पंद्रह अगस्त 1947 बारह सौ वर्षों मे हिन्दुत्व की सबसे बड़ी पराजय--!

         

 
सनातन परंपरा

 यह सनातन परंपरा से चला आया हुआ सनातन संस्कृति को मानने वाला देश जिसकी संस्कृति अक्षुण रही कभी खंडित करने का किसी ने प्रयत्न किया भी तो कभी चाणक्य के नेतृत्व मे सम्राट चन्द्रगुप्त तो कभी शंकराचार्य और पुष्यमित्र शुंग ने उसे करारा जबाब दिया, भारत सीमा सिंध के महाराजा दाहिरसेन, अरब ईरान इराक तक मुस्लिम खलीफाओं को पराजित करने वाले "कालभोज़" यानी "बाप्पा रावल" और दिल्ली सरोवा सम्राट पृथ्बीराज चौहान की पराजय के पश्चात ऐसा नहीं था की हिन्दू समाज ने संघर्ष नहीं किया कभी महाराणा प्रताप, शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह, बंदा बैरागी जैसे लोगो ने संघर्ष किया तो कभी संत समाज रामानुजाचार्य, रामानन्द स्वामी, कबीर दास, संत रबीदास, चैतन्य महाप्रभु और शंकरदेव जैसे संतों ने अपनी संस्कृति को अक्षुण रखा ब्रिटिश शासन के समय स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विबेकानंद, वीर सावरकर, नेताजी सुभाषचन्द्र बॉस, महर्षि अरविंद और महामना मदनमोहन मालवीय जैसे मनीषियों ने हिन्दुत्व की पताका को झुकने नहीं दिया। स्वामी श्रद्धानंद जी ने तो बिछड़े हुए बंधुओं को पुनः हिन्दू धर्म मे सामिल कर आदि जगद्गुरू शंकराचार्य की परंपरा की याद ताज़ा कर दी।

पढ़े लिखे लोगों का संहार 

क्या पता था कि जिस लड़ाई को हिन्दू समाज के श्रेष्ठ जनों ने हज़ार वर्षों तक लड़ी, जिनके हाथ मे नेतृत्व आया वे हिन्दू समाज को धोखा देगे। बड़ी ही योजना वद्ध तरीके से लोकमान्य तिलक, बिपिनचंद पाल और लालालाजपत राय के शक्तिशाली, कुशल, क्षमता वाले नेतृत्व को गांधी जैसे कमजोर हाथ मे देकर हिन्दू समाज के साथ धोखा हुआ। भारत की वास्तविकता यह है कि हजारों वर्षों से पश्चिम सिंधु पार से पूर्व मे ब्रम्हपुत्र नद, उत्तर मे हिमालय से दक्षिण मे कन्याकुमारी तक यह अखंड आर्यावर्त, भारत वर्ष, हिंदुस्तान इत्यादि नामों से प्रसिद्ध इस सनातन देश का 14 अगस्त 1947 को इस आधार पर बिभाजन हो गया कि हिन्दू और मुसलमान दो राष्ट्र है इसी हिन्दू राष्ट्र मे से एक अलग पाकिस्तान का निर्माण जो इस्लामिक राष्ट्र  के रूप मे खड़ा है 1851 के एक सर्वे के अनुसार (धर्मपाल) भारत की साक्षरता 80% थी 1857 की स्वतन्त्रता समर मे ब्रिटिश ने इस आंदोलन को दबाने हेतु जितने पढे-लिखे लोग थे उनका संहार किया केवल उत्तरप्रदेश और बिहार मे बीस लाख लोग मारे गए आज भी बहुत से कुएं, पीपल के बृक्ष और चौराहे मिलेगे जहां लोग बताते हैं कि इस कुएं मे सैकड़ो, इस पेड़ पर सैकड़ों और इस चौराहे पर इतने लोगों को फासी पर लटकाया गया है आज भी स्थानीय जनता उस पर पुष्पार्चन करती है, फिर भी हिन्दू समाज का संघर्ष जारी रहा भारतीय समाज पराजित नहीं हुआ।

