी-कूकी संघर्ष में 98 लोग मारे गए 11000 बेघर हो गए 2005 में 103 लोग मारे गए 30000 लोग पलायान किये 2008 में 65 मारे गए तथा 2 लाख बेघर हो गए, असम के मुख्यमंत्री तरूण गोगोई ने बयान दिया असम ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठा है यह एक बानगी है, प.बंगाल, बिहार भी बुरी तरह प्रभावित है हिन्दुओं का पलायन जारी है यह सब कांग्रेस व अन्य समाजवादी, साम्यवादी दलों के वोट बैंक की राजनीति का परिणाम है जो देश को घुन के समान समाप्त करने में लगे हैं।

भारतीय चिति पर हमला

परतंत्रता काल में स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद, लोकमान्य तिलक, ने संस्कृत ग्रंथों के आधार पर नवचेतना जगाई स्वतंत्रता के पश्चात डॉ आंबेडकर, डॉ राधाकृष्णन जैसे विद्वानों ने राजभाषा बनाने का प्रयत्न किया उन्हें सफलता नहीं मिली, अब सत्ता का खेल शुरू हुआ वामपंथियो की बुद्धि और कांग्रेस की सत्ता ने देश के भविष्य के अरमानो पर पनि फेर दिया, नेहरू ने सत्ता पर कब्जा करते ही भारतीय चिति पर हमला शुरु कर दिया सड़क क्षाप वामपन्थी उचक्कों को फ़र्जी डिग्री दिलाकर शोधकर्ता बनाकर भारत के बौध्दिक संस्थाओं पर बैठा दिया इन फर्जी इतिहासकारों ने भारतीय संस्कृति इतिहास को विकृत कर दिया, इतिहास से चाणक्य, चन्द्रगुप्त मौर्य, पुष्यमित्र शुंग, सम्राट विक्रमादित्य को तो गायब ही कर दिया जो महाराणा प्रताप भारतीय जनता के स्वाभिमान हैं जिस क्षत्रपति शिवाजी महाराज ने हिंदू पदपादशाही की स्थापना की उन्हें भारतीय इतिहास में कोई स्थान नहीं केवल तुर्कों मुगलों और अंग्रेजों का इतिहास पढाया जाता है जिससे हमारे अंदर हीन भावना की ग्रंथि पैदा हो ऐसी ब्यवस्था बामपंथियों ने बनाया, नेहरू ने जो ब्यवस्था बनाई थी इंदिरागांधी, राजीव गांधी और मनमोहन सिंह की सरकारों ने सेकुलर के नाम पर हिंदुत्व पर लगातार प्रहार पर प्रहार करते रहे, शिक्षा विभाग में घोर विकृति जिसमें से भारतीय मूल्यों को समाप्त कर दिया गया भारतोय स्वाभिमान जैसी महाराणा प्रताप, क्षत्रपति शिवाजी महाराज, रानी झांसी, तात्या टोपे, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों को तथा शंकरचार्य, रामानुजाचार्य, रामानन्द स्वामी संत तुलसीदास, ऋषि दयानन्द सहित हिन्दू समाज के प्रेरकों को उपेक्षित कर दिया, रामचरितमानस, गीता के श्लोकों, हल्दीघाटी सब कुछ जिससे देश के नव निहलो को प्रेरणा मिलती वह सब पाठ्यक्रम से निकाल दिया गया, विदेशी घुष्पैठिये बांग्लादेशी लगातार आने लगे उन्होंने गरीबों के रोजगारों पर कब्जा करना शुरू कर दिया आये दिन हिन्दुओं पर हमले शुरू हो गए दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा तथा अन्य सार्वजनिक त्योहार मनाना मुश्किल हो गया है इस समय देश में पांच करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठिय है प. बंगाल, आसाम और बिहार की हालत नाजुक बनी हुई है रोहंगिया मुसलमान बड़ी संख्या में आ गया है बिहार के अररिया जिला प्रशासन ने बताया कि जितना जनगणना में संख्या थी उससे अधिक आधार कार्ड बना हुआ है जिसका जाँच करने का कोई उपाय नहीं है,कोशी अंचल से हिंदू पलायान करने को मजबूर है साधू-संत मंदिर-मठ छोड़कर भाग रहे हैं मुसलमान सब हिन्दुओं की जमीनों को कब्जा कर रहा है, रोहंगिया मुसलमान पूरे देश मे फ़ेल गया है जम्मू कश्मीर एक ऐसा राज्य है जहां कोई भारतीय एक इंच जमीन नहीं ले सकता लेकिन रहंगियो के लिए सबसे सुरक्षित ठेगाना बना हुआ है बिहार, झारखंड प्रांत का शायद ही कोई जिला हो जिसमे रोहंगिया नहीं हो लेकिन कोई सरकार कुछ नहीं कर रही क्योंकि मुसलमानों का वोट चाहिये सभी देश की मर्यादा, देश की अस्मिता की कोई चिंता नहीं ।

चुनौती स्वीकार

जिस प्रकार ऋषी दयानंद सरस्वती, स्वामी श्रद्धानंद ने वैदिक गुरुकुल, DAV विद्यालय, स्वामी विवेकानंद ने राष्ट्रवाद का अलख जगाने का काम, सावरकर जी की साधना ने काम किया ठिक उसी प्रकार आरएसएस तो भारतीय मन का काम कर ही रहा है उसने समाज के हर प्रकार के अंगों को सुरक्षित रखने के लिए विषयानुसार संगठन खड़ा कर दिया है केवल संघ ही नहीं तो इस समय स्वामी रामदेवजी पूरे देश में वैदिक गुरुकुलों, श्री श्री रविशंकर, अमृतानंदमयी मा देश में शिक्षा ब्यवस्था चरित्र निर्माण का काम तथा देश के भविष्य व भारत निर्माण की प्रक्रिया में समाज स्तर पर कर रहे हैं।

संदर्भ ग्रंथ-------
ऋग्वेद भाष्यभूमिका------ऋषी दयानन्द
ऋग्वेद प्रथम मंडल-------- महर्षि दयानंद
भारत गाथा----------------- सूर्यकांत बाली
शुद्धि आंदोलन का इतिहास--डॉ श्रीरंग गोडबोले
युगपुरूष तुलसी--------------- रामरंग
भारत को समझने की शर्तें---- सूर्यकांत बाली
भटकाव के67वर्ष-- कुछ मुद्दे--डॉ सतीशचंद मित्तल

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