विभाजन नहीं इतिहास की सबसे बड़ी पराजय 

देश बिभाजन के समय जनसंख्या अदला-बदली के समय मुसलमानों द्वारा मारे गए हिंदुओं की संख्या एक अनुमान के अनुसार कम से कम 15 लाख थी, लाखों बहनो का बलात इस्लामीकरण किया गया यह बिभाजन अप्राकृतिक था हमारे तीर्थ स्थान, गुरुद्वारे, शक्तिपीठ सहित बहुत सारे देवस्थान चले गए उस समय महात्मा गांधी के हाथ में नेतृत्व था। हिन्दू समाज उन्हे अपना नेता मानता ही नहीं था बल्कि अंधभक्त था चारो तरफ मार-काट मचाते आठ करोण मुसलमानों के आगे अहिंसा के मोहजाल मे फसा 35 करोण हिन्दू पराजित हुआ, सच्चाई यह है कि हिंदुओं की सबसे बड़ी पराजय पानीपत के मैदान मे नहीं बल्कि 1947 के बिभाजन मे हुई। आज भी हिन्दू समाज यह भ्रम पाले बैठा है कि बिभाजन गांधी जी नहीं बल्कि जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल के राजनैतिक भूल का परिणाम था परंतु यह कोरा अंध विश्वास है सत्य क्या है और कितना भयानक है --? 5 मार्च 1947 को कांग्रेस कि कार्यसमिति ने अपनी बैठक मे मुस्लिम लीग द्वारा बिभाजन कि अपनी मांग मनवाने के लिए पंजाब मे मचाए जा रहे हत्याकांड और अग्निकांड को ध्यान मे रखते हुए निर्णय किया गया कि पंजाब का दो भागों मे बिभाजन आवस्यक है। एक मुस्लिम -बहुल जिलों का पश्चिमी पंजाब और हिन्दू- बहुल जिलों का पूर्वी पंजाब, एक अन्य प्रस्ताव द्वारा निर्णय हुआ की उसी समय मे गठित की जा रही संबिधान सभा मे भाग लेना स्वेच्छिक है तथा यह संबिधान उन्हीं पर लागू होगा जो इसे स्वीकार करेगे, उसी प्रकार जो प्रांत या प्रदेश भारतीय संघ मे मिलना चहेगे उन्हे किसी प्रकार रोका नहीं जाएगा, (वी पी मेनेन ट्रांसफर आफ पवार,351-52 पृष्ट ) गांधी जी उसी समय बिहार दंगा ग्रस्त क्षेत्रों मे थे, उन्हे पता चला कि बिना उनकी राय के बिभाजन का निर्णय ले लिया गया है तो वे बहुत लाल-पीले हुए, बिहार से वे मार्च के अंत मे वे दिल्ली आए।

  बिभाजन मेरी लास पर 

मुस्लिमलीग के एक प्रमुख नेता 'सर फिरोज खाँ नून' ने यह धामकी दी की ''यदि गैर मुसलमानों ने आवादी की अदला-बदली मे रुकावट डाली तो चंगेज़ खाँ, हलाकू जैसी समूहिक संहार की विनास लीला की पुनरावृत्ति कर दी जाएगी, तदनुसार ही मुस्लिम लीग द्वारा 'डायरेक्ट ऐक्सन' के नाम पर 16 अगस्त, 1947 को कलकत्ता (नोवाखली) मे हिन्दुओ की समूहिक हत्याओं व अग्निकांडों का सूत्र पात हुआ, फिर गांधी जी बोले ---''यदि कांग्रेस विभाजन स्वीकार करती है तो वह मेरे मृत शरीर के ऊपर होगा, जब-तक मै जीवित हूँ मै कभी विभाजन स्वीकार नहीं करुगा, यदि हो सका तो न ही मै कांग्रेस को स्वीकार करने दूंगा'' (इंडिया विन्ज फ्रीडम). गांधी जी ने १२ अगस्त को लिखा की कांग्रेस के आत्म- निर्णय के सिद्धांत के वे ही जनक हैं, साथ ही यह भी लिखा ''अहिंसा पर विस्वास करने वाला मै हिंदुस्तान की एकता तभी बनाये रख सकता हूँ जब इसके सभी घटकों की स्वतंत्रता स्वीकार करूँ'', इस प्रकार की बिरोधाभाषी बातें करने वाला ब्यक्ति अन्य देश में पागल करार दिया जाता, किन्तु हिंदुओं के भारत ने उन्हे राष्ट्रपिता स्वीकार कर लिया, यह एक और बड़ी गलती थी कि जिस देश मे श्रीराम और श्रीकृष्ण राष्ट्रपिता न होकर राष्ट्र-पुत्र ही रहे, उसी देश मे कुछ लोगों ने गांधी जी को राष्ट्रपिता बना दिया । 

पाकिस्तान भी और मुस्लिम यहीं 

कांग्रेस के प्रमुख नेताओं ने इस गंभीर और महत्वपूर्ण समस्या पर चिंतन नहीं किया, किन्तु जुलाई -अगस्त 1947 मे विभाजन के साथ पाकिस्तानी क्षेत्रों मे हिंदुओं के ब्यापक संहार और उसका पलायन देखकर सरदार पटेल तथा कुछ नेता आबादी की अदला-बदली की आवस्यकता समझी। डा अम्बेडकर ने तो यहां तक कहा कि विभाजन धर्म के आधार पर हो रहा है इसलिए भारत के अंदर एक भी मुसलमान नहीं रहना चाहिए और पाकिस्तान के अंदर एक भी हिंदू, नहीं तो समस्या ज्यों कि त्यों बनी रहेगी और पचास साल बाद फिर यही मांग उठेगी। किन्तु गांधी, नेहरू ने यह प्रस्ताव को ठुकरा दिया, दूसरी तरफ पाकस्तानी क्षेत्र से हिंदुओं को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा तथा योजना बद्ध तरीके से बांग्लाभाषी मुसलमानों को असम मे बसने को प्रोत्साहित किया गया, भारत सरकार ने इसपर कोई ध्यान नहीं दिया, उल्टे जब सरदार पटेल ने यह प्रस्ताव किया की आबादी का अदला-बदली कर ली जाय तथा भूमि का आबादी के अनुपात मे पुनर्निर्धारण हो, तो नेहरू बहुत क्रोधित हो गया, परिणाम यह हुआ कि जहां पाकिस्तान ने सभी हिन्दुओ को भारत मे धकेल दिया वहीं भारत के 70% मुसलमान यहीं रह गए, इतना ही नहीं जिन मुसलमानों ने पाकिस्तान बनाने के लिए वोट दिया था वे तो गए ही नहीं! गांधी, नेहरू के ही कारण हिंदुओं की इतनी बड़ी पराजय हुई जो भारतीय इतिहास के काले पन्ने मे दर्ज है जिसे आने वाला हिन्दू समाज कभी भी इन्हे माफ नहीं करेगा।

आज़ादी नहीं विभाजन

हिंदुओं को स्वतन्त्रता नहीं बल्कि उनके ही देश का विभाजन मिला, जो 600 वर्षों के तुर्क, अफगान, मुगल तथा 200 वर्षों के ब्रिटिश काल मे भी नहीं हुआ था, जिसके फलस्वरूप भारत का एक तिहाई भाग इस्लामी कट्टर पंथियों के हवाले हो गया और लाखों निर्दोष, निरीह मानवों कि हत्या हुई और दो करोण ब्यक्ति बिस्थापित हुए, इस खूनी विभाजन मे सुप्रसिद्ध सत्य-अहिंसा के प्रतिमूर्ति 'महात्मा' गांधी की भूमिका मुस्लिम लीगी नेता मोहम्मद अली जिन्ना अथवा जवाहरलाल नेहरू से कम नहीं थी, विभाजन से पहले 600 वर्षो के इस्लामिक शासन मे इस्लामी कानून ''शरीयत'' चलता था जो हमेशा मुसलमानों के पक्ष का रहता था 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजी राज्य समाप्त होकर एक नए युग का सूत्रपात हुआ, इस नए युग के साथ ही हिन्दू -दासता के दूसरे अध्याय का सूत्रपात हिन्दुओ की आखो के सामने, हिन्दू जाती की सहमति से हुआ, जिसे हम आज सेकुलर के नाम से जानते हैं।                              

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2 टिप्पणियाँ

  1. सारगर्भित लेख के माध्यम से आपने सत्य को सबके समक्ष रखा आपने। सत्यपरक लेखन के लिये आपको कोटिशः प्रणाम

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  2. शर्म आती है अपने पूर्वजों पर जो इस गद्दार गांधी नेहरू को समझ नहीं पाए।

